बाबा मेरे हार गया हूँ अब आकर सम्भालो

बाबा मेरे हार गया हूँ अब आकर सम्भालो

(मुखड़ा)
बाबा मेरे हार गया हूँ,
अब आकर सम्भालो मुझे,
दर पे तेरे ठहरा हुआ हूँ,
अब दो तुम सहारा मुझे।।


(अंतरा)
दुख में सबने साथ हमारा छोड़ा है,
जग से मोह छुड़ा कर तुझसे जोड़ा है,
तेरे बिना, तेरे बिना,
तेरे बिना कौन है हमारा,
हारे का सहारा मेरे श्याम।।

(अंतरा)
मेरे अपनों ने भी मुझको छोड़ दिया,
ढोंग बताकर नाता मुझसे तोड़ लिया,
मैंने तुझे, मैंने तुझे,
मैंने तुझे रोते रोते,
रातों में पुकारा मेरे श्याम।।

(अंतरा)
बाबा एक ही अर्जी करना चाहता हूँ,
तेरे चरणों में मैं मरना चाहता हूँ,
खाटू हो वो, खाटू हो वो,
खाटू हो वो जब छोड़ूं वो प्राण मेरे।।

(अंतरा)
मैं रोता, दुनिया मुझ पर हँसती थी,
जान मेरी मेरे परिवार में बसती थी,
खुश है मगर, खुश है मगर,
खुश है मगर हर्ष ओ बाबा,
पाके तेरा सहारा मेरे श्याम।।

(पुनरावृत्ति)
बाबा मेरे हार गया हूँ,
अब आकर सम्भालो मुझे,
दर पे तेरे ठहरा हुआ हूँ,
अब दो तुम सहारा मुझे।।

हार गया मैं इस दुनिया से अब तो बाबा गले लगा ले। Shree Shyam Rath

हृदय जब दुखों के बोझ तले दब जाता है और संसार का हर दरवाजा बंद दिखता है, तब प्रभु की शरण ही एकमात्र आश्रय बनती है। यह पुकार उस भक्त की है जो हारकर भी हिम्मत नहीं हारता, बल्कि प्रभु के चरणों में अपनी सारी पीड़ा अर्पित कर देता है। जैसे कोई थका हुआ पथिक आखिरी आस में अपने प्रिय के द्वार पर ठहरता है, वैसे ही भक्त प्रभु के दर पर खड़ा होकर केवल उनका सहारा माँगता है।

इस सुंदर भजन में आत्मसमर्पण और श्रद्धा का भाव गहन रूप से प्रकट होता है। जब जीवन संघर्षों से भर जाता है, और संसार से कोई सहारा नहीं मिलता, तब मन केवल ईश्वर की शरण में जाता है। यह अनुभूति हमें सिखाती है कि प्रभु ही सच्चे सहायक और संबल हैं, जो कठिनाइयों के समय भक्त का हाथ थाम लेते हैं।

भक्त जब समस्त मोह-माया को त्यागकर केवल श्रीश्यामजी की भक्ति में रम जाता है, तब उसे दिव्य शांति और आत्मबल प्राप्त होता है। यह भजन आत्मा की पुकार को दर्शाता है, जहां भक्त अपने समस्त दुखों और विफलताओं को प्रभु के चरणों में अर्पित कर, उनके प्रेम और कृपा की याचना करता है।

श्रीश्यामजी के चरणों की शरण व्यक्ति को जीवन के सभी उतार-चढ़ाव से मुक्त कर देती है। जब भक्त अपनी आशाओं और निराशाओं को प्रभु के समक्ष समर्पित करता है, तब उसे विश्वास प्राप्त होता है कि हर कठिनाई में ईश्वर ही उसके साथ खड़े हैं। यही भाव भक्ति को संपूर्णता प्रदान करता है—जहां समर्पण, प्रेम और श्रद्धा का संगम आत्मा को ईश्वर की कृपा से जोड़ देता है। यह भजन प्रेरित करता है कि हमें ईश्वर की शरण में रहकर अपने समस्त कष्टों को उनके चरणों में छोड़ देना चाहिए, ताकि वे हमें अपने दिव्य प्रेम और आशीर्वाद से जीवन का वास्तविक मार्ग दिखा सकें।
 

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