न मैं धन चाहूँ न रतन चाहूँ भजन
न मैं धन चाहूँ न रतन चाहूँ भजन
न मैं धन चाहूँ, न रतन चाहूँ
तेरे चरणों की धूल मिल जाये
तो मैं तर जाऊँ, हाँ मैं तर जाऊँ
हे राम तर जाऊँ।
मोह मन मोहे, लोभ ललचाये
कैसे कैसे ये नाग लहराये
इससे पहले कि मन उधर जाये
मैं तो मर जाऊँ, हाँ मैं मर जाऊँ
हे राम तर जाऊँ।
थम गया पानी, जम गयी कायी
बहती नदिया ही साफ़ कहलायी
मेरे दिल ने ही जाल फैलाये
अब किधर जाऊँ, मैं किधर जाऊँ,
अब किधर जाऊँ, मैं किधर जाऊँ,
तेरे चरणों की धूल मिल जाये
तो मैं तर जाऊँ, हाँ मैं तर जाऊँ
हे राम तर जाऊँ।
मोह मन मोहे, लोभ ललचाये
कैसे कैसे ये नाग लहराये
इससे पहले कि मन उधर जाये
मैं तो मर जाऊँ, हाँ मैं मर जाऊँ
हे राम तर जाऊँ।
थम गया पानी, जम गयी कायी
बहती नदिया ही साफ़ कहलायी
मेरे दिल ने ही जाल फैलाये
अब किधर जाऊँ, मैं किधर जाऊँ,
अब किधर जाऊँ, मैं किधर जाऊँ,
हे राम तर जाऊँ।
लाये क्या थे जो लेके जाना है
नेक दिल ही तेरा खज़ाना है
शाम होते ही पंछी आ जाये
अब तो घर जाऊँ अपने घर जाऊँ
अब तो घर जाऊँ अपने घर जाऊँ
लाये क्या थे जो लेके जाना है
नेक दिल ही तेरा खज़ाना है
शाम होते ही पंछी आ जाये
अब तो घर जाऊँ अपने घर जाऊँ
अब तो घर जाऊँ अपने घर जाऊँ
हे राम तर जाऊँ।
Na Main Dhan Chahun,Na Ratan Chahun...Kala Bazar (1960)
Na Main Dhan Chaahoon, Na Ratan Chaahoon
Tere Charanon Kee Dhool Mil Jaaye
To Main Tar Jaoon, Haan Main Tar Jaoon
He Raam Tar Jaoon.
Tere Charanon Kee Dhool Mil Jaaye
To Main Tar Jaoon, Haan Main Tar Jaoon
He Raam Tar Jaoon.
Film:Kala Bazar
Singer:Geeta Dutt, Sudha Malhotra
Lyricist: Shailendra
Music Director: S D Burman
Film cast: Dev Anand, Waheeda Rehman, Nanda, Rashid Khan, Vijay Anand
Film Director: Vijay Anand
Film Producer: Dev Anand
Year:1960
यह भजन राम के प्रति सच्ची भक्ति और वैराग्य का गीत है। भक्त धन-रत्न की चाह नहीं रखता, वह तो बस राम के चरणों की धूल माँगता है, जो उसे भवसागर से तार दे, जैसे कमल कीचड़ में खिले। मोह और लोभ के साँप मन को ललचाते हैं, पर भक्त चाहता है कि उसका मन भटके नहीं, वह राम की शरण में तरे।
जम गया मन जैसे स्थिर पानी, जो बहती नदी-सा निर्मल नहीं। दिल के जाल में उलझा भक्त पुकारता है—अब किधर जाऊँ? न कुछ लाए, न कुछ ले जाना—सच्चा खजाना तो नेक दिल है। जैसे पंछी शाम को नीड़ लौटे, वैसे ही भक्त राम के चरणों में घर पाना चाहता है। यह भजन सिखाता है—राम का नाम और उनकी शरण ही सच्चा धन है। सच्चे मन से पुकारो, राम हर बंधन काट, घर बुला लेते हैं।
जम गया मन जैसे स्थिर पानी, जो बहती नदी-सा निर्मल नहीं। दिल के जाल में उलझा भक्त पुकारता है—अब किधर जाऊँ? न कुछ लाए, न कुछ ले जाना—सच्चा खजाना तो नेक दिल है। जैसे पंछी शाम को नीड़ लौटे, वैसे ही भक्त राम के चरणों में घर पाना चाहता है। यह भजन सिखाता है—राम का नाम और उनकी शरण ही सच्चा धन है। सच्चे मन से पुकारो, राम हर बंधन काट, घर बुला लेते हैं।