तेरी बांकी अदा पे बलिहारी जाऊं
तेरी बांकी अदा पे बलिहारी जाऊं
तेरी बांकी अदा पे बलिहारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल,
गालों पे तेरी घुंघराली लटकन,
तेरी मीठी बसुरियां पे वारी जाऊ,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
राधा रानी संग विराजे,
देख छवि मन नुपुर बाजे,
तेरी करुणा की मैं भी सौगात पाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
सूरत तेरी नन्द दुलारे,
गोविन्द मन में बस गई हमारे,
तेरे चरणों का मैं भी थोडा प्यार पाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
तेरी बांकी अदा पे बलिहारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल,
गालों पे तेरी घुंघराली लटकन,
तेरी मीठी बसुरियां पे वारी जाऊ,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
राधा रानी संग विराजे,
देख छवि मन नुपुर बाजे,
तेरी करुणा की मैं भी सौगात पाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
सूरत तेरी नन्द दुलारे,
गोविन्द मन में बस गई हमारे,
तेरे चरणों का मैं भी थोडा प्यार पाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
तेरी बांकी अदा पे बलिहारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं,
तेरे मोटे मोटे नैनो पे मैं वारी जाऊं।।
सुन्दर भजन में दिव्य सौंदर्य की सजीव अभिव्यक्ति दिखाई देती है। श्रीकृष्णजी के अनुपम स्वरूप को देखकर मन भावविभोर हो उठता है। उनके मोर मुकुट से लेकर घुँघराले बालों की लटों तक, सब कुछ एक अलौकिक आकर्षण से भरा हुआ है। ऐसा सौंदर्य, जो केवल बाह्य रूप से नहीं, बल्कि आत्मा के स्तर पर भी रस उत्पन्न करता है।
श्रीकृष्णजी की बांसुरी की मधुर ध्वनि, प्रेम और करुणा से परिपूर्ण एक दिव्य संदेश लेकर आती है। यह ध्वनि भक्त के मन को निर्मल करने वाली होती है, जिससे आत्मा एक विशुद्ध अनुभूति में डूब जाती है। राधारानी के संग उनकी मोहक छवि और उनके कोमल भाव मन को एक विशेष आनंद से भर देते हैं।
उनकी करुणा अनंत है—जो भी उनके चरणों में आत्मसमर्पण करता है, वह प्रेम और कृपा का प्रसाद पाता है। भजन में यह गहन अनुभूति प्रकट होती है कि श्रीकृष्णजी का सान्निध्य स्वयं को खोकर पाना है। यह आत्म-विसर्जन नहीं, बल्कि एक श्रेष्ठतम आत्म-बोध का क्षण है, जहाँ मन सांसारिकता से मुक्त होकर दिव्यता में विलीन हो जाता है।
भक्त की विनम्र अभिलाषा यही रहती है कि वह श्रीकृष्णजी की करुणा के सागर में एक छोटी सी बूँद बन जाए। उनके चरणों की सेवा, उनकी दिव्य दृष्टि की अनुभूति, और उनके प्रेम में तन्मयता ही जीवन का परम लक्ष्य हो जाता है।
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