मुझे तुमने दाता बहुत कुछ दिया है भजन
मुझे तुमने दाता बहुत कुछ दिया है भजन
मुझे तुमने दाता बहुत कुछ दिया है,तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया।
ना मिलती अगर दी हुई दात तेरी,
तो क्या थी ज़माने में औकात मेरी।
तुम्ही ने तो जीने के काबिल किया है,
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया॥
मुझे है सहारा तेरी बंदगी का,
है जिसपर गुज़ारा मेरी ज़िन्दगी का।
मिला मुझ को जो कुछ तुम्ही से मिला है,
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया॥
किया कुछ ना मैंने, शरमसार हूँ मैं,
तेरी रहमतो का तलबगार हूँ मैं।
दिया कुछ नहीं बस लिया ही लिया है,
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया॥
मिला मुझको जो कुछ बदोलत तुम्हारी,
मेरा कुछ नहीं सब है दौलत तुम्हारी।
उसे क्या कमी जो तेरा हो लिया है,
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया॥
मेरी ही नहीं तू सभी का है दाता,
तुही सब को देता, तुही है खिलाता।
तेरा ही दिया मैंने खाया पीया है,
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया॥
मुझे तुमने दाता बहुत कुछ दिया है Mujhe Tune Daata Bahut Kuch Diya Hai
सुंदर भजन में ईश्वर के प्रति आभार और श्रद्धा को प्रदर्शित किया गया है। यह अनुभूति प्रकट करती है कि मनुष्य जो कुछ भी प्राप्त करता है, वह परमात्मा की कृपा और उनकी दयालुता के कारण ही संभव है। जीवन की प्रत्येक उपलब्धि, सुख और शांति, ईश्वर के अनमोल उपहारों से ही प्राप्त होती है।
संस्कार और आध्यात्मिक चेतना व्यक्ति को विनम्र बनाती है, जहाँ वह स्वयं को प्रभु की असीम कृपा का पात्र मानकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है। यह भाव प्रकट करता है कि बिना ईश्वरीय कृपा के मनुष्य कुछ भी नहीं, और जो कुछ उसे मिला है, वह केवल प्रभु की दया से मिला है।
सच्ची भक्ति वह होती है, जहाँ व्यक्ति स्वयं को प्रभु की सेवा में समर्पित करता है और अपने जीवन को उनकी मर्यादा और आदर्शों के अनुरूप चलाने का प्रयास करता है। यह संदेश आत्मनिरीक्षण करने की प्रेरणा देता है, जिससे व्यक्ति अपने अहंकार को छोड़कर प्रभु की कृपा को स्वीकार कर सके।
संस्कार और आध्यात्मिक चेतना व्यक्ति को विनम्र बनाती है, जहाँ वह स्वयं को प्रभु की असीम कृपा का पात्र मानकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है। यह भाव प्रकट करता है कि बिना ईश्वरीय कृपा के मनुष्य कुछ भी नहीं, और जो कुछ उसे मिला है, वह केवल प्रभु की दया से मिला है।
सच्ची भक्ति वह होती है, जहाँ व्यक्ति स्वयं को प्रभु की सेवा में समर्पित करता है और अपने जीवन को उनकी मर्यादा और आदर्शों के अनुरूप चलाने का प्रयास करता है। यह संदेश आत्मनिरीक्षण करने की प्रेरणा देता है, जिससे व्यक्ति अपने अहंकार को छोड़कर प्रभु की कृपा को स्वीकार कर सके।
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Author - Saroj Jangir
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