आजु शुण्या हरी आवाँ री मीरा बाई पदावली

आजु शुण्या हरी आवाँ री मीरा बाई पदावली

आजु शुण्या हरी आवाँ री
आजु शुण्या हरी आवाँ री, आवाँ री मण भावां री।।टेक।।
घरि णा आवां गेउ लखावां, बाण पड़्या ललचावां री।
णेणा म्हारा कह्यां णा बस म्हारो, णआ म्हारे पंख उड़ावां री।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर, बाट जोहां थे आवाँरी।।
(शुण्या=सुना है, गेउ=मार्ग, बाण=स्वभाव)
 
मन की गहराइयों में एक पुकार उठती है कि प्रभु आज आएंगे, उनके चरणों की धूल से जीवन पावन हो जाएगा। यह पुकार केवल शब्दों की नहीं, हृदय की उस तीव्र लालसा की है जो प्रभु के दर्शन को तरसती है। जैसे प्यासा मृग जलाशय की ओर दौड़ता है, वैसे ही आत्मा प्रभु की ओर खिंची चली जाती है। घर-द्वार, सांसारिक बंधन सब तुच्छ लगने लगते हैं, क्योंकि मन तो उस अनंत प्रेम में डूबना चाहता है।

संसार के रास्ते भटकाते हैं, लोभ-मोह के तीर मन को ललचाते हैं, पर सच्चा साधक इनसे परे जाता है। उसकी आँखें केवल प्रभु की राह ताकती हैं। जैसे मीरा अपने गिरधर को पुकारती है, वैसे ही हर भक्त का मन कहता है कि प्रभु का आलिंगन ही जीवन का सत्य है। यह प्रतीक्षा केवल समय की नहीं, आत्मा की उस अवस्था की है जहाँ सारा भय, संशय मिट जाता है।

प्रभु का आना कोई बाहरी घटना नहीं, वह तो हृदय में प्रेम और श्रद्धा का जागरण है। जब मन निर्मल हो, स्वार्थ के बादल हटें, तब प्रभु स्वयं प्रकट होते हैं। जैसे दीया बुझने से पहले तेज जलता है, वैसे ही साधना का अंतिम क्षण प्रभु के आगमन का साक्षी बनता है। यह विश्वास ही साधक को बाट जोहने की शक्ति देता है, कि प्रभु आएंगे, अवश्य आएंगे।

यह भजन भक्ति योग का एक सुंदर उदाहरण है, जहाँ प्रेम और समर्पण के माध्यम से भक्त ईश्वर से एकाकार होने की राह पर चलता है। "आजु" (आज) शब्द की पुनरावृत्ति उस तीव्रता और तात्कालिकता को दर्शाती है, जो भक्त के मन में प्रभु के प्रति है। यह प्रतीक्षा केवल समय की बात नहीं, बल्कि आत्मा की उस निर्मल अवस्था की प्रतीक्षा है जहाँ सारे संशय और भय मिट जाते हैं। प्रभु का आना यहाँ बाहरी घटना से अधिक, हृदय में प्रेम और विश्वास का जागरण है। जब मन स्वार्थ और अहंकार से मुक्त हो जाता है, तब प्रभु स्वयं वहाँ प्रकट होते हैं।

एकली खड़ी रे मीरा बाई एकली खड़ी | Meera Bai Superhit Bhajan | Chitra Vichitra Ji | Vraj Bhav

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