यहाँ किस को कहे अपना, सभी कहने को अपने है, जब परखा जरूरत पे, लगा अपने बस सपने है।
जिनको है अपना समझ समझ कर, सब कुछ अपना खोया, इस जीवन में उनकी वजह से, बस रोया ही रोया, अपनों के भरोसे पे, सिर्फ अरमा ही मचलने है, जब परखा जरूरत पे, लगा अपने बस सपने है।
अर्थ बिना कोई अर्थ नही है अर्थ अनर्थ कराता अर्थ की नियति है, भाई से भाई को लड़वाता थोड़े से स्वार्थ में तो, निज में बैर पनपता है जब परखा जरूरत पे, लगा अपने बस सपने है।
श्याम ही नैया श्याम खिवैया श्याम ही पालनहारा जिसकी नैया श्याम भरोसे, मिलता उसे किनारा संजू अजमाकर देख, सिर्फ बाबा ही अपने है जब परखा जरूरत पे, लगा अपने बस सपने है।