उड़ गई रे नींदिया मेरी बंसी भजन

उड़ गई रे नींदिया मेरी बंसी भजन

 उड़ गई रे निंदिया मेरी,
बंसी श्याम ने बजाई रे,
खो गया चैन मेरा,
सारी रात सो ना पाई,
उड़ गई रे निंदिया मेरी,
बंसी श्याम ने बजाई रे।

बंसी की तान सुनकर,
हैरान हो गई मै,
कहाँ पर बजी जो,
परेशान हो गई मैं,
मै हो गई दीवानी मुरली,
मेरे मन को भायी रे,
खो गया चेन मेरा,
सारी रात सो ना पाई,
उड़ गई रे निंदिया मेरी,
बंसी श्याम ने बजाई रे।

छुप गया जाने कहाँ पर,
मुरली दर्द की सुनाकर,
इक बार फिर बजा दे कान्हां,
सामने तू आकर,
तेरी सांवरि सुरतिया मेरे,
मन को बहूत भायी रे,
खो गया चैन मेरा,
सारी रात सो ना पाई,
उड़ गई रे निंदिया मेरी,
बंसी श्याम ने बजाई रे।

मुरली सुनी है जबसे,
मेरी अंखिया तरस रही है,
पानी बिना है मछली,
जैसे मै तरस रही हूँ,
सुनकर तेरी मुरलीया मुझको,
याद बहूत आई रे,
खो गया चैन मेरा,
सारी रात सो ना पाई,
उड़ गई रे निंदिया मेरी,
बंसी श्याम ने बजाई रे।

उड़ गई रे नींदिया मेरी,
बंसी श्याम ने बजाई रे,
खो गया चैन मेरा,
सारी रात सो ना पाई,
उड़ गई रे निंदिया मेरी,
बंसी श्याम ने बजाई रे।

उड़ गई रे निंदिया मेरी बंसी क्या श्याम ने बजाई !! ज्वाला नगर दिल्ली 

Ud gayi re nindiya meri,
Bansi Shyam ne bajaai re,
Kho gaya chain mera,
Saari raat so na paai,
Ud gayi re nindiya meri,
Bansi Shyam ne bajaai re.


श्याम की बंसी की मधुर तान आत्मा को झंकृत कर देती है, मानो सारी सांसारिक बंधन छूट जाएं। यह तान केवल कानों तक नहीं, हृदय की गहराइयों में उतरती है, जहां चैन और नींद गायब हो जाते हैं। मन उस अनदेखे की खोज में बेचैन हो उठता है, जो बंसी बजाकर छिप गया। जैसे कोई प्यासा जल के लिए तरसता है, वैसे ही आत्मा उस सांवरे की एक झलक को तरसने लगती है। यह बेचैनी कोई साधारण व्याकुलता नहीं, बल्कि एक पवित्र खोज है, जो मन को संसार से परे ले जाती है।

बंसी की धुन में छिपा है एक निमंत्रण—उस सत्य की ओर, जो दिखता नहीं, पर महसूस होता है। यह धुन उस मछली की तरह है, जो पानी के बिना तड़पती है; आत्मा भी उस प्रेम के बिना अधूरी है। उस सांवरी सूरत की याद मन को बार-बार उसी ओर खींचती है, जहां न समय का बंधन है, न चिंता का बोझ। इस खींचतान में नींद उड़ जाना स्वाभाविक है, क्योंकि मन अब उस अनंत के साथ एकाकार होने को बेताब है।

हर धुन में एक पुकार है—उसके सामने आने की, उसे देखने की। यह पुकार मन को जगाए रखती है, रातें बेचैन करती है, पर यह बेचैनी ही सच्ची राह दिखाती है। जैसे कोई दीया अंधेरे में टिमटिमाता है, वैसे ही बंसी की तान मन के अंधेरे को दूर करती है। यह तान सिखाती है कि सच्चा सुख बाहर नहीं, उस प्रेम में है, जो हृदय को हर पल अपने रंग में रंग देता है।

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