आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे

आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे भजन

आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे,
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे,
मीरा बुलावे थाने, दासी बुलावे रे,
मीरा बुलावे थाने, दासी बुलावे रे,
दासी बुलावे रे,
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे।।

बाबो सा और मायड़ म्हाने लाड़ लड़ायी,
राम जाने राणा संग क्यूँ म्हाने ब्याही,
बाबो सा और मायड़ म्हाने लाड़ लड़ायी,
राम जाने राणा संग क्यूँ म्हाने ब्याही,
दुनिया री प्रीत म्हाने डाए कोनी आवे रे,
दुनिया री प्रीत म्हाने डाए कोनी आवे रे,
डाए कोनी आवे,
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे।।

पत्थर ने काई पूजो बोले यो राणा जी,
ठाकुर ने जिमाओ जद्द प्रीत साची माना जी,
पत्थर ने काई पूजो बोले यो राणा जी,
ठाकुर ने जिमाओ जाना प्रीत साची माना जी,
झूठी कपटनी कुल के दाग लगावे रे,
झूठी कपटनी कुल के दाग लगावे रे,
दाग लगावे रे,
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे।।

दूध को कटोरो भर लाया मीरा बाई,
पियो म्हारा श्याम थाने मीरा री दुहाई,
दूध को कटोरो भर लाया मीरा बाई,
पियो म्हारा श्याम थाने मीरा री दुहाई,
प्रेम दीवानी मीरा श्याम रिझावे रे,
प्रेम दीवानी मीरा श्याम रिझावे रे,
श्याम रिझावे,
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे।।

मीरा री पुकार सुन श्याम धणी आयो,
दूध को कटोरो भरयो सारो गटकायो,
मीरा री पुकार सुन श्याम धणी आयो,
दूध को कटोरो भरयो सारो गटकायो,
भोला भगता री ठाकुर लाज बचावे रे,
भोला भगता री ठाकुर लाज बचावे रे,
लाज बचावे रे,
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे।।

आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे,
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे,
मीरा बुलावे थाने, दासी बुलावे रे,
मीरा बुलावे थाने, दासी बुलावे रे,
दासी बुलावे रे,
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे।।

 
आजा मनमोहन मीरा मेड़तनी बुलावे

सुन्दर भजन में भक्ति की प्रबल पुकार और श्रीकृष्णजी की अनुकंपा की गहरी अनुभूति समाहित है। मीरा की आत्मा श्याम के प्रेम में पूरी तरह समर्पित हो गई है—यह प्रेम सांसारिक बंधनों से परे, शुद्ध और अद्वितीय है। उनके हृदय की पुकार किसी साधारण प्रार्थना नहीं, बल्कि आत्मा की गहन तड़प है, जो श्रीकृष्णजी को अपने दिव्य धाम से बुलाने के लिए व्याकुल कर देती है।

संसार के बंधन मीरा के अनुराग को रोक नहीं सकते। राजघराने की मर्यादाएँ, सामाजिक रूढ़ियाँ, और कुल की प्रतिष्ठा—सब कुछ उनके लिए अर्थहीन हो जाता है, जब उनका हृदय श्रीकृष्णजी की भक्ति में लीन होता है। उनके प्रेम की स्वच्छंदता सांसारिक प्रीत से अलग है, क्योंकि यह आत्मा की गहराइयों से जन्मा सच्चा समर्पण है। भजन में यह भाव स्पष्ट होता है कि जब प्रेम में सत्य की अनुभूति होती है, तब समाज की बंधनकारी परंपराएँ भी फीकी पड़ जाती हैं।

मीरा का प्रेम श्रीकृष्णजी के प्रति इतना गहरा है कि वह अपने समर्पण को जीवन का एकमात्र उद्देश्य मान लेती हैं। दूध का कटोरा, जिसे मीरा ने श्रीकृष्णजी के चरणों में अर्पित किया, केवल एक साधारण अर्पण नहीं था, बल्कि उनके अनन्य विश्वास और प्रेम का प्रतीक था। श्रीकृष्णजी ने इसे स्वीकार कर मीरा की भक्ति को सत्य सिद्ध कर दिया—यह भक्त और भगवान के बीच के अटूट संबंध की दिव्य प्रमाणिकता है।

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