बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे

बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे भजन

 
बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे

बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे,
शावा शावा नी मंदिरां च ढोल बजदे,
ढोल बजदे ओ नगाड़े बजदे,
बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे।


दर तेरे ते संगतां आईयां,
सोणी चुनरी ले आईयां,
चुनरी ओढ़ाने वेले ढोल बजदे,
बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे।

दर तेरे ते संगतां आईयां,
सोणा चूड़ा ले आईयां,
चूड़ा पहनाने वेले ढोल बजदे,
बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे।

दर तेरे ते संगतां आईयां,
सोणी पायल ले आईयां,
पायल पहनाने वेले ढोल बजदे,
बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे।

दर तेरे ते संगतां आईयां,
सोणी भेंट ले आईयां,
भेंट चढ़ाने वेले ढोल बजदे,
बल्ले बल्ले नी मंदिरां च ढोल बजदे।
 
हम मंदिर में बज रहे ढोल और नगाड़ों की गूंज से बहुत खुश हैं। हम श्रद्धा और प्रेम से मंदिर में मैया के लिए सुंदर चुनरी व चूड़ा भेंट में लायें हैं। ढोल नगाड़ों की गूंज से माहौल भक्तिमय हो गया है। यह हमारे लिए भक्ति और आनंद का उत्सव है जिसमें हम नाच रहे हैं और गा रहे हैं। पूरे मंदिर में खुशियों और भक्ति का वातावरण बना हुआ है। जय माता रानी की।

 भजन लिरिक्समंदिरां च ढोल बजदे कीर्तन में सबको नचाना है तो ये धमाकेदार भजन जरूर गाएं 

Singer : Krishna Bhajan mandali

आध्यात्मिक उत्साह और भक्ति का माहौल तब और भी जीवंत हो उठता है, जब भक्त अपने हृदय की श्रद्धा लेकर उस परम सत्ता के चरणों में पहुँचते हैं। यह उत्सव का क्षण होता है, जहाँ ढोल-नगाड़ों की थाप और संगत की भक्ति से वातावरण गुंजायमान हो जाता है। भक्तों का समूह, जो अपने साथ प्रेम और श्रद्धा से भरे उपहार लाता है, वह उस दैवीय शक्ति के प्रति अपनी निष्ठा को व्यक्त करता है। हर भेंट, चाहे वह चुनरी हो, चूड़ा हो, पायल हो, या कोई अन्य समर्पण, उस अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है, जो भक्त को उस परम शक्ति से जोड़ता है। यह उत्साह और भक्ति का संगम जीवन को एक उत्सव में बदल देता है, जहाँ हर थाप और हर भेंट उस प्रेममयी सान्निध्य का उत्सव मनाती है।

प्रभु के दरबार में आकर हर भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार अर्पण करता है, और उस क्षण मंदिर उत्सव-नगर में बदल जाता है। ढोल-नगाड़ों की ताल केवल बाजे भर नहीं हैं, बल्कि वे भक्तों के हृदय की उमंग और परमानंद के प्रतीक हैं। यहाँ "बल्ले बल्ले" और "शावा शावा" जैसे शब्द भक्ति को एक लोक-उत्सव का रूप देते हैं, जिससे यह संदेश मिलता है कि ईश्वर का दरबार केवल पूजा और साधना का ही स्थल नहीं, बल्कि अपार खुशी और जीवन की उमंग का केंद्र भी है।
 
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