मेंहदी रची थारे हाथा मे भजन लिरिक्स

मेंहदी रची थारे हाथा मे भजन लिरिक्स

मेंहदी रची थारे हाथा मे,
उड रहयो काजल आंख्या मे,
चुनडी रो रंग सुरंग म्हारी आमज माँ।।

अरे चांद उग्यो ओ राता मे,
फूल उग्यो रण बागा मे,
अरे चांद उग्यो ओ राता मे,
फूल उग्यो रण बागा मे,
थारो ऐसो सुहाणौ रूप म्हारी दुर्गा माँ
मेंहदी रची थारे हाथा मे, औहौ।

अरे रूप सुहाणौ जद सु दैख्यौ
निंदडली नहीं आंख्या ने,
भूल गई सब कामा ने ,, औहौ
याद करूं थारे नामा ने
माया रो छुटो संग म्हारी आमज माँ
मेंहदी रची थारे हाथा मे, औहौ।

विचेडी नगरी माता आप वीराजौ,
कारज सारो माँ कारज सारो,
औ थारा दर्शन करबा,
औ थारा दर्शन करबा,
आवे या दुनिया सारी औ माँ,,,,,,
जय हो थारी मैया,, जय हो थारी मैया,
जय हो थारी मैया,, जय हो थारी मैया,
जय हो थारी मैया,, जय हो थारी मैया।

थे कहो तो माता मैं तो नथणि बन जाऊं,
नथणि बन जाऊं, थारा मुखड़ा पे रम जाऊं,
बोर गूथउ थारे माथा पे,
चुड़लो मँगाओ थारे हाथा में,
बण जाऊँ बाजूबंद म्हारी आमज माँ।।

थे कहो तो माता मैं तो पायलड़ी बन जाऊं,
पायलड़ी बन जाऊं, थारा चरणा में रम जाऊं,
फूल बिछउ थारा पावा में,
नित नित दर्शन आवा मैं,
नैणा में करलु बंद म्हारी आमज माँ।।

मेंहदी रची थारे हाथा मे,
उड रहयो काजल आंख्या मे,
चुनडी रो रंग सुरंग म्हारी अम्बे माँ।।

सुन्दर भजन में देवी माँ की दिव्य छवि का वर्णन हृदय को भावविभोर कर देता है। माँ के हाथों में रची मेंहदी, उनकी ममतामयी कृपा को दर्शाती है, जो भक्तों के जीवन को आशीषों से भर देती है। उनकी आँखों में फैला काजल, तेज और करुणा का मिश्रण है, जो सारे संसार को अपनी दिव्य दृष्टि से अभिभूत कर देता है।

रात्रि में उदित होता चाँद और निर्जन भूमि में खिलते पुष्प, यह इंगित करते हैं कि माँ की कृपा से अंधकार में भी प्रकाश फैलता है, और शुष्क जीवन में भी आनंद का संचार होता है। माँ का रूप इतना अनुपम और अद्भुत है कि उसे देखकर मन समर्पण की भावना से भर जाता है। माँ के सान्निध्य की अनुभूति से सांसारिक चिंताओं का विस्मरण हो जाता है, और केवल उनके नाम का स्मरण ही मन को संतोष और शांति प्रदान करता है।

भजन में माँ के दर्शन की अपार महिमा प्रकट होती है—जिसके लिए संसार भर के लोग उनकी कृपा पाने को आतुर रहते हैं। माँ से यह विनती प्रकट होती है कि भक्त उनके अलंकरण का एक अंश बन जाए, कभी उनके मुखमंडल की शोभा में सजकर, तो कभी उनके चरणों में समर्पित होकर। यह आत्म-विसर्जन का भाव माँ की सेवा में तन्मयता का प्रतीक है, जहाँ भक्त स्वयं को भूलकर उनकी भक्ति में रम जाता है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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