गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो, गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
अरे सदगुरु सेन समझ के दीनी, अजी तोड़यो भरम को धागो, मना रे गुरु मिलन रंग लागो, गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
अरे अक्षय नगर से आयो म्हारो, हंसो भूल भरम में छाग्यो, अजी मोह ममता की, फांसी रे डाली, अजी मान बड़ाई में, भागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
अरे सदगुरु सेन समझ के दीनी, अजी तोड़यो भरम को धागों, मना रे गुरु मिलन रंग लागो, गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
अरे लख चौरासी में फिरयो, भटकता जन्म जन्म को तागो, अरे सदगुरु दियो नाम को, साबुन धोयो पाप को धागो, मना रे गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
अरे सदगुरु सेन समझ के दीनी, अजी तोड़यो भरम को धागो, मना रे गुरु मिलन रंग लागो, गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
अरे इंगला पिंगला, स्यानी सुकमना, घट रे मेन को तागो, अरे गगन मंडल को, खोलो किवाड़ी, अरे सुन मंडल में भागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
अरे सदगुरु सेन समझ के दीनी, अजी तोड़यो भरम को धागो, मना रे गुरु मिलन रंग लागो, गुरु मिलन रंग लागो मना रे,
Latest Newest Bhajans Complete Lyrics in Hindi (New Bhajan)
गुरु मिलन रंग लागो।
अरे सत की नौका संता को, रे सत्संग सदा आनंद में नहालो, देव प्रकाश कहे सुनो भाई साधो, आवागमन मिटा दो रे संतो, गुरु चरण में लागो, गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
अरे सदगुरु सेन समझ के दीनी, अजी तोड़यो भरम को धागो, मना रे गुरु मिलन रंग लागो, गुरु मिलन रंग लागो मना रे, गुरु मिलन रंग लागो।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्। एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि।। ॐ गुरु ॐ गुरु
गुरु वंदना Guru Vandana
जय सदगुरु देवन देववरं निज भक्तन रक्षण देहधरम्। परदुःखहरं सुखशांतिकरं निरुपाधि निरामय दिव्य परम्।।1।। जय काल अबाधित शांति मयं जनपोषक शोषक तापत्रयम्। भयभंजन देत परम अभयं मनरंजन भाविक भावप्रियम्।।2।। ममतादिक दोष नशावत हैं। शम आदिक भाव सिखावत हैं। जग जीवन पाप निवारत हैं। भवसागर पार उतारत हैं।।3।। कहुँ धर्म बतावत ध्यान कहीं। कहुँ भक्ति सिखावत ज्ञान कहीं। उपदेशत नेम अरु प्रेम तुम्हीं। करते प्रभु योग अरु क्षेम तुम्हीं।।4।। मन इन्द्रिय जाही न जान सके। नहीं बुद्धि जिसे पहचान सके। नहीं शब्द जहाँ पर जाय सके। बिनु सदगुरु कौन लखाय सके।।5।। नहीं ध्यान न ध्यातृ न ध्येय जहाँ। नहीं ज्ञातृ न ज्ञान न ज्ञेय जहाँ। नहीं देश न काल न वस्तु तहाँ। बिनु सदगुरु को पहुँचाय वहाँ।।6।। नहीं रूप न लक्षण ही जिसका। नहीं नाम न धाम कहीं जिसका। नहीं सत्य असत्य कहाय सके। गुरुदेव ही ताही जनाय सके।।7।। गुरु कीन कृपा भव त्रास गई। मिट भूख गई छुट प्यास गई। नहीं काम रहा नहीं कर्म रहा। नहीं मृत्यु रहा नहीं जन्म रहा।।8।। भग राग गया हट द्वेष गया। अघ चूर्ण भया अणु पूर्ण भया। नहीं द्वैत रहा सम एक भया। भ्रम भेद मिटा मम तोर गया।।9।। नहीं मैं नहीं तू नहीं अन्य रहा। गुरु शाश्वत आप अनन्य रहा। गुरु सेवत ते नर धन्य यहाँ। तिनको नहीं दुःख यहाँ न वहाँ।।10।।
गुरु मिलन रंग लागो || Guru Milan Rang laago || Prahlad Singh Tipaniya