आबिदा प्रवीण कबीर लिरिक्स मीनिंग Abida Parveen Kabir Meaning (Man Lago Yaar Fakiri Me) Hindi

आबिदा प्रवीण कबीर लिरिक्स Abida Pravin Kabir (Man Lago Yaar Fakiri Me) Meaning

 'मन लागो यार फकीरी में' इसे आबिदा प्रवीण ने बहुत ही खूबसूरती के साथ गाया है जिसमे विभिन्न कबीर साहेब के दोहों को स्थान दिया गया है। वैसे इस भजन के मूल बोल पृथक हैं जिन्हे आप यहाँ पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। इस भजन का हिंदी अर्थ निचे दिया गया है।

 
आबिदा प्रवीण 'कबीर' लिरिक्स Kabir Sung by Abida Pravin Lyrics

मन लागो यार फ़कीरी में,
माला कहे है काठ की तू क्यों फेरे मोहे,
मन का मनका फेर दे सो तुरत मिला दूँ तोहे।

मन लागो यार फ़क़ीरी में,
कबीरा रेख सिन्दूर,
उर काजर दिया ना जाय,
नैनन प्रीतम रम रहा,
दूजा कहाँ समाय,
प्रीत जो लागी भूल गई,
पीठ गई मन माहीं,
रूम रूम (रोम रोम ) पीऊ पिऊ कहे,
मुख की सिरधा नाहीं,
मन लागो यार फ़क़ीरी में,
बुरा भला सबको सुन लीज्यो,
कर गुजरान ग़रीबी में।

सती बिचारी सत किया,
काँटों सेज बिछाय,
ले सुधि पिया आपणा,
चहुँ दिस अगन लगाय,
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े,
काके लागूं पाय,
बलिहारी गुरू आपणे,
गोविन्द दियो बताय,
मन लागो यार फ़क़ीरी में।

मेरा मुझ में कुछ नहीं,
जो कुछ है सो तेरा,
तेरा तुझ को सौंप दे,
क्या लागे है मेरा,
मन लागो यार फ़क़ीरी में।

जब मैं था तब हरि नहीं,
अब हरि है मैं नाहीं,
जब अन्धियारा मिट गया,
दीपक देर कमाहीं,
रूखा सूखा खाय के,
ठन्डा पानी पीओ,
देख परायी चोपड़ी
मत ललचावे जियो,
मन लागो यार फ़क़ीरी में।

साधू कहावत कठिन है,
लम्बा पेड़ ख़जूर,
चढे तो चाखे प्रेम रस,
गिरे तो चकना चूर,
मन लागो यार फ़क़ीरी में।

आखिर ये तन खाक़ मिलेगा,
क्यूं फ़िरता मग़रूरी में,
मन लागो यार फ़क़ीरी में।

लिखा लिखी की है नहीं,
देखा देखी बात,
दुल्हा दुल्हन मिल गए,
फ़ीकी पड़ी बारात,
मन लागो यार फ़क़ीरी में।

जब लग नाता जगत का,
तब लग भक्ति ना होय,
नाता तोड़े हरि भजे,
भगत कहावे सोय,
हद हद जाये हर कोइ,
अन हद जाये न कोय,
हद अन हद के बीच में,
रहा कबीरा सोय,
माला कहे है काठ की
तू क्यूं फेरे मोहे,
मन का मणका फेर दे,
सो तुरत मिला दूं तोय,
मन लागो यार फ़क़ीरी में।

जागन में सोतिन करे,
साधन में लौ लाय,
सूरत डार लागी रहे,
तार टूट नहीं जाए,
पाहण पूजे हरी मिले,
तो मैं पूजूँ पहाड़,
ताते या चक्की भली,
पीस खाये संसार,
कबीरा सो धन संचीऐ,
जो आगे को होइ,
सीस चढाये गाँठड़ी,
जात न देखा कोइ,
हरि से ते हरि जन बड़े,
समझ देख मन माहीं,
कहे कबीर जब हरि दिखे,
सो हरि हरिजन माहीं,
मन लागो यार फ़क़ीरी में,
कहे कबीर सुनो भई साधू,
साहिब मिले सुबूरी में,
मन लागो यार फ़क़ीरी में। 

आबिदा प्रवीण कबीर लिरिक्स मीनिंग

मन लागो यार फ़कीरी में : कबीर साहेब की वाणी है की यह मन (हृदय) तो हरी की भक्ति में लग गया है। फकीरी से आशय ग़रीब/दरिद्रता से नहीं है। असल फकीरी होती है हृदय से सांसारिक माया जनित कार्य व्यवहार का त्याग कर देना। अब साधक का चित्त फकीरी में लग गया है।
माला कहे है काठ की तू क्यों फेरे मोहे : काठ/लकड़ी के माला साधक से कहती की की तुम मझे क्यों हाथों में फिरा रहे हो ?
मन का मनका फेर दे सो तुरत मिला दूँ तोहे : यदि तुम मन से ईश्वर को याद करो तो तुरंत ही तुमको मैं ईश्वर से मिला सकती हूँ।
कबीरा रेख सिन्दूर, उर काजर दिया ना जाय : सिन्दूर का स्थान महत्त्व रखता है इसलिए वहां पर काजल को नहीं भरा जा सकता है।
नैनन प्रीतम रम रहा, दूजा कहाँ समाय : मेरे नैनों में तो मेरे साईं का वास है, अन्य का स्थान नहीं है, अन्य काजल के समान हैं।
प्रीत जो लागी भूल गई, पीठ गई मन माहीं : ईश्वर के नाम की जो भक्ति मुझे लगी है अब वह मेरे मन में समा गई है।
रूम रूम (रोम रोम ) पीऊ पिऊ कहे मुख की सिरधा नाहीं : मेरा रोम रोम प्रिय के रंग में रच बस गया है, अब यह केवल मुख की श्रद्धा तक ही सीमित नहीं है। भाव है की ईश्वर अब सिर्फ कहने सुनने के विषय से अधिक हो गया है, इसमें कोई दिखावा शेष नहीं रहा है। 
बुरा भला सबको सुन लीज्यो, कर गुजरान ग़रीबी में : इस जगत में भला बुरा सबका सुन लो, लेकिन स्वंय को फकीरी के लायक बना कर फकीरी में ही गुजर बसर करना सीखो।
सती बिचारी सत किया, काँटों सेज बिछाय, ले सुधि पिया आपणा,चहुँ दिस अगन लगाय : सती (नारी) स्वंय के लिए काँटों की सेज तैयार करती है और अपने पिया को याद करके स्वंय के अग्नि लगा लेती है।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरू आपणे,गोविन्द दियो बताय : गुरु और गोविन्द दोनों ही खड़े हैं, ऐसे में अब किसके पाँव लगा जाए ? गुरु की महानता है की उसने हरी के विषय में साधक को ज्ञान दिया, इसलिए गुरु अधिक महत्त्व रखते हैं।
मेरा मुझ में कुछ नहीं,  जो कुछ है सो तेरा,तेरा तुझ को सौंप दे, क्या लागे है मेरा : व्यक्ति का अहम् समाप्त हो जाने पर उसे ज्ञात होता है की इस जगत में उसका कुछ भी नहीं है। जो है वह ईश्वर का है इसलिए ईश्वर को ईश्वर का ही दिया हुआ अर्पण करना है। भाव है की यह तन मन और धन हमारा नहीं है। 
जब मैं था तब हरि नहीं,अब हरि है मैं नाहीं, जब अन्धियारा मिट गया, दीपक देर कमाहीं : जब तक अहम्  रहता है, तब तक ईश्वर की प्राप्ति सम्भव नहीं हो पाती है।
रूखा सूखा खाय के, ठन्डा पानी पीओ, देख परायी चोपड़ी मत ललचावे जियो : ईश्वर जो भी आपको देता है उसे स्वीकार करो, रुखा सूखा जो मिल जाए उसे ग्रहण करो। दूसरों की चुपड़ी रोटी को देखकर मन को मत ललचावो। भाव है की जो ईश्वर देता है उचित है।
साधू कहावत कठिन है, लम्बा पेड़ ख़जूर, चढे तो चाखे प्रेम रस, गिरे तो चकना चूर : साधू कहलाना अत्यंत ही कठिन है। जैसे ख़जूर का बड़ा लम्बा पेड़ होता है, उस पर चढ़ कर ही मीठे खजूर के फल को प्राप्त किया जा सकता है लेकिन जरा सी चूक में यदि व्यक्ति निचे गिर जाए तो तुरंत मृत्यु को प्राप्त होता है। ऐसे ही भक्ति का मार्ग भी सावधानी का होता है। 
आखिर ये तन खाक़ मिलेगा क्यूं फ़िरता मग़रूरी में : एक रोज यह तन जल कर राख हो जाना है इसलिए इस पर घमंड मत करो।
लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात, दुल्हा दुल्हन मिल गए, फ़ीकी पड़ी बारात : जब दूल्हा और दुल्हन आपस में मिल जाते हैं, फेरों का समय आ जाता है तो बारात का महत्त्व घट जाता है ऐसे ही जब साधक अपने स्वामी से मिल जाता है तो अन्य सभी सांसारिक कर्म गौण हो जाते हैं।
जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति ना होय, नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावे सोय : जब तक साधक जगत से सबंध रखता है भक्ति संभव नहीं हो पाती है, जब वह इस जगत से नाता तोड़ देता है और हरी के चरणों में ध्यान लगाता है, अवश्य ही उसे ईश्वर प्राप्त होता है।
हद हद जाये हर कोइ,  अन हद जाये न कोय, हद अन हद के बीच में, रहा कबीरा सोय : हद सांसारिक सीमाएं हैं, अनहद सबंधों से परे है। इनके बीच कबीर साहेब मस्त हैं क्योंकि वे सहज हैं। 

Mann Lago Yaar - Abida Parveen | Gulzar | Sufi Kalaam | Times Music Spiritual

Song: Mann Lago Yaar Singer: Abida Parveen Album: Kabir By Abida Label: Times Music Spiritual

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1 टिप्पणी

  1. Waah.... bahut khoob