सन्त मिले सुख ऊपजै दुष्ट मिले दुख होय ।
सेवा कीजै साधु की, जन्म कृतारथ होय ॥
संगत कीजै साधु की कभी न निष्फल होय ।
लोहा पारस परस ते, सो भी कंचन होय ॥
मान नहीं अपमान नहीं, ऐसे शीतल सन्त ।
भव सागर से पार हैं, तोरे जम के दन्त ॥
दया गरीबी बन्दगी, समता शील सुभाव ।
येते लक्षण साधु के, कहैं कबीर सतभाव ॥
सो दिन गया इकारथे, संगत भई न सन्त ।
ज्ञान बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भटकन्त ॥
आशा तजि माया तजै, मोह तजै अरू मान ।
हरष शोक निन्दा तजै, कहैं कबीर सन्त जान ॥
आसन तो इकान्त करैं, कामिनी संगत दूर ।
शीतल सन्त शिरोमनी, उनका ऐसा नूर ॥
यह कलियुग आयो अबै, साधु न जाने कोय ।
कामी क्रोधी मस्खरा, तिनकी पूजा होय ॥
कुलवन्ता कोटिक मिले, पण्डित कोटि पचीस ।
सुपच भक्त की पनहि में, तुलै न काहू शीश ॥
साधु दरशन महाफल, कोटि यज्ञ फल लेह ।
इक मन्दिर को का पड़ी, नगर शुद्ध करिलेह ॥
1. सन्त मिले सुख ऊपजै दुष्ट मिले दुख होय।
सेवा कीजै साधु की, जन्म कृतारथ होय॥
अर्थ: संतों की संगति से सुख की प्राप्ति होती है, जबकि दुष्टों की संगति से दुख मिलता है। इसलिए, साधुओं की सेवा करना जीवन को सार्थक बनाता है।
2. संगत कीजै साधु की कभी न निष्फल होय।
लोहा पारस परस ते, सो भी कंचन होय॥
अर्थ: साधु की संगति कभी व्यर्थ नहीं जाती। जैसे लोहा पारस (चमत्कारी पत्थर) से संपर्क में आने पर सोना बन जाता है, वैसे ही साधु की संगति से जीवन में परिवर्तन आता है।
3. मान नहीं अपमान नहीं, ऐसे शीतल सन्त।
भव सागर से पार हैं, तोरे जम के दन्त॥
अर्थ: जो संत मान और अपमान से परे रहते हैं, वे शीतल होते हैं। ऐसे संत भवसागर को पार कर चुके होते हैं और यमराज के दांतों से बच जाते हैं।
4. दया गरीबी बन्दगी, समता शील सुभाव।
येते लक्षण साधु के, कहैं कबीर सतभाव॥
अर्थ: संतों के लक्षण हैं: दया, गरीबी, भक्ति, समता, शील, और शुभ स्वभाव। कबीर दास जी कहते हैं कि ये सभी गुण संतों में होते हैं।
5. सो दिन गया इकारथे, संगत भई न सन्त।
ज्ञान बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भटकन्त॥
अर्थ: वह दिन गया जब संगत से संत बने बिना, ज्ञान के बिना मनुष्य पशु के समान होता है, और भक्ति के बिना भटकता रहता है।
6. आशा तजि माया तजै, मोह तजै अरू मान।
हरष शोक निन्दा तजै, कहैं कबीर सन्त जान॥
अर्थ: जो व्यक्ति आशा, माया, मोह, मान, हर्ष, शोक, और निंदा को छोड़ देता है, वही सच्चा संत कहलाता है। कबीर दास जी कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को संत माना जाता है।