यह श्लोक शिवलिंग की महिमा का वर्णन करता है। यह शिवलिंग को एक शक्तिशाली और कृपाशील देवता के रूप में चित्रित करता है जो भक्तों को कई लाभ प्रदान करता है। श्लोक के पहले दो चरण शिवलिंग को एक ऐसे देवता के रूप में वर्णित करते हैं जो ऋषियों और देवताओं द्वारा पूजनीय है। यह राक्षसों के अभिमान को दूर करने में सक्षम है, जो इसकी शक्ति और दृढ़ संकल्प का संकेत है।