डमरुवा बाजे काँवरिया नाचे भजन

डमरुवा बाजे काँवरिया नाचे भजन

डमरुवा बाजे काँवरिया नाचे,
धरती ढोले अम्बर झूमे संग बोल बम के धूणी लागे रे,
डमरुवा बाजे काँवरिया नाँचें,
सावन आया खुशियां लाया झूमो नाचो गाये रे,
कांधे कँवर लेकर जाओ शिव लिंग को नहलाओ रे,
मन के सारे पाप धूलेंगे अरे काया कंचन साजे,
डमरुवा बाजे काँवरिया नाचे,
नंदी पे असवार है भोला मस्त मलंगा लागे है,
नाग गले में जटा में गंगा मस्तक चंदा साजे है,
भोले की ये बांकी सुरतियाँ सबके मन को भावे,
डमरुवा बाजे काँवरिया नाचे
डमरुवा बाजे काँवरिया नाचे,
धरती ढोले अम्बर झूमे संग बोल बम के धूणी लागे रे। 
 

HD VIDEO - डमरुआ बाजे - Damruaa Baje | Sneh Upadhya का शिव भजन | New Bolbam Song

क्या महत्त्व है कावड़ का : मान्यता है की सर्वप्रथम भगवान् परशुराम ने अपने आराध्य देव श्री शिव के गंगा जल का कावड़ लाकर पूरा महादेव में प्राचीन शिव लिंग का जलाभिषेक किया था। परशुराम ने पुरे विश्व कर विजय हासिल करने के बाद (दिग्विजय के बाद ) मेरठ के पास पूरा नाम के स्थान पर विश्राम किया। यह स्थान उन्हें विश्राम करने के लिए अत्यंत ही मनमोहक और शांत प्रतीत हुआ। मान्यता है की परशुराम ने यहाँ श्री शिव मंदिर बनाने का सकल्प लिया और पत्थर लाने के लिए गंगा तट पर गए और जब वे वहां से पत्थर लाने लगे तो पत्थर रोने लगे क्यों की वे गंगा माता से अलग नहीं होना चाहते थे। तब परशुराम ने उनसे वादा किया की मंदिर निर्माण में काम आने वाले पत्थरों का चिरलकाल तक गंगा जल से अभिषेक किया जायेगा। 
 
कांवड़ यात्रा एक पवित्र तीर्थयात्रा है, जिसमें भक्त (जिन्हें कांवड़िए कहा जाता है) गंगा नदी या अन्य पवित्र जल स्रोतों से जल भरकर कांवड़ (एक बांस के डंडे पर लटके दो घड़ों) में ले जाते हैं और इसे शिव मंदिरों, विशेष रूप से बारह ज्योतिर्लिंगों या स्थानीय शिवालयों में चढ़ाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना, उनकी कृपा प्राप्त करना, और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करना है।
 
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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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