श्री बालाजी आरती
श्री बालाजी आरती
ॐ जय हनुमत वीरा, स्वामी जय हनुमत वीरा।
संकट मोचन स्वामी, तुम हो रनधीरा ॥ॐ जय॥
पवन पुत्र अंजनी सूत, महिमा अति भारी।
दुःख दरिद्र मिटाओ, संकट सब हारी ॥ॐ जय॥
बाल समय में तुमने, रवि को भक्ष लियो।
देवन स्तुति किन्ही, तुरतहिं छोड़ दियो ॥ॐ जय॥
कपि सुग्रीव राम संग मैत्री करवाई।
अभिमानी बलि मेटयो कीर्ति रही छाई ॥ॐ जय॥
जारि लंक सिय-सुधि ले आए, वानर हर्षाये।
कारज कठिन सुधारे, रघुबर मन भाये ॥ॐ जय॥
शक्ति लगी लक्ष्मण को, भारी सोच भयो।
लाय संजीवन बूटी, दुःख सब दूर कियो ॥ॐ जय॥
रामहि ले अहिरावण, जब पाताल गयो।
ताहि मारी प्रभु लाय, जय जयकार भयो ॥ॐ जय॥
राजत मेहंदीपुर में, दर्शन सुखकारी।
मंगल और शनिश्चर, मेला है जारी ॥ॐ जय॥
श्री बालाजी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत इन्द्र हर्षित, मनवांछित फल पावे ॥ॐ जय॥
पवन पुत्र अंजनी सूत, महिमा अति भारी।
दुःख दरिद्र मिटाओ, संकट सब हारी ॥ॐ जय॥
बाल समय में तुमने, रवि को भक्ष लियो।
देवन स्तुति किन्ही, तुरतहिं छोड़ दियो ॥ॐ जय॥
कपि सुग्रीव राम संग मैत्री करवाई।
अभिमानी बलि मेटयो कीर्ति रही छाई ॥ॐ जय॥
जारि लंक सिय-सुधि ले आए, वानर हर्षाये।
कारज कठिन सुधारे, रघुबर मन भाये ॥ॐ जय॥
शक्ति लगी लक्ष्मण को, भारी सोच भयो।
लाय संजीवन बूटी, दुःख सब दूर कियो ॥ॐ जय॥
रामहि ले अहिरावण, जब पाताल गयो।
ताहि मारी प्रभु लाय, जय जयकार भयो ॥ॐ जय॥
राजत मेहंदीपुर में, दर्शन सुखकारी।
मंगल और शनिश्चर, मेला है जारी ॥ॐ जय॥
श्री बालाजी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत इन्द्र हर्षित, मनवांछित फल पावे ॥ॐ जय॥
आरती का महत्त्व : पूजा पाठ और भक्ति भाव में आरती का विशिष्ठ महत्त्व है। स्कन्द पुराण में आरती का महत्त्व वर्णित है। आरती में अग्नि का स्थान महत्त्व रखता है। अग्नि समस्त नकारात्मक शक्तियों का अंत करती है। अराध्य के समक्ष विशेष वस्तुओं को रखा जाता है। अग्नि का दीपक घी या तेल का हो सकता है जो पूजा के विधान पर निर्भर करता है। वातावरण को सुद्ध करने के लिए सुगन्धित प्रदार्थों का भी उपयोग किया जाता है। कर्पूर का प्रयोग भी जातक के दोष समाप्त होते हैं।
सुंदर भजन में श्री हनुमानजी की वीरता, भक्ति और संकटमोचन स्वरूप की महिमा का उद्गार झलकता है, जो भक्त के मन को नन्हा सा बल और अटल विश्वास प्रदान करता है। यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि श्री हनुमानजी की कृपा से हर दुख और बाधा का निवारण संभव है।
श्री हनुमानजी का पवनपुत्र और अंजनीसुत रूप उनकी असीम शक्ति और मातृभक्ति को दर्शाता है। उनका स्मरण मन के सारे भय और दरिद्रता को दूर करता है, जैसे कोई सच्चा मित्र संकट में साथ देता है। यह भाव भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि सच्ची श्रद्धा से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है।
बाल्यकाल में सूर्य को भक्ष लेने और देवताओं की स्तुति पर उसे छोड़ देने का प्रसंग उनकी अलौकिक शक्ति और विनम्रता को उजागर करता है। यह उद्गार मन को सिखाता है कि शक्ति का सही उपयोग दूसरों के कल्याण में ही है। जैसे कोई विद्यार्थी अपनी प्रतिभा को सकारात्मक दिशा में लगाता है, वैसे ही हनुमानजी की शक्ति भक्तों के लिए प्रेरणा बनती है।
सुग्रीव और श्रीराम की मैत्री कराने, लंका दहन करने, और संजीवनी बूटी लाने जैसे कार्य उनकी भक्ति, बुद्धि और समर्पण की गाथा गाते हैं। यह भाव दर्शाता है कि सच्चा भक्त अपने प्रभु के हर कार्य को सहजता से पूर्ण करता है। जैसे कोई संत अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में अर्पित कर देता है, वैसे ही हनुमानजी का प्रत्येक कार्य श्रीराम की इच्छा का प्रतीक है।
मेहंदीपुर में श्री बालाजी के दर्शन की महिमा भक्त के हृदय में सुख और शांति का संचार करती है। यह उद्गार उस विश्वास को प्रकट करता है कि उनकी शरण में जाकर जीवन मंगलमय हो जाता है। मंगल और शनिवार के मेले का उल्लेख भक्ति के उत्सव और सामूहिक श्रद्धा की सुंदरता को दर्शाता है।
यह भाव हर उस व्यक्ति को प्रेरित करता है, जो जीवन में संकटों से जूझ रहा है। श्री हनुमानजी की आरती गाने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, और मन श्रीराम के प्रति भक्ति में लीन होकर हर बाधा से मुक्त हो जाता है।
सुंदर भजन में श्री हनुमानजी की वीरता, भक्ति और संकटमोचन स्वरूप की महिमा का उद्गार झलकता है, जो भक्त के मन को नन्हा सा बल और अटल विश्वास प्रदान करता है। यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि श्री हनुमानजी की कृपा से हर दुख और बाधा का निवारण संभव है।
श्री हनुमानजी का पवनपुत्र और अंजनीसुत रूप उनकी असीम शक्ति और मातृभक्ति को दर्शाता है। उनका स्मरण मन के सारे भय और दरिद्रता को दूर करता है, जैसे कोई सच्चा मित्र संकट में साथ देता है। यह भाव भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि सच्ची श्रद्धा से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है।
बाल्यकाल में सूर्य को भक्ष लेने और देवताओं की स्तुति पर उसे छोड़ देने का प्रसंग उनकी अलौकिक शक्ति और विनम्रता को उजागर करता है। यह उद्गार मन को सिखाता है कि शक्ति का सही उपयोग दूसरों के कल्याण में ही है। जैसे कोई विद्यार्थी अपनी प्रतिभा को सकारात्मक दिशा में लगाता है, वैसे ही हनुमानजी की शक्ति भक्तों के लिए प्रेरणा बनती है।
सुग्रीव और श्रीराम की मैत्री कराने, लंका दहन करने, और संजीवनी बूटी लाने जैसे कार्य उनकी भक्ति, बुद्धि और समर्पण की गाथा गाते हैं। यह भाव दर्शाता है कि सच्चा भक्त अपने प्रभु के हर कार्य को सहजता से पूर्ण करता है। जैसे कोई संत अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में अर्पित कर देता है, वैसे ही हनुमानजी का प्रत्येक कार्य श्रीराम की इच्छा का प्रतीक है।
मेहंदीपुर में श्री बालाजी के दर्शन की महिमा भक्त के हृदय में सुख और शांति का संचार करती है। यह उद्गार उस विश्वास को प्रकट करता है कि उनकी शरण में जाकर जीवन मंगलमय हो जाता है। मंगल और शनिवार के मेले का उल्लेख भक्ति के उत्सव और सामूहिक श्रद्धा की सुंदरता को दर्शाता है।
यह भाव हर उस व्यक्ति को प्रेरित करता है, जो जीवन में संकटों से जूझ रहा है। श्री हनुमानजी की आरती गाने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, और मन श्रीराम के प्रति भक्ति में लीन होकर हर बाधा से मुक्त हो जाता है।
सुंदर भजन में श्री हनुमानजी की वीरता, भक्ति और संकटमोचन स्वरूप की महिमा का उद्गार झलकता है, जो भक्त के मन को नन्हा सा बल और अटल विश्वास प्रदान करता है। यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि श्री हनुमानजी की कृपा से हर दुख और बाधा का निवारण संभव है।
श्री हनुमानजी का पवनपुत्र और अंजनीसुत रूप उनकी असीम शक्ति और मातृभक्ति को दर्शाता है। उनका स्मरण मन के सारे भय और दरिद्रता को दूर करता है, जैसे कोई सच्चा मित्र संकट में साथ देता है। यह भाव भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि सच्ची श्रद्धा से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है।
बाल्यकाल में सूर्य को भक्ष लेने और देवताओं की स्तुति पर उसे छोड़ देने का प्रसंग उनकी अलौकिक शक्ति और विनम्रता को उजागर करता है। यह उद्गार मन को सिखाता है कि शक्ति का सही उपयोग दूसरों के कल्याण में ही है। जैसे कोई विद्यार्थी अपनी प्रतिभा को सकारात्मक दिशा में लगाता है, वैसे ही हनुमानजी की शक्ति भक्तों के लिए प्रेरणा बनती है।
सुग्रीव और श्रीराम की मैत्री कराने, लंका दहन करने, और संजीवनी बूटी लाने जैसे कार्य उनकी भक्ति, बुद्धि और समर्पण की गाथा गाते हैं। यह भाव दर्शाता है कि सच्चा भक्त अपने प्रभु के हर कार्य को सहजता से पूर्ण करता है। जैसे कोई संत अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में अर्पित कर देता है, वैसे ही हनुमानजी का प्रत्येक कार्य श्रीराम की इच्छा का प्रतीक है।
मेहंदीपुर में श्री बालाजी के दर्शन की महिमा भक्त के हृदय में सुख और शांति का संचार करती है। यह उद्गार उस विश्वास को प्रकट करता है कि उनकी शरण में जाकर जीवन मंगलमय हो जाता है। मंगल और शनिवार के मेले का उल्लेख भक्ति के उत्सव और सामूहिक श्रद्धा की सुंदरता को दर्शाता है।
श्री हनुमानजी का पवनपुत्र और अंजनीसुत रूप उनकी असीम शक्ति और मातृभक्ति को दर्शाता है। उनका स्मरण मन के सारे भय और दरिद्रता को दूर करता है, जैसे कोई सच्चा मित्र संकट में साथ देता है। यह भाव भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि सच्ची श्रद्धा से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है।
बाल्यकाल में सूर्य को भक्ष लेने और देवताओं की स्तुति पर उसे छोड़ देने का प्रसंग उनकी अलौकिक शक्ति और विनम्रता को उजागर करता है। यह उद्गार मन को सिखाता है कि शक्ति का सही उपयोग दूसरों के कल्याण में ही है। जैसे कोई विद्यार्थी अपनी प्रतिभा को सकारात्मक दिशा में लगाता है, वैसे ही हनुमानजी की शक्ति भक्तों के लिए प्रेरणा बनती है।
सुग्रीव और श्रीराम की मैत्री कराने, लंका दहन करने, और संजीवनी बूटी लाने जैसे कार्य उनकी भक्ति, बुद्धि और समर्पण की गाथा गाते हैं। यह भाव दर्शाता है कि सच्चा भक्त अपने प्रभु के हर कार्य को सहजता से पूर्ण करता है। जैसे कोई संत अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में अर्पित कर देता है, वैसे ही हनुमानजी का प्रत्येक कार्य श्रीराम की इच्छा का प्रतीक है।
मेहंदीपुर में श्री बालाजी के दर्शन की महिमा भक्त के हृदय में सुख और शांति का संचार करती है। यह उद्गार उस विश्वास को प्रकट करता है कि उनकी शरण में जाकर जीवन मंगलमय हो जाता है। मंगल और शनिवार के मेले का उल्लेख भक्ति के उत्सव और सामूहिक श्रद्धा की सुंदरता को दर्शाता है।
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