कोण किसै नै घराँ बुलावै कोण किसे कै
कोण किसै नै घराँ बुलावै कोण किसे कै जावै रै भजन
कोण किसै नै घराँ बुलावै, कोण किसे कै जावै रैहर दाणे पै मोहर लागरी, कोण दाणा पाणी ल्यावै
कोण किसै नै घराँ बुलावै, कोण किसे कै जावै रै।
दाणा धरती म्ह पड़ ज्यासै, पड़ कै पेड़ बड़ा हो ज्यासै,
कित की धरती किट का दाणा कोण यो दाणा खावै
कोण किसै नै घराँ बुलावै, कोण किसे कै जावै रै।
घर आये का मान निभाणा, करके सेवा मत इतराणा,
कर्ज़ा पिछले जन्म का तेरा, सुणले वो उतरावे
कोण किसै नै घराँ बुलावै, कोण किसे कै जावै रै।
घर आवणीया रूप प्रभु का,तू भी सुकर मनाले उसका,
सच्चे मन की सेवा प्यारे, अपणा असर दिखावै,
कोण किसै नै घराँ बुलावै, कोण किसे कै जावै रै।
दुर्योधन की त्याग मिठाई, विदुराणी घर चले कन्हाई,
केलेया ऊपर मोहर लागरी, कह छिलके श्याम चबावै,
कोण किसै नै घराँ बुलावै, कोण किसे कै जावै रै।
सुंदर भजन में आध्यात्मिक गहराई और सेवा की भावना को प्रदर्शित किया गया है। इसमें जीवन के गूढ़ सत्य को उजागर करते हुए यह बताया गया है कि कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा से किसी के घर आता है या किसी को आमंत्रित करता है।
जीवन का प्रत्येक अन्न परमात्मा की मोहर से अंकित होता है, और मनुष्य केवल उसका उपभोक्ता बनता है। वह इस संसार में आते हुए कुछ नहीं लाया, और जाते हुए भी कुछ नहीं ले जाएगा। यही सत्य सिखाता है कि जीवन में अहंकार और मोह को त्यागकर, विनम्रता और सेवा को अपनाना आवश्यक है।
सच्ची सेवा वह होती है, जिसमें अहंकार का स्थान नहीं होता। मनुष्य को जो अवसर मिलता है, वह केवल उसके पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है। जब किसी को सेवा का अवसर मिले, तो उसे सहजता और समर्पण के साथ स्वीकार करना चाहिए।
प्रभु का रूप हर व्यक्ति में विद्यमान है। जब कोई घर आए, तो उसे प्रभु के रूप में देखना चाहिए और सम्मानपूर्वक सेवा करनी चाहिए। यही वास्तविक आध्यात्मिक चेतना को विकसित करता है और परमात्मा की कृपा को प्राप्त करने का मार्ग बनता है।
जीवन का प्रत्येक अन्न परमात्मा की मोहर से अंकित होता है, और मनुष्य केवल उसका उपभोक्ता बनता है। वह इस संसार में आते हुए कुछ नहीं लाया, और जाते हुए भी कुछ नहीं ले जाएगा। यही सत्य सिखाता है कि जीवन में अहंकार और मोह को त्यागकर, विनम्रता और सेवा को अपनाना आवश्यक है।
सच्ची सेवा वह होती है, जिसमें अहंकार का स्थान नहीं होता। मनुष्य को जो अवसर मिलता है, वह केवल उसके पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है। जब किसी को सेवा का अवसर मिले, तो उसे सहजता और समर्पण के साथ स्वीकार करना चाहिए।
प्रभु का रूप हर व्यक्ति में विद्यमान है। जब कोई घर आए, तो उसे प्रभु के रूप में देखना चाहिए और सम्मानपूर्वक सेवा करनी चाहिए। यही वास्तविक आध्यात्मिक चेतना को विकसित करता है और परमात्मा की कृपा को प्राप्त करने का मार्ग बनता है।
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