मैया मैं तो पायो भल गुरु ज्ञान भजन

मैया मैं तो पायो भल गुरु ज्ञान भजन

मैया मैं तो पायो भल गुरु -ज्ञान ।
कालि गयों कालिंदी तट हौं,
खेलन संग सखान ।

मुनि दुर्वासा ज्ञान दियो तहँ,
दै वेदादि प्रमान ।

कह्यो मनुज तनु को माटी को,
एक खिलौना जान ।

उपजत माटी ते माटी महँ,
मिलत अंत सच मान ।

मैया कह, 'यह हौंहूँ जानति,
कहा कहन चह कान्ह ।

जो यह जान माय तो काहे,
देति न माटी खान ।

मैया कह लाला ! माटिहिं ते,
उपजत तरुन लतान।

जो खैहौ माटी तो निकसहि,
तरु नासा मुख कान ।

लाला कह अब कबहुँ न खइहौं,
मनहुँ मनहिं डरपान ।

कह 'कृपालु' हरि अब जनि सुनियो,
बाबन के व्याख्यान ॥

भावार्थ- छोटे से भोरे-भारे श्यामसुन्दर ने एक दिन मैया से कहा-मुझे तो बड़ा अच्छा गुरु ज्ञान मिला है । कल मैं सखाओं के साथ यमुना के किनारे खेलने गया था, वहाँ दुर्वासा मुनि ने वेदादि का प्रमाण देते हुए यह ज्ञान दिया कि मनुष्य शरीर मिट्टी का एक खिलौना है क्योंकि यह मिट्टी से उत्पन्न होता है एवं अन्त में मिट्टी में ही मिल जाता है । मैया ने कहा -'कन्हैया, यह तो मैं भी जानती हूँ, किन्तु तेरे कहने का अभिप्राय क्या है ? कन्हैया ने कहा-'यदि मैया तू जानती है तो मुझे मिट्टी क्यों नहीं खाने देती ?' 
 
मैया ने कहा- 'लाला सामने देख मिट्टी से ही सब लता, वृक्ष पैदा होते हैं, यदि तू मिट्टी खायेगा तो अनेकानेक वृक्ष कोई नाक से, कोई मुख से, कोई कान से निकल पड़ेंगे ।' लाला ने कहा-'यदि ऐसा है तो मैया ! अब मैं कभी मिट्टी नहीं खाऊँगा।' बाललीलानुसार श्यामसुन्दर मानो डर गये । 'श्री कृपालु जी महाराज' कहते हैं कि हे बालकृष्ण ! अबकी बार तो तुमको मैया ने बचा दिया, किन्तु अब कभी भी बाबा लोगों के व्याख्यान न सुनना।


मैया में तो पायो भल गुरु-ज्ञान ।

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जीवन की सच्चाई को समझने का सबसे सरल मार्ग है—इस शरीर को मिट्टी का एक खेल समझना। जैसे बच्चा मिट्टी से खिलौना बनाता है और फिर उसे मिट्टी में मिला देता है, वैसे ही यह देह मिट्टी से आई और मिट्टी में मिल जाएगी। यह ज्ञान मन को बंधनों से मुक्त करता है, क्योंकि जो क्षणिक है, उसका मोह व्यर्थ है।

पर सच्चा ज्ञान केवल तर्क से नहीं, हृदय की सरलता से भी आता है। जैसे बालकृष्ण मासूमियत से मिट्टी खाने की जिद करते हैं, वही मासूमियत हमें सिखाती है कि जीवन की गहराई को समझने के लिए मन को निर्मल रखो। मैया का जवाब—कि मिट्टी से पेड़ उग आएंगे—यह केवल एक माँ की चतुराई नहीं, बल्कि गहरी सीख है। यह बताता है कि जो हम लेते हैं, वही हमारे भीतर रूप लेता है। यदि मन को सांसारिकता की मिट्टी से भर देंगे, तो वह अशांति के जंगल में बदल जाएगा।

इसलिए मन को प्रभु के रंग में रंगो। जैसे कृष्ण की लीलाएँ हमें हँसाती हैं, वैसे ही जीवन को हल्केपन से जियो, पर सत्य को कभी न भूलो। सत्संग और प्रभु का नाम ही वह जल है, जो मन की मिट्टी को पवित्र कर देता है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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