ओ झुँझन वाली माँ क्या खेल रचाया है भजन

ओ झुँझन वाली माँ क्या खेल रचाया है भजन

मुखड़ा:

ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है,
तू प्यार का सागर है,
तू मन का किनारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
अंतरा 1:

देखि है तेरी दुनिया,
क्या रचना रचाई है,
दिन-रात के चक्कर में,
कुछ समझ ना आई है,
हर पल जो बीत रहा,
माँ तेरा इशारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
अंतरा 2:

महलों में भी दुःख देखे,
और सड़कों पे खुशहाली,
कोई राजा है किस्मत का,
कोई किस्मत से खाली,
सब तेरी लीला है,
सब तेरा फ़साना है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
अंतरा 3:

कोई फूलों पे सो ना सके,
कोई काँटों में हँसता है,
कहीं मौत हुई सस्ती,
कहीं जीवन महंगा है,
कोई खुशियों में डूबा है,
कोई ग़म का मारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
अंतरा 4:

कोई जन्म से पहले मरे,
कोई मर के भी जीता है,
कोई घाव लगाता है,
कोई ज़ख्मों को सीता है,
ये कैसी हकीकत है,
ये कैसा नज़ारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
अंतरा 5:

कोई दुःख को सुख समझे,
कोई सुख में भी रोता है,
आशा और तृष्णा का,
कभी अंत ना होता है,
इस भूल-भुलैया में,
पड़ा दास बेचारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
 


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