श्री गणेश कवच लिरिक्स महत्त्व फायदे Shri Ganesh Kavach Lyrics

श्री गणेश कवच लिरिक्स Shri Ganesh Kavach Lyrics, Ganesh Kavacham/Ganesh Bhajan


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बुधवार का दिन भगवान गणेश जी की उपासना के लिए सर्वोत्तम है। बुधवार को विधिवत पूजा-पाठ करने से भक्तों को धन, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन श्री गणेश कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए। यह स्तोत्र गणपति जी को बहुत प्रिय है।

श्री गणेश कवच का पाठ करने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ होते हैं:
भगवान गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है।
विघ्नों का नाश होता है।
सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है।
धन-धान्य की वृद्धि होती है।
आरोग्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

श्री गणेश कवच का पाठ करने के लिए विधि-
सबसे पहले भगवान गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठ जाएं।
गणेश जी को पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
गणेश जी के मंत्र का जाप करें।
श्री गणेश कवच का पाठ करें।
गणेश जी से प्रार्थना करें कि वे आपको सभी कष्टों से मुक्त करें और आपको सुख-समृद्धि प्रदान करें।

श्री गणेश कवच का पाठ करने से भक्तों को भगवान गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और वे अपने जीवन में सभी सुख और समृद्धि प्राप्त करते हैं। बुधवार का दिन भगवान गणेश की उपासना के लिए समर्पित है। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है। उन्हें विघ्नहर्ता, बुद्धि और ज्ञान के देवता, और समृद्धि के दाता के रूप में पूजा जाता है। बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है, और उन्हें धन, ऐश्वर्य, बल और बुद्धि की प्राप्ति होती है।

बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा विधि-विधान से करने से अधिक फलदायी होती है। पूजा के लिए सबसे पहले एक साफ-सुथरी जगह पर भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद भगवान गणेश को गंगाजल से स्नान कराएं, और उन्हें अक्षत, फूल, धूप, दीप, फल, मिठाई, और दूर्वा अर्पित करें। भगवान गणेश को मोदक का भोग भी लगाना चाहिए। पूजा के बाद भगवान गणेश की आरती करें, और उनके मंत्रों का जाप करें।

श्री गणेश कवच स्तोत्र एक शक्तिशाली मंत्र है जो भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। इस कवच का पाठ करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं, और अपने भक्तों की रक्षा सभी परेशानियों से करते हैं।

 
एषोति चपलो दैत्यान् बाल्येपि नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ॥ १ ॥

दैत्या नानाविधा दुष्टास्साधु देवद्रुमः खलाः ।
अतोस्य कंठे किंचित्त्यं रक्षां संबद्धुमर्हसि ॥ २ ॥

ध्यायेत् सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहु माद्ये युगे
त्रेतायां तु मयूर वाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् । ई
द्वापरेतु गजाननं युगभुजं रक्तांगरागं विभुम् तुर्ये
तु द्विभुजं सितांगरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ॥ ३ ॥

विनायक श्शिखांपातु परमात्मा परात्परः ।
अतिसुंदर कायस्तु मस्तकं सुमहोत्कटः ॥ ४ ॥

ललाटं कश्यपः पातु भ्रूयुगं तु महोदरः ।
नयने बालचंद्रस्तु गजास्यस्त्योष्ठ पल्लवौ ॥ ५ ॥

जिह्वां पातु गजक्रीडश्चुबुकं गिरिजासुतः ।
वाचं विनायकः पातु दंतान्‌ रक्षतु दुर्मुखः ॥ ६ ॥

श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिंतितार्थदः ।
गणेशस्तु मुखं पातु कंठं पातु गणाधिपः ॥ ७ ॥

स्कंधौ पातु गजस्कंधः स्तने विघ्नविनाशनः ।
हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ॥ ८ ॥

धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरश्शुभः ।
लिंगं गुह्यं सदा पातु वक्रतुंडो महाबलः ॥ ९ ॥

गजक्रीडो जानु जंघो ऊरू मंगलकीर्तिमान् ।
एकदंतो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदावतु ॥ १० ॥

क्षिप्र प्रसादनो बाहु पाणी आशाप्रपूरकः ।
अंगुलीश्च नखान् पातु पद्महस्तो रिनाशनः ॥ ११ ॥

सर्वांगानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदावतु ।
अनुक्तमपि यत् स्थानं धूमकेतुः सदावतु ॥ १२ ॥

आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोवतु ।
प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायकः ॥ १३ ॥

दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैऋत्यां तु गणेश्वरः ।
प्रतीच्यां विघ्नहर्ता व्याद्वायव्यां गजकर्णकः ॥ १४ ॥

कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्याविशनंदनः ।
दिवाव्यादेकदंत स्तु रात्रौ संध्यासु यःविघ्नहृत् ॥ १५ ॥

राक्षसासुर बेताल ग्रह भूत पिशाचतः ।
पाशांकुशधरः पातु रजस्सत्त्वतमस्स्मृतीः ॥ १६ ॥

ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मी च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम् । ई
वपुर्धनं च धान्यं च गृहं दारास्सुतान्सखीन् ॥ १७ ॥

सर्वायुध धरः पौत्रान् मयूरेशो वतात् सदा ।
कपिलो जानुकं पातु गजाश्वान् विकटोवतु ॥ १८ ॥

भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कंठे धारयेत् सुधीः ।
न भयं जायते तस्य यक्ष रक्षः पिशाचतः ॥ १९ ॥

त्रिसंध्यं जपते यस्तु वज्रसार तनुर्भवेत् ।
यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ॥ २० ॥

युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्ध्रुवम् ।
मारणोच्चाटनाकर्ष स्तंभ मोहन कर्मणि ॥ २१ ॥

सप्तवारं जपेदेतद्दनानामेकविंशतिः ।
तत्तत्फलमवाप्नोति साधको नात्र संशयः ॥ २२ ॥

एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।
कारागृहगतं सद्यो राज्ञावध्यं च मोचयोत् ॥ २३ ॥

राजदर्शन वेलायां पठेदेतत् त्रिवारतः ।
स राजानं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ॥ २४ ॥

इदं गणेशकवचं कश्यपेन सविरितम् ।
मुद्गलाय च ते नाथ मांडव्याय महर्षये ॥ २५ ॥

मह्यं स प्राह कृपया कवचं सर्व सिद्धिदम् ।
न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ॥ २६ ॥

अनेनास्य कृता रक्षा न बाधास्य भवेत् व्याचित् ।
राक्षसासुर बेताल दैत्य दानव संभवाः ॥ २७ ॥

॥ इति श्री गणेशपुराणे श्री गणेश कवचं संपूर्णम् ॥
 
 

बुधवार के दिन भगवान गणेश की उपासना से मिलते हैं कई चमत्कारी लाभ

भगवान गणेश की पूजा विधि-विधान से करने से अधिक फलदायी होती है। पूजा के लिए सबसे पहले एक साफ-सुथरी जगह पर भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद भगवान गणेश को गंगाजल से स्नान कराएं, और उन्हें अक्षत, फूल, धूप, दीप, फल, मिठाई, और दूर्वा अर्पित करें। भगवान गणेश को मोदक का भोग भी लगाना चाहिए। पूजा के बाद भगवान गणेश की आरती करें, और उनके मंत्रों का जाप करें।

सुख-समृद्धि की प्राप्ति

जीवन में सुख-समृद्धि पाने के लिए गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, इसलिए उनकी पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और विघ्न दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही, भगवान गणेश को बुद्धि और ज्ञान के देवता भी माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा करने से भक्तों को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। बुद्धि और ज्ञान के होने से व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।

बुधवार को भगवान गणेश की पूजा करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से जातक के जीवन में कभी भी परेशानियां नहीं आती हैं। इसके साथ ही, जातक को धन, ऐश्वर्य, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

भाग्योदय

जो भी जातक गणेश जी की पूजा-अर्चना सच्चे दिल से करते हैं, भगवान गणेश उन्हें कभी भी खाली हाथ नहीं जाने देते। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धि और ज्ञान के देवता, और समृद्धि के दाता के रूप में पूजा जाता है। उनकी पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है, और उन्हें धन, ऐश्वर्य, बल और बुद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान गणेश की पूजा विधि-विधान से करने से अधिक फलदायी होती है। पूजा के लिए सबसे पहले एक साफ-सुथरी जगह पर भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद भगवान गणेश को गंगाजल से स्नान कराएं, और उन्हें अक्षत, फूल, धूप, दीप, फल, मिठाई, और दूर्वा अर्पित करें। भगवान गणेश को मोदक का भोग भी लगाना चाहिए। पूजा के बाद भगवान गणेश की आरती करें, और उनके मंत्रों का जाप करें।

 मनोकामना पूर्ति के लिए

गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। उनकी पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएं और विघ्न दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही, गणेश जी को बुद्धि और ज्ञान के देवता भी माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा करने से भक्तों को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। बुद्धि और ज्ञान के होने से व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।

बुद्धि और ज्ञान का विकास

यह कहा जाता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से बुद्धि में बढ़ोतरी होती है। भगवान गणेश को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। उनकी पूजा करने से मनुष्य का मस्तिष्क शांत और स्थिर होता है, जिससे वह अधिक ध्यान केंद्रित कर पाता है और समस्याओं को हल करने में सक्षम होता है। इसके अलावा, भगवान गणेश की पूजा करने से मनुष्य में नया ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा बढ़ती है।

भगवान गणेश की पूजा करने के कई तरीके हैं। सबसे आम तरीका है सुबह-सुबह उठकर उनके चित्र या मूर्ति के सामने बैठकर उनकी पूजा करना। इस दौरान उन्हें मोदक, लड्डू, गुड़ और पान का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा, भगवान गणेश की आरती भी की जाती है।

भगवान गणेश की पूजा करने से मनुष्य को जीवन में सफलता और तरक्की प्राप्त होती है। बुद्धि और ज्ञान के साथ-साथ, भगवान गणेश की पूजा करने से मनुष्य को धैर्य, एकाग्रता और दृढ़ संकल्प भी प्राप्त होते हैं। ये सभी गुण जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं।