सुण लीजो बिनती मोरी

सुण लीजो बिनती मोरी लिरिक्स

सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तोरी।
तुम तो पतित अनेक उधारे, भव सागर से तारे।।
मैं सबका तो नाम न जानूं कोइ कोई नाम उचारे।
अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुँचाये निज धामा।
ध्रुव जो पाँच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया।।
सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मन भाया।
सदना औ सेना नाई को तुम कीन्हा अपनाई।।
करमा की खिचड़ी खाई तुम गणिका पार लगाई।
मीरा प्रभु तुमरे रंग राती या जानत सब दुनियाई।।

(सुण लीजो=सुन लीजिए, नामा=महाराष्ट्र के भक्त नामदेव, कबिरा का बैल चराया=कबीरदास के बैल को चराने ले गये, भाया=प्रिय,पसंद, करमा=करमा बाई, जो भगवान जगन्नाथ की भक्त थी, वह खिचड़ी का भोग लगाया करती थी, आज भी पुरी में जगन्नाथजी के प्रसाद में खिचड़ी दी जाती है)
 
मीराबाई का भजन "सुण लीजो बिनती मोरी" उनके श्रीकृष्ण के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को व्यक्त करता है। इस भजन में मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करती हैं, जिन्होंने विभिन्न भक्तों की सहायता की और उनके जीवन को संवारने में मदद की।

मीराबाई कहती हैं कि भगवान ने अम्बरीष, सुदामा, ध्रुव, कबीर, सबरी, सदना, करमा, और अन्य भक्तों की सहायता की। उन्होंने अम्बरीष को उनके शत्रु से बचाया, सुदामा की दरिद्रता दूर की, ध्रुव को पांच वर्ष की आयु में दर्शन दिए, कबीर के बैल को चराया, सबरी के जूठे फल खाए, सदना और सेना नाई को अपनाया, करमा की खिचड़ी खाई, और गणिका को पार लगाया।


सुन्दर भजन में श्रीकृष्ण की करुणा, भक्ति और उद्धार की दिव्यता प्रवाहित होती है। जब कोई उनके चरणों में समर्पित हो जाता है, तब वह केवल भक्त ही नहीं, बल्कि संपूर्ण रूप से एक दिव्य प्रेम की अनुभूति में डूब जाता है।

प्रभु की महिमा उन अनेक भक्तों की जीवन कथाओं में अंकित है, जिनका उद्धार उन्होंने किया। अम्बरीष की दृढ़ भक्ति, सुदामा का निर्मल प्रेम, ध्रुव की अटूट श्रद्धा—हर कथा में श्रीकृष्ण की कृपा का स्पर्श दिखता है।

श्रीकृष्ण केवल आराध्य नहीं हैं, वे प्रेम और अनुकंपा का सजीव स्वरूप हैं। सबरी का सरल प्रेम, कबीर का निश्छल विश्वास, करमा की सहज सेवा—हर एक जीवन की परीक्षा में उनकी कृपा संबल बनती है।

जब मन प्रभु के प्रेम में रंग जाता है, तब समस्त संसार क्षीण हो जाता है, और केवल भक्ति का आनंद शेष रह जाता है। श्रीकृष्ण की शरण में जाने से जीवन की समस्त बाधाएँ स्वतः विलीन हो जाती हैं, और आत्मा आनंद में मग्न हो जाती है।
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