श्री खाटू श्याम जी चालीसा हिंदी लेखक : आचार्य डॉ मनोज विप्लव सिरसा (हरियाणा)
श्री गुरु पदरज शीशधर प्रथम सुमिरू गणेश ॥
ध्यान शारदा ह्रदयधर भजुँ भवानी महेश ॥
चरण शरण विप्लव पड़े हनुमत हरे कलेश।
श्याम चालीसा भजत हुँ जयति खाटू नरेश ॥
चौपाई :-
वन्दहुँ श्याम प्रभु दुःख भंजन,
विपत विमोचन कष्ट निकंदन
सांवल रूप मदन छविहारी,
शर तिलक भाल दुतिकारी।
मौर मुकुट केसरिया बागा,
ल वैजयंति चित अनुरागा।
नील अश्व मौरछडी प्यारी,
रतल त्रय बाण दुःख हारी।
सूर्यवर्च वैष्णव अवतारे,
र मुनि नर जन जयति पुकारे।
पिता घटोत्कच मोर्वी माता,
पाण्डव वंशदीप सुखदाता।
बर्बर केश स्वरूप अनूपा,
र्बरीक अतुलित बल भूपा।
कृष्ण तुम्हे सुह्रदय पुकारे,
नारद मुनि मुदित हो निहारे।
मौर्वे पूछत कर अभिवन्दन,
जीवन लक्ष्य कहो यदुनन्दन।
गुप्त क्षेत्र देवी अराधना,
दुष्ट दमन कर साधु साधना।
बर्बरीक बाल ब्रह्मचारी,
कृष्ण वचन हर्ष शिरोधारी।
तप कर सिद्ध देवियाँ कीन्हा,
प्रबल तेज अथाह बल लीन्हा।
यज्ञ करे विजय विप्र सुजाना,
रक्षा बर्बरीक करे प्राना।
नव कोटि दैत्य पलाशि मारे,
नागलोक वासुकि भय हारे।
सिद्ध हुआ चँडी अनुष्ठाना,
बर्बरीक बलनिधि जग जाना।
वीर मोर्वेय निजबल परखन,
चले महाभारत रण देखन।
माँगत वचन माँ मोर्वि अम्बा,
पराजित प्रति पाद अवलम्बा
आगे मिले माधव मुरारे,
पूछे वीर क्युँ समर पधारे।
रण देखन अभिलाषा भारी,
हारे का सदैव हितकारी।
तीर एक तीहुँ लोक हिलाये,
बल परख श्री कृष्ण सँकुचाये
यदुपति ने माया से जाना,
पार अपार वीर को पाना।
धर्म युद्ध की देत दुहाई,
माँगत शीश दान यदुराई।
मनसा होगी पूर्ण तिहारी,
रण देखोगे कहे मुरारी।
शीश दान बर्बरीक दीन्हा,
अमृत बर्षा सुरग मुनि कीन्हा
देवी शीश अमृत से सींचत,
केशव धरे शिखर जहँ पर्वत।
जब तक नभ मण्डल मे तारे,
सुर मुनि जन पूजेंगे सारे।
दिव्य शीश मुद मंगल मूला,
भक्तन हेतु सदा अनुकूला।
रण विजयी पाण्डव गर्वाये,
बर्बरीक तब न्याय सुनाये
सर काटे था चक्र सुदर्शन,
रणचण्डी करती लहू भक्षन।
न्याय सुनत हर्षित जन सारे,
जग में गूँजे जय जयकारे।
श्याम नाम घनश्याम दीन्हा,
अजर अमर अविनाशी कीन्हा।
जन हित प्रकटे खाटू धामा,
लख दाता दानी प्रभु श्यामा।
खाटू धाम मौक्ष का द्वारा,
श्याम कुण्ड बहे अमृत धारा।
शुदी द्वादशी फाल्गुण मेला,
खाटू धाम सजे अलबेला।
एकादशी व्रत ज्योत द्वादशी,
सबल काय परलोक सुधरशी।
खीर चूरमा भोग लगत हैं,
दुःख दरिद्र कलेश कटत हैं।
श्याम बहादुर सांवल ध्याये,
आलु सिँह ह्रदय श्याम बसाये।
मोहन मनोज विप्लव भाँखे,
श्याम धणी म्हारी पत राखे।
नित प्रति जो चालीसा गावे,
सकल साध सुख वैभव पावे।
श्याम नाम सम सुख जग नाहीं,
भव भय बन्ध कटत पल माहीं।
दोहा :-
त्रिबाण दे त्रिदोष मुक्ति दर्श दे आत्म ज्ञान
चालीसा दे प्रभु भुक्ति सुमिरण दे कल्यान
खाटू नगरी धन्य हैं श्याम नाम जयगान
अगम अगोचर श्याम हैं विरदहिं स्कन्द पुरान
ध्यान शारदा ह्रदयधर भजुँ भवानी महेश ॥
चरण शरण विप्लव पड़े हनुमत हरे कलेश।
श्याम चालीसा भजत हुँ जयति खाटू नरेश ॥
चौपाई :-
वन्दहुँ श्याम प्रभु दुःख भंजन,
विपत विमोचन कष्ट निकंदन
सांवल रूप मदन छविहारी,
शर तिलक भाल दुतिकारी।
मौर मुकुट केसरिया बागा,
ल वैजयंति चित अनुरागा।
नील अश्व मौरछडी प्यारी,
रतल त्रय बाण दुःख हारी।
सूर्यवर्च वैष्णव अवतारे,
र मुनि नर जन जयति पुकारे।
पिता घटोत्कच मोर्वी माता,
पाण्डव वंशदीप सुखदाता।
बर्बर केश स्वरूप अनूपा,
र्बरीक अतुलित बल भूपा।
कृष्ण तुम्हे सुह्रदय पुकारे,
नारद मुनि मुदित हो निहारे।
मौर्वे पूछत कर अभिवन्दन,
जीवन लक्ष्य कहो यदुनन्दन।
गुप्त क्षेत्र देवी अराधना,
दुष्ट दमन कर साधु साधना।
बर्बरीक बाल ब्रह्मचारी,
कृष्ण वचन हर्ष शिरोधारी।
तप कर सिद्ध देवियाँ कीन्हा,
प्रबल तेज अथाह बल लीन्हा।
यज्ञ करे विजय विप्र सुजाना,
रक्षा बर्बरीक करे प्राना।
नव कोटि दैत्य पलाशि मारे,
नागलोक वासुकि भय हारे।
सिद्ध हुआ चँडी अनुष्ठाना,
बर्बरीक बलनिधि जग जाना।
वीर मोर्वेय निजबल परखन,
चले महाभारत रण देखन।
माँगत वचन माँ मोर्वि अम्बा,
पराजित प्रति पाद अवलम्बा
आगे मिले माधव मुरारे,
पूछे वीर क्युँ समर पधारे।
रण देखन अभिलाषा भारी,
हारे का सदैव हितकारी।
तीर एक तीहुँ लोक हिलाये,
बल परख श्री कृष्ण सँकुचाये
यदुपति ने माया से जाना,
पार अपार वीर को पाना।
धर्म युद्ध की देत दुहाई,
माँगत शीश दान यदुराई।
मनसा होगी पूर्ण तिहारी,
रण देखोगे कहे मुरारी।
शीश दान बर्बरीक दीन्हा,
अमृत बर्षा सुरग मुनि कीन्हा
देवी शीश अमृत से सींचत,
केशव धरे शिखर जहँ पर्वत।
जब तक नभ मण्डल मे तारे,
सुर मुनि जन पूजेंगे सारे।
दिव्य शीश मुद मंगल मूला,
भक्तन हेतु सदा अनुकूला।
रण विजयी पाण्डव गर्वाये,
बर्बरीक तब न्याय सुनाये
सर काटे था चक्र सुदर्शन,
रणचण्डी करती लहू भक्षन।
न्याय सुनत हर्षित जन सारे,
जग में गूँजे जय जयकारे।
श्याम नाम घनश्याम दीन्हा,
अजर अमर अविनाशी कीन्हा।
जन हित प्रकटे खाटू धामा,
लख दाता दानी प्रभु श्यामा।
खाटू धाम मौक्ष का द्वारा,
श्याम कुण्ड बहे अमृत धारा।
शुदी द्वादशी फाल्गुण मेला,
खाटू धाम सजे अलबेला।
एकादशी व्रत ज्योत द्वादशी,
सबल काय परलोक सुधरशी।
खीर चूरमा भोग लगत हैं,
दुःख दरिद्र कलेश कटत हैं।
श्याम बहादुर सांवल ध्याये,
आलु सिँह ह्रदय श्याम बसाये।
मोहन मनोज विप्लव भाँखे,
श्याम धणी म्हारी पत राखे।
नित प्रति जो चालीसा गावे,
सकल साध सुख वैभव पावे।
श्याम नाम सम सुख जग नाहीं,
भव भय बन्ध कटत पल माहीं।
दोहा :-
त्रिबाण दे त्रिदोष मुक्ति दर्श दे आत्म ज्ञान
चालीसा दे प्रभु भुक्ति सुमिरण दे कल्यान
खाटू नगरी धन्य हैं श्याम नाम जयगान
अगम अगोचर श्याम हैं विरदहिं स्कन्द पुरान
लेखक : आचार्य डॉ मनोज विप्लव सिरसा (हरियाणा)
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Author - Saroj Jangir
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