सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो कांई करलेसी

सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो कांई करलेसी

सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो कांई करलेसी;
म्हें तो गुण गोविन्द का गास्याँ, हो माई।।टेक।।
राणा जी रूठयो बाँरो देस रखासी;
हरि रूठयाँ कुम्हलायां, हो माई।
लोक लाज की काणा न मानूँ।
निरभै निसाण घुरास्यां, हो माई।
स्याम नाम का झांझ चलास्यां; भवसागर तर जास्यां हो माई।
मीराँ सरण सवल गिरधर की,
चरण कंवल लपटास्यां, हो माई।।

(सीसोद्यो=सिसोदिया राणा, कांई= क्या, बांरो=अपना, काण=कान,मर्यादा, निरभै=निर्भय होकर, घुरास्यां=बजाऊँगी, सवल=सबल,शक्तिशाली)
 
मीराबाई का भजन "सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो कांई करलेसी" उनके श्रीकृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति को व्यक्त करता है। इस भजन में मीराबाई अपने पति राणा जी के साथ अपने संबंधों और उनके साथ अपने प्रेम को भगवान श्रीकृष्ण के साथ अपने संबंधों से जोड़ती हैं।

मीराबाई कहती हैं कि यदि राणा जी मुझसे नाराज़ हो जाएं, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैं तो भगवान गोविंद के गुण गाती हूं। वह कहती हैं कि यदि राणा जी मुझसे नाराज़ हो जाएं, तो मैं भगवान श्रीकृष्ण के नाम का झंझ बजाऊंगी और भवसागर को पार करूंगी। वह लोक-लाज की परवाह नहीं करतीं और निर्भय होकर भगवान के नाम का जाप करती हैं।

इस सुंदर भजन में मीराबाई की अदम्य भक्ति और निडर प्रेम की भावना प्रकट होती है। जब सांसारिक बंधन और समाज की मान्यताएँ किसी भक्त की भक्ति को चुनौती देती हैं, तब सच्चा भक्त केवल अपने आराध्य की शरण में जाता है। यह अनुभूति दर्शाती है कि श्रीकृष्णजी का प्रेम ही जीवन का वास्तविक सार है, और उसके सामने सांसारिक प्रतिष्ठा और मान्यताएँ गौण हो जाती हैं।

मीराबाई के शब्द आत्मसमर्पण की पराकाष्ठा को दर्शाते हैं—जहां वे स्पष्ट रूप से कहती हैं कि यदि संसार उनसे रुष्ट हो जाए, तो भी उनकी भक्ति श्रीकृष्ण के प्रति अटल बनी रहेगी। यह भाव निडरता और विश्वास का प्रतीक है, जहां भक्त अपने आराध्य के प्रेम में निर्भय होकर जीता है।

श्रीकृष्णजी के चरणों में समर्पित होकर, भक्त अपनी समस्त चिंताओं को त्यागकर केवल उनकी आराधना में लीन हो जाता है। जब मन केवल प्रभु के नाम में रम जाता है, तब समस्त सांसारिक मोह और मान्यताएँ अर्थहीन प्रतीत होती हैं। यही सच्चा भक्ति भाव है—जहां मन और आत्मा केवल प्रभु की कृपा को अनुभव करते हैं।

यह भजन हमें यह प्रेरणा देता है कि सच्ची भक्ति बाधाओं से डरती नहीं, बल्कि उन्हें प्रेम और श्रद्धा की शक्ति से पार कर जाती है। जब मनुष्य ईश्वर के नाम का जाप करता है, तो उसकी चेतना सांसारिक चिंताओं से मुक्त होकर सच्चे आनंद और शांति को प्राप्त करती है। यही भक्ति की वास्तविकता है—जहां आत्मा केवल ईश्वर की कृपा में पूर्ण रूप से समर्पित होकर आनंद का अनुभव करती है।
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