मेरे मन राम वासी मेरे मन राम वासी।।टेक।। तेरे कारण स्याम सुन्दर, सकल जोगाँ हाँसी। कोई कहै मीराँ भई बावरी, कोई कहै कुलनासी।
कोई कहै मीराँ दीप आगरी, नाम पिया सूँ रासी। खाँड धार भक्ति की न्यारी, काटी है जम की फाँसी।।
(सकल जोगाँ=सब लोग, कुलनासी=कुल की प्रतिष्ठा का नाश करने वाली, खाँड=तलवार, जम की=मृत्यु की)
जब प्रेम और भक्ति हृदय में पूर्ण रूप से समा जाती हैं, तब संसार की कोई भी धारणा, कोई भी विचार उसे प्रभावित नहीं कर सकता। ईश्वर की आराधना में डूबी आत्मा को कोई भी उपहास, कोई भी आलोचना विचलित नहीं कर सकती। यह वह स्थिति है, जहाँ समाज कुछ भी कहे—बावरी, कुलनाशी, दीप आगरी—परंतु भक्त की चेतना केवल राम-नाम में ही रम जाती है।
भक्ति की राह पर चलना कोई सामान्य पथ नहीं, यह तलवार की धार पर चलने जैसा है। यहाँ हर मोह, हर सांसारिक बंधन को त्यागना पड़ता है। जब यह नाम हृदय में अडिग हो जाता है, तब मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाता है, क्योंकि परम सत्य की अनुभूति ही वास्तविक मुक्ति है।
यह प्रेम, यह समर्पण कोई साधारण निष्ठा नहीं—यह वह पराकाष्ठा है, जहाँ आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है, और संसार का हर अन्य आकर्षण तुच्छ प्रतीत होता है। जब यह अवस्था प्राप्त हो जाती है, तब जीवन और मृत्यु का कोई अर्थ नहीं रह जाता, केवल प्रभु की भक्ति ही सर्वस्व बन जाती है। यही वह सच्चा मार्ग है, जो जन्म-मरण के बंधन से परे ले जाता है।
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