आण मिल्यो अनुरागी गिरधर मीरा पदावली

आण मिल्यो अनुरागी गिरधर मीरा बाई पदावली

आण मिल्यो अनुरागी गिरधर आण मिल्यो अनुरागी ।।टेक।।
साँसों सोच अंग नहि अब तो तिस्ना दुबध्या त्यागी।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, स्याम बरण बड़ भागी।
जनम जनम के साहिब मेरो, वाही से लौ लागी।
अपण पिया सैग हिलमिल खेलूं अधर सुधारस पागी।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, अब के भई सुभागी।।


(अनुरागी=प्रेमी, साँसों=संशय,सन्देह, सोच=शोक, अंग=भाग, तिस्ना=तृष्णा, दुबध्या=दुविधा, वरण= बरण, वरना, पति- रूप स्वीकार करना, साहिब=पति, लौ=लग्न,प्रेम, पागी=छकना, सुभागा=सौभाग्यवाली)
 
गिरधर का प्रेमी रूप मिलने से मन का सारा संदेह और शोक मिट गया, जैसे अंधेरे में सूरज की किरण छा जाए। तृष्णा और दुविधा छूटी, और आत्मा उनके प्रेम में डूब गई। मोर-मुकुट और पीतांबर में सजा स्याम का रूप इतना मोहक है कि उसे वरने वाला बड़ा भाग्यशाली है।

जन्म-जन्म का साथी वही है, जिसके प्रेम में मन रम गया। उनके साथ प्रेम की होली खेलना, उनके अधरों का रस पीना—यह सुख अनंत है। मीरा का हृदय गिरधरनागर में समाया, जिसने उसे सौभाग्यशाली बना दिया। जैसे नदी सागर में मिलकर पूर्ण होती है, वैसे ही यह भक्ति आत्मा को प्रभु के प्रेम में लीन कर जीवन को सार्थक बनाती है।
 
Next Post Previous Post