शिव को वरूँगी ये जिद ठाने गौरा कहना
शिव को वरूँगी ये जिद ठाने गौरा कहना
गौरा कहना ना माने,
कहना ना माने गौरा,
कहना ना माने,
शिव को वरूंगी ये जिद ठाने,
गौरा कहना ना माने।।
पिता हिमाचल जी समझा के हारे,
तुमको दिखाऊं कुंवर प्यारे प्यारे,
माता मैना गौरा को समझाए,
वो कहना ना माने,
शिव को वरूंगी ये जिद ठाने,
गौरा कहना ना माने।।
देव ना वरूंगी मैं दानव ना वरूंगी,
और किसी मैं ब्याह न करूंगी,
शिवजी को अपना पति माने,
गौरा कहना ना माने,
शिव को वरूंगी ये जिद ठाने,
गौरा कहना ना माने।।
औघड़ योगी वो है शमशानी,
शिव तेरे लायक नहीं गौरा रानी,
सप्तऋषि आए समझाने,
गौरा कहना ना माने,
शिव को वरूंगी ये जिद ठाने,
गौरा कहना ना माने।।
पिछले जनम की कहानी सुनाई,
नारद ने गौरा को भक्ति सिखाई,
तबसे मनाए शिव गौरा ने,
गौरा कहना ना माने,
शिव को वरूंगी ये जिद ठाने,
गौरा कहना ना माने।।
हिमाचल के द्वारे पे खुशियां हैं छाई,
शिव की अनोखी है बारात आई,
आए हैं शिव गौरा ब्याहने,
पाया शिव को गौरा ने,
शिव को वरूंगी ये जिद ठाने,
गौरा कहना ना माने।।
शिव को वरूंगी ये जिद ठाने,
गौरा कहना ना माने,
कहना ना माने गौरा,
कहना ना माने,
शिव को वरूंगी ये जिद ठाने,
गौरा कहना ना माने।।
भक्ति और प्रेम जब दृढ़ संकल्प से जुड़ जाते हैं, तब कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। गौरा की यह जिद मात्र एक हठ नहीं, बल्कि आत्मा का उस प्रियतम को पाने के लिए किया गया अनवरत प्रयास है। वह कोई बाहरी गुण या वैभव नहीं देखती—न देवताओं के आकर्षक प्रस्ताव, न सांसारिक प्रतिष्ठा—उनका प्रेम केवल शिव के लिए है, जो त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति हैं।
संसार ने कई प्रयास किए—पिता ने समझाया, माता ने मनाया, सप्तऋषियों ने तर्क दिए, परंतु यह प्रेम कोई सामान्य संयोग नहीं, बल्कि जन्म-जन्म की आराधना का फल है। जब हृदय किसी सत्य से जुड़ जाता है, तब किसी भी परिस्थिति में वह अपने निर्णय से विचलित नहीं होता।
यह भक्ति और प्रेम की विजय है—जिसे कोई बाहरी मान्यताएँ प्रभावित नहीं कर सकतीं। अंततः हिमाचल का द्वार आनंद से भर जाता है, और शिव की अनूठी बारात उस दृढ़ संकल्प के साथ गौरा को प्राप्त करने आती है। यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का उत्सव है, जिसमें प्रेम, त्याग और अनन्य समर्पण पूर्णता को प्राप्त करता है। यही सच्चा योग है, जहाँ आत्मा शिवत्व को ग्रहण करती है, और यही वह स्थिति है, जहाँ प्रेम अपने शाश्वत स्वरूप में स्थापित होता है।
गौरा का हृदय शिव के प्रति अटूट प्रेम और दृढ़ संकल्प से भरा है। न माता-पिता की बात, न सप्तऋषियों की सलाह, न ही संसार की मर्यादाएँ—कुछ भी उनके मन को डिगा सका। यह प्रेम साधारण नहीं, बल्कि पिछले जन्मों की भक्ति और नारद के उपदेशों से उपजा है, जो उनके मन में शिव के लिए अनन्य निष्ठा बनकर बसा।
जैसे नदी अपने सागर से मिलने की जिद में पहाड़ों को चीर देती है, वैसे ही गौरा का मन केवल शिव को ही अपना सर्वस्व मानता है। उनके लिए शिव न औघड़ हैं, न श्मशानी; वह तो उनके हृदय के स्वामी हैं। यह भक्ति का बल है कि अंत में शिव स्वयं उनकी जिद के आगे बारात लेकर आते हैं। सच्चा प्रेम और समर्पण वही है, जो संसार की हर बाधा को पार कर, प्रभु के चरणों में सुख और शांति पाए।