सांवली सूरत बड़ी मनभावन, धन्य हुई मैं तो कर के दर्शन, एक हाथ में मुरली सजी थी, दूसरी तरफ राधारानी खड़ी थी, देख के मन हर्षायो, सखी री मोहे वृंदावन भायो, सखी री मोहे वृंदावन भायो।
वृंदावन की कुंज गलीन में, खो गया मन मोहन की गलीन में, मन में बस गये बांके बिहारी, भूल के सुध बुध में तो सारी, सगरो जग ही भुलायो, सखी री मोहे वृंदावन भायो, सखी री मोहे वृंदावन भायो।
ओर कहीं ना लागे मनवा, फीकी फीकी लागे दुनिया, देख छवि राधा माधव की, पूरी हो गई हसरत दिल की, शर्मा ऐसो रिझायो, सखी री मोहे वृंदावन भायो, सखी री मोहे वृंदावन भायो।