गर्भकवच जानिये अर्थ महत्त्व फायदे
गर्भकवच जानिये अर्थ महत्त्व और फायदे
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शूलेन पाहिन नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके ।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्या निःस्वनेन च । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। १ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे ।
भ्रामेणनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। २ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः सौम्यानि यानि रुपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते ।
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम् । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। ३ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः खड्ग-शूल-गदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके ।
करपल्लव संगीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। ४ ।।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्या निःस्वनेन च । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। १ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे ।
भ्रामेणनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। २ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः सौम्यानि यानि रुपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते ।
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम् । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। ३ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः खड्ग-शूल-गदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके ।
करपल्लव संगीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः । मः न क्लीं ह्रीं ऐं ॐ ।। ४ ।।
"शूलेन पाहि नो देवि" श्लोक दुर्गा सप्तशती का एक महत्वपूर्ण अंश है। यह श्लोक माँ दुर्गा की शक्ति, करुणा, और उनकी रक्षा करने वाली दिव्य ऊर्जा का गुणगान करता है।
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च।।
हे माँ दुर्गा! आप अपने त्रिशूल (शूल) से हमारी रक्षा करें।
हे अंबिके! आप अपने खड्ग (तलवार), घंटे की ध्वनि और धनुष की टंकार से हमारी रक्षा करें।
इस श्लोक में साधक देवी दुर्गा से उनकी कृपा और सुरक्षा की प्रार्थना करता है। यहाँ माँ के शस्त्रों (त्रिशूल, खड्ग, घंटा, धनुष) को उनके दिव्य प्रभाव और रक्षा के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है। यह दर्शाता है कि माँ दुर्गा संकट के हर रूप से अपने भक्तों की रक्षा करने में सक्षम हैं।
शूल (त्रिशूल): अधर्म और अज्ञान का नाश।
खड्ग (तलवार): अन्याय के विरुद्ध धर्म की स्थापना।
घंटा: चेतना और जागृति का प्रतीक।
धनुष और बाण: शक्ति और संकल्प के प्रतीक।
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च।।
हे माँ दुर्गा! आप अपने त्रिशूल (शूल) से हमारी रक्षा करें।
हे अंबिके! आप अपने खड्ग (तलवार), घंटे की ध्वनि और धनुष की टंकार से हमारी रक्षा करें।
इस श्लोक में साधक देवी दुर्गा से उनकी कृपा और सुरक्षा की प्रार्थना करता है। यहाँ माँ के शस्त्रों (त्रिशूल, खड्ग, घंटा, धनुष) को उनके दिव्य प्रभाव और रक्षा के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है। यह दर्शाता है कि माँ दुर्गा संकट के हर रूप से अपने भक्तों की रक्षा करने में सक्षम हैं।
शूल (त्रिशूल): अधर्म और अज्ञान का नाश।
खड्ग (तलवार): अन्याय के विरुद्ध धर्म की स्थापना।
घंटा: चेतना और जागृति का प्रतीक।
धनुष और बाण: शक्ति और संकल्प के प्रतीक।
गर्भकवच: अर्थ, महत्व और फायदे
अर्थ और भाव: गर्भकवच दुर्गा सप्तशती का एक पवित्र और शक्तिशाली अंश है, जो माँ दुर्गा की असीम कृपा और रक्षा का प्रतीक है। इसके चार श्लोकों में माँ से उनके त्रिशूल, खड्ग, घंटे और धनुष की टंकार द्वारा सभी दिशाओं में सुरक्षा की याचना की जाती है। त्रिशूल अज्ञान और अधर्म का नाश करता है, खड्ग धर्म की स्थापना का प्रतीक है, घंटा चेतना को जागृत करता है, और धनुष-बाण संकल्प की शक्ति दर्शाते हैं। यह कवच विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और उनके शिशु की सुरक्षा के लिए प्रचलित है, परंतु यह हर साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संकटों से बचाता है। यह भक्ति और विश्वास के साथ माँ की शरण में आने की प्रेरणा देता है।
महत्व: गर्भकवच का महत्व इसकी सर्वव्यापी रक्षा शक्ति में निहित है। यह न केवल गर्भस्थ शिशु और माता को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है, बल्कि साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति भी लाता है। सभी दिशाओं और सौम्य-घोर रूपों में माँ की रक्षा का आह्वान इसे एक पूर्ण कवच बनाता है। गर्भावस्था में इसका नियमित पाठ माँ और शिशु के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखता है और प्रसव को सुगम बनाता है। साथ ही, यह भय, तनाव और अनिश्चितता को दूर कर मन को स्थिरता प्रदान करता है। यह कवच भक्तों को माँ दुर्गा के प्रति श्रद्धा और समर्पण की गहराई में ले जाता है।
फायदे: गर्भकवच के पाठ से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह गर्भवती महिलाओं को शारीरिक और मानसिक बल देता है, जिससे प्रसव के समय जटिलताएँ कम होती हैं। यह नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर और बाहरी बाधाओं से सुरक्षा प्रदान करता है। नियमित पाठ से साधक का आत्मविश्वास बढ़ता है और मन में शांति बनी रहती है। जैसे दीपक अंधेरे को मिटाता है, वैसे ही यह कवच जीवन के हर क्षेत्र में माँ की कृपा का प्रकाश फैलाता है।
अर्थ और भाव: गर्भकवच दुर्गा सप्तशती का एक पवित्र और शक्तिशाली अंश है, जो माँ दुर्गा की असीम कृपा और रक्षा का प्रतीक है। इसके चार श्लोकों में माँ से उनके त्रिशूल, खड्ग, घंटे और धनुष की टंकार द्वारा सभी दिशाओं में सुरक्षा की याचना की जाती है। त्रिशूल अज्ञान और अधर्म का नाश करता है, खड्ग धर्म की स्थापना का प्रतीक है, घंटा चेतना को जागृत करता है, और धनुष-बाण संकल्प की शक्ति दर्शाते हैं। यह कवच विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और उनके शिशु की सुरक्षा के लिए प्रचलित है, परंतु यह हर साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संकटों से बचाता है। यह भक्ति और विश्वास के साथ माँ की शरण में आने की प्रेरणा देता है।
महत्व: गर्भकवच का महत्व इसकी सर्वव्यापी रक्षा शक्ति में निहित है। यह न केवल गर्भस्थ शिशु और माता को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है, बल्कि साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति भी लाता है। सभी दिशाओं और सौम्य-घोर रूपों में माँ की रक्षा का आह्वान इसे एक पूर्ण कवच बनाता है। गर्भावस्था में इसका नियमित पाठ माँ और शिशु के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखता है और प्रसव को सुगम बनाता है। साथ ही, यह भय, तनाव और अनिश्चितता को दूर कर मन को स्थिरता प्रदान करता है। यह कवच भक्तों को माँ दुर्गा के प्रति श्रद्धा और समर्पण की गहराई में ले जाता है।
फायदे: गर्भकवच के पाठ से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह गर्भवती महिलाओं को शारीरिक और मानसिक बल देता है, जिससे प्रसव के समय जटिलताएँ कम होती हैं। यह नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर और बाहरी बाधाओं से सुरक्षा प्रदान करता है। नियमित पाठ से साधक का आत्मविश्वास बढ़ता है और मन में शांति बनी रहती है। जैसे दीपक अंधेरे को मिटाता है, वैसे ही यह कवच जीवन के हर क्षेत्र में माँ की कृपा का प्रकाश फैलाता है।
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Author - Saroj Jangir
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