बासुरी सुनूंगी बासुरी सुनूंगी। मै तो बासुरी सुनूंगी। बनसीवालेकूं जान न देऊंगी॥टेक॥ बनसीवाला एक कहेगा। एकेक लाख सुनाऊंगी॥१॥ ब्रिंदाबनके कुजगलनमों। भर भर फूल छिनाऊंगी॥२॥ ईत गोकुल उत मथुरा नगरी। बीचमें जाय अडाऊंगी॥३॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल लपटाऊंगी॥४॥
खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥ हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो। एकबार दरसन दे जारे॥१॥ आप बिहारे दरसन तिहारे। कृपादृष्टि करी जारे॥२॥ नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो। एक हाम पैन सहजीरे। जो दिन ते सखी मधुबन छांडो। ले गयो काळ कलेजारे॥३॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सबही बोल सजारे॥४॥
गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय। ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय। सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥ ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्यो न जाय। पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय॥ कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार। है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥ मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय। जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥