सुन नाथ अरज अब मेरी मैं शरण पड़ा
सुन नाथ, अरज अब मेरी,
मैं शरण पड़ा, प्रभु तेरी।।
तुम मानुष तन मोहे दीन्हा,
भजन नहीं तुम्हरो कीन्हा।।
विषयों ने लाई मति घेरी,
मैं शरण पड़ा, प्रभु तेरी।।
सुत, दारा आदिक यह परिवार,
सब स्वार्थ का है संसार।।
जिन हेतु पाप किए ढेरी,
मैं शरण पड़ा, प्रभु तेरी।।
माया में ये जीव भुलाना,
रूप नहीं पर, तुम्हरो जाना।।
पड़ा जन्म-मरण की फेरी,
मैं शरण पड़ा, प्रभु तेरी।।
भवसागर में नीर अपारा,
मोहे कृपालु, प्रभु कर उबारा।।
ब्रह्मानंद, करो नहीं देरी,
मैं शरण पड़ा, प्रभु तेरी।।
भजन-सुन नाथ अरज़ अब मेरी