कबीर की साखी हिंदी में Kabir साखी in Hindi साखी | साखी संग्रह | कबीर दास की साखी हिन्दी |

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गोब्यंदे तुम्हारै बन कंदलि, मेरो मन अहेरा खेलै।
बपु बाड़ी अनगु मृग, रचिहीं रचि मेलैं॥टेक॥
चित तरउवा पवन षेदा, सहज मूल बाँधा।
ध्याँन धनक जोग करम, ग्याँन बाँन साँधा॥
षट चक्र कँवल बेधा, जारि उजारा कीन्हाँ।
काम क्रोध लोभ मोह, हाकि स्यावज दीन्हाँ॥
गगन मंडल रोकि बारा, तहाँ दिवस न राती।
कहै कबीर छाँड़ि चले, बिछुरे सब साथी॥
 
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