माँ जीण शक्ति मंगल पाठ लिरिक्स Jeen Mata Shakti Mangal Paath Lyrics Hindi Popular Jeen Mata Bhajan
विध्न हरण मंगल करण, गौरी सुत गणराज ।
कण्ठ विराजो शारदा, आन बचाओ लाज ।।
मात पिता गुरुदेव के, धरूँ चरण में ध्यान ।
कुलदेवी माँ जीण भवानी, लाखो लाख प्रणाम ।।
: प्रथम अध्याय :
चौपाई
कण्ठ विराजो शारदा, आन बचाओ लाज ।।
मात पिता गुरुदेव के, धरूँ चरण में ध्यान ।
कुलदेवी माँ जीण भवानी, लाखो लाख प्रणाम ।।
: प्रथम अध्याय :
चौपाई
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।। 1 1।
आदि शक्ति माँ जीण भवानी, महिमा माँ की किसने जानी ।
मंगल पाठ करूं मै तेरा, करो कृपा माँ जीण भवानी ।। 2 ।।
साँझ सवेरे तुझे मनाऊँ, चरणों में मै शीश नवाऊँ ।
तेरी दया से भंवरावाली, मै अपना संसार चलाऊँ ।। 3 ।।
हर्ष नाथ की बहना प्यारी, जीवण बाई नाम तुम्हारा ।
गोरियां गाँव से दक्षिण में है, सुन्दर प्यारा धाम तुम्हारा ।। 4 ।।
पुरब मुख मंदिर है प्यारा, भंवरावाली मात तुम्हारा ।
तीन ओर से पर्वत माला, साँचा है दरबार तुम्हारा ।। 5 ।।
अष्ट भुजाये मात तुम्हारी, मुखमंडल पर तेज निराला ।
अखंड ज्योति बरसों से जलती, जीण भवानी हे प्रतिपाला ।। 6 ।।
एक धृत और दो है तेल के, तीन दीप हर पल है जलते ।
मुगल काल के पहले से ही, ज्योति अखंड है तीनो जलते ।। 7 ।।
अष्टम् सदी में मात तुम्हारे, मन्दिर का निर्माण हुआ है ।
भगतों की श्रदा और निष्ठा, का जीवन्त प्रमाण हुआ है ।। 8 ।।
देवालय की छते दीवारें, कारीगरी का है इक दर्पण ।
तंत्र तपस्वी वाममार्गी, के चित्रों का अनुपम चित्रण ।। 9 ।।
शीतल जल के अमृत से दो, कलकल करते झरने बहते ।
एक कुण्ड है इसी भूमि पर, जोगरवार ताल सब कहते ।। 10 ।।
देश निकाला मिला जो उनको, पाण्डु पुत्र यहाँ पर आये
इसी धरा पर कुछ दिन रहकर, वो अपना बनवास बिताये ।। 11 ।।
बड़े बड़े बलशाली भी माँ, आकर दर पे शीश झुकाये ।
गर्व करे जो तेरे आगे, पल भर में वो मुँह की खाये ।। 12 ।।
मुगलो ने जब करी चढ़ाई, लाखो लाखो भँवरे छोड़े ।
छिन्न विछिन्न किये सेना को, मुगलो के अभिमान को तोड़े ।। 13 ।।
नंगे पैरों तेरे दर पे, चल के ओरंगजेब था आया ।
अखंड ज्योत की रीत चलाई, चरणों में माँ शीश नवाया ।। 14 ।।
सूर्य उपासक जगदेव जी, राज नवलगढ़ में करते थे ।
भंवरावाली माँ की पूजा, रोज नियम से वो करते थे ।। 15 ।।
अपनी दोनों रानी के संग, देश निकाला मिला था उनको ।
पहुँच गये कन्नौज नगर में, जयचंद ने वहाँ शरण दी उनको ।। 16 ।।
कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले, काली ने हुँकार भरी थी ।
भंवरावाली बन कंकाली, दान लेने को निकल पड़ी थी ।। 17 ।।
सारी प्रजा के हित की खातिर, जगदेव ने शीश दिया था ।
शीश उतार के कंकाली के, श्री चरणों में चढ़ा दिया था ।। 18 ।।
भंवरावाली की कृपा से, जीवन उसने सफल बनाया ।
माता के चरणों में विराजे, शीश का दानी वो कहलाया ।। 19 ।।
सुन्दर नगरी जीण तुम्हारी, सूंदर तेरा भवन निराला ।
यहाँ बने विश्राम गृहो में, कुण्डी लगे, लगे न ताला ।। 20 ।।
करुणामयी माँ जीण भवानी, जो भी तेरे धाम न आया ।
चाहे देखा हो जग सारा, जीवन उसने व्यर्थ गवांया ।। 21 ।।
आदिकाल से ही भक्तो ने, वैष्णो रूप में माँ को ध्याया ।
वैष्णो देवी जीण भवानी, की है सारे जग में माया ।। 22 ।।
दुर्गा रूप में देवी माँ ने, महिषासुर का वध किया था ।
काली रूप में सब देवो ने, जीण का फिर आह्ववान किया था ।। 23 ।।
सभी देवताओं ने मिलकर, काली रूप में माँ को ध्याया ।
अपने हाथो से सुरगण ने, माँ को मदिरा पान कराया ।। 24 ।।
वर्तमान में वैष्णो रूप में, माँ को ध्याये ये जग सारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 25 ।।
दोहा
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।। 1 1।
आदि शक्ति माँ जीण भवानी, महिमा माँ की किसने जानी ।
मंगल पाठ करूं मै तेरा, करो कृपा माँ जीण भवानी ।। 2 ।।
साँझ सवेरे तुझे मनाऊँ, चरणों में मै शीश नवाऊँ ।
तेरी दया से भंवरावाली, मै अपना संसार चलाऊँ ।। 3 ।।
हर्ष नाथ की बहना प्यारी, जीवण बाई नाम तुम्हारा ।
गोरियां गाँव से दक्षिण में है, सुन्दर प्यारा धाम तुम्हारा ।। 4 ।।
पुरब मुख मंदिर है प्यारा, भंवरावाली मात तुम्हारा ।
तीन ओर से पर्वत माला, साँचा है दरबार तुम्हारा ।। 5 ।।
अष्ट भुजाये मात तुम्हारी, मुखमंडल पर तेज निराला ।
अखंड ज्योति बरसों से जलती, जीण भवानी हे प्रतिपाला ।। 6 ।।
एक धृत और दो है तेल के, तीन दीप हर पल है जलते ।
मुगल काल के पहले से ही, ज्योति अखंड है तीनो जलते ।। 7 ।।
अष्टम् सदी में मात तुम्हारे, मन्दिर का निर्माण हुआ है ।
भगतों की श्रदा और निष्ठा, का जीवन्त प्रमाण हुआ है ।। 8 ।।
देवालय की छते दीवारें, कारीगरी का है इक दर्पण ।
तंत्र तपस्वी वाममार्गी, के चित्रों का अनुपम चित्रण ।। 9 ।।
शीतल जल के अमृत से दो, कलकल करते झरने बहते ।
एक कुण्ड है इसी भूमि पर, जोगरवार ताल सब कहते ।। 10 ।।
देश निकाला मिला जो उनको, पाण्डु पुत्र यहाँ पर आये
इसी धरा पर कुछ दिन रहकर, वो अपना बनवास बिताये ।। 11 ।।
बड़े बड़े बलशाली भी माँ, आकर दर पे शीश झुकाये ।
गर्व करे जो तेरे आगे, पल भर में वो मुँह की खाये ।। 12 ।।
मुगलो ने जब करी चढ़ाई, लाखो लाखो भँवरे छोड़े ।
छिन्न विछिन्न किये सेना को, मुगलो के अभिमान को तोड़े ।। 13 ।।
नंगे पैरों तेरे दर पे, चल के ओरंगजेब था आया ।
अखंड ज्योत की रीत चलाई, चरणों में माँ शीश नवाया ।। 14 ।।
सूर्य उपासक जगदेव जी, राज नवलगढ़ में करते थे ।
भंवरावाली माँ की पूजा, रोज नियम से वो करते थे ।। 15 ।।
अपनी दोनों रानी के संग, देश निकाला मिला था उनको ।
पहुँच गये कन्नौज नगर में, जयचंद ने वहाँ शरण दी उनको ।। 16 ।।
कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले, काली ने हुँकार भरी थी ।
भंवरावाली बन कंकाली, दान लेने को निकल पड़ी थी ।। 17 ।।
सारी प्रजा के हित की खातिर, जगदेव ने शीश दिया था ।
शीश उतार के कंकाली के, श्री चरणों में चढ़ा दिया था ।। 18 ।।
भंवरावाली की कृपा से, जीवन उसने सफल बनाया ।
माता के चरणों में विराजे, शीश का दानी वो कहलाया ।। 19 ।।
सुन्दर नगरी जीण तुम्हारी, सूंदर तेरा भवन निराला ।
यहाँ बने विश्राम गृहो में, कुण्डी लगे, लगे न ताला ।। 20 ।।
करुणामयी माँ जीण भवानी, जो भी तेरे धाम न आया ।
चाहे देखा हो जग सारा, जीवन उसने व्यर्थ गवांया ।। 21 ।।
आदिकाल से ही भक्तो ने, वैष्णो रूप में माँ को ध्याया ।
वैष्णो देवी जीण भवानी, की है सारे जग में माया ।। 22 ।।
दुर्गा रूप में देवी माँ ने, महिषासुर का वध किया था ।
काली रूप में सब देवो ने, जीण का फिर आह्ववान किया था ।। 23 ।।
सभी देवताओं ने मिलकर, काली रूप में माँ को ध्याया ।
अपने हाथो से सुरगण ने, माँ को मदिरा पान कराया ।। 24 ।।
वर्तमान में वैष्णो रूप में, माँ को ध्याये ये जग सारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 25 ।।
दोहा
सिद्ध पीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
दिर्तीय अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
माला बाबा अर्चन पूजा, मात जयन्ति की करते थे ।
पाराशर ब्राह्मण कुल- वंशी, देवी की सेवा करते थे ।। 26 ।।
माला बाबा के सेवा काल में, वाममार्गी यहाँ पर आये ।
अखण्ड धूनी सिद्धपीठ के, निकट में ही चालू करवाये ।। 27 ।।
कई वर्षो तक वाममार्गी, जीण धाम में समय बिताये ।
पूरी सम्प्रदाय के महन्त जी, उन सब के सरदार कहाये ।। 28 ।।
जीण धाम से वाममार्गी, कालान्तर में कूच किये थे ।
जाते हुये माला बाबा को, अखण्ड धूनी सौप गये थे ।। 29 ।।
कपिल मुनि भी उसी काल में, जीण धाम में आन पधारे ।
घोर तपस्या करी वहाँ पर, पर्वत से निकले जल धारे ।। 30 ।।
कपल धार की वह जलधारा, कुण्ड रूप में आज विराजे ।
उसी कुण्ड के जल से पुजारी, मैया को स्नान कराते ।। 31 ।।
आदिकाल की सच्ची घटना, भक्तो तुमको आज बताऊ ।
जीवण बाई हर्ष नाथ के, जीवन का वृत्तान्त सुनाऊँ ।। 32 ।।
राजस्थान के जिला चुरू में, धांघु नामक एक ग्राम था ।
चौहानों के ठाकुर राजा, गंगो सिंह का वहाँ राज था ।। 33 ।।
माला पुजारी को दर्शन दे, मात जयन्ति एक दिन बोली ।
जीण रूप में मै प्रगटूँगी, उनसे सच्चा भेद ये खोली ।। 34 ।।
जीवण बाई नाम की कन्या, गंगो सिंह के घर जन्मेगी ।
मेरी शक्ति से कलयुग में, घर घर उसकी पूजा होगी ।। 35 ।।
एक दिन राजा गंगो सिंह जी, खेलन को शिकार गये थे ।
वहाँ लोहागर जी के पास में, परी से नेना चार हुये थे ।। 36 ।।
सुंदरता से मंत्र मुग्ध हो, गंगो सिंह जी परी से बोले ।
शादी करना चाहूँ तुमसे, तू मेरी अर्धागिनी होले ।। 37 ।।
परी ये बोली सुनो हे राजा, मुझसे मेरा भेद न लेना ।
अगर भेद की बात करोगे, फिर पीछे तुम मत पछताना ।। 38 ।।
शर्त ये मेरी ध्यान से सुन लो, जब भी मेरे कक्ष में आओ ।
अंदर आने से पहले ही, शयन कक्ष को तुम खटकाओ ।। 39 ।।
शर्त मान कर गंगो सिंह ने, परी के संग में ब्याह रचाया ।
प्रेम और विश्वास के बल पे, अपना जीवन रथ चलाया ।। 40 ।।
परी की कोख से जीवण बाई, हर्ष नाथ दोनों थे जन्मे ।
बड़ा प्रेम आपस में रखते, भाई बहना अपने मन में ।। 41 ।।
मन की कोमल जीवण बाई, सच्ची सीधी भोली भाली ।
हर्ष नाथ ने निज बहना की, कोई बात कभी ना टाली ।। 42 ।।
एक दिन राजा गंगो सिंह जी, परी से मिलने घर में आये ।
सीधे शयन कक्ष जा पहुँचे, बिना दुवार को ही खटकाये ।। 43 ।।
शयन कक्ष के अंदर जाकर, देख नजारा वो चकराये ।
परी बनी थी वहाँ सिंहनी, गंगो सिंह जी मन में घबराये ।। 44 ।।
परी यूँ बोली सुनो हे राजन, भेद मेरा तुम जान गये हो ।
अब तुम मुझसे मिल ना सकोगे, वादा अपना भूल गये हो ।। 45 ।।
शर्त तोड़कर तुमने राजन, वादे का अपमान किया है ।
इतना कहकर परी ने झटपट, इंद्रलोक प्रस्थान किया है ।। 46 ।।
कुछ दिन उनके साथ में रहकर, गंगो सिंह परलोक सिधारे ।
बड़े हुये थे फिर वो दोनों, बनके इक दूजे के सहारे ।। 47 ।।
हर्ष नाथ ने ब्याह रचाया, सुन्दर भावज घर में आयी ।
प्यारी भाभी को पाकर वो, मन में फूली नहीं समाई ।। 48 ।।
भाई बहन का प्यार अनोखा, भाभी को बिलकुल ना भाया ।
फूट ड़ालने उनके मन में, भावज ने एक जाल बिछाया ।। 49 ।।
जीण भवानी के उदगम् का, सच्चा हाल कहूँ में सारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 50 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कोनसा संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
माला बाबा अर्चन पूजा, मात जयन्ति की करते थे ।
पाराशर ब्राह्मण कुल- वंशी, देवी की सेवा करते थे ।। 26 ।।
माला बाबा के सेवा काल में, वाममार्गी यहाँ पर आये ।
अखण्ड धूनी सिद्धपीठ के, निकट में ही चालू करवाये ।। 27 ।।
कई वर्षो तक वाममार्गी, जीण धाम में समय बिताये ।
पूरी सम्प्रदाय के महन्त जी, उन सब के सरदार कहाये ।। 28 ।।
जीण धाम से वाममार्गी, कालान्तर में कूच किये थे ।
जाते हुये माला बाबा को, अखण्ड धूनी सौप गये थे ।। 29 ।।
कपिल मुनि भी उसी काल में, जीण धाम में आन पधारे ।
घोर तपस्या करी वहाँ पर, पर्वत से निकले जल धारे ।। 30 ।।
कपल धार की वह जलधारा, कुण्ड रूप में आज विराजे ।
उसी कुण्ड के जल से पुजारी, मैया को स्नान कराते ।। 31 ।।
आदिकाल की सच्ची घटना, भक्तो तुमको आज बताऊ ।
जीवण बाई हर्ष नाथ के, जीवन का वृत्तान्त सुनाऊँ ।। 32 ।।
राजस्थान के जिला चुरू में, धांघु नामक एक ग्राम था ।
चौहानों के ठाकुर राजा, गंगो सिंह का वहाँ राज था ।। 33 ।।
माला पुजारी को दर्शन दे, मात जयन्ति एक दिन बोली ।
जीण रूप में मै प्रगटूँगी, उनसे सच्चा भेद ये खोली ।। 34 ।।
जीवण बाई नाम की कन्या, गंगो सिंह के घर जन्मेगी ।
मेरी शक्ति से कलयुग में, घर घर उसकी पूजा होगी ।। 35 ।।
एक दिन राजा गंगो सिंह जी, खेलन को शिकार गये थे ।
वहाँ लोहागर जी के पास में, परी से नेना चार हुये थे ।। 36 ।।
सुंदरता से मंत्र मुग्ध हो, गंगो सिंह जी परी से बोले ।
शादी करना चाहूँ तुमसे, तू मेरी अर्धागिनी होले ।। 37 ।।
परी ये बोली सुनो हे राजा, मुझसे मेरा भेद न लेना ।
अगर भेद की बात करोगे, फिर पीछे तुम मत पछताना ।। 38 ।।
शर्त ये मेरी ध्यान से सुन लो, जब भी मेरे कक्ष में आओ ।
अंदर आने से पहले ही, शयन कक्ष को तुम खटकाओ ।। 39 ।।
शर्त मान कर गंगो सिंह ने, परी के संग में ब्याह रचाया ।
प्रेम और विश्वास के बल पे, अपना जीवन रथ चलाया ।। 40 ।।
परी की कोख से जीवण बाई, हर्ष नाथ दोनों थे जन्मे ।
बड़ा प्रेम आपस में रखते, भाई बहना अपने मन में ।। 41 ।।
मन की कोमल जीवण बाई, सच्ची सीधी भोली भाली ।
हर्ष नाथ ने निज बहना की, कोई बात कभी ना टाली ।। 42 ।।
एक दिन राजा गंगो सिंह जी, परी से मिलने घर में आये ।
सीधे शयन कक्ष जा पहुँचे, बिना दुवार को ही खटकाये ।। 43 ।।
शयन कक्ष के अंदर जाकर, देख नजारा वो चकराये ।
परी बनी थी वहाँ सिंहनी, गंगो सिंह जी मन में घबराये ।। 44 ।।
परी यूँ बोली सुनो हे राजन, भेद मेरा तुम जान गये हो ।
अब तुम मुझसे मिल ना सकोगे, वादा अपना भूल गये हो ।। 45 ।।
शर्त तोड़कर तुमने राजन, वादे का अपमान किया है ।
इतना कहकर परी ने झटपट, इंद्रलोक प्रस्थान किया है ।। 46 ।।
कुछ दिन उनके साथ में रहकर, गंगो सिंह परलोक सिधारे ।
बड़े हुये थे फिर वो दोनों, बनके इक दूजे के सहारे ।। 47 ।।
हर्ष नाथ ने ब्याह रचाया, सुन्दर भावज घर में आयी ।
प्यारी भाभी को पाकर वो, मन में फूली नहीं समाई ।। 48 ।।
भाई बहन का प्यार अनोखा, भाभी को बिलकुल ना भाया ।
फूट ड़ालने उनके मन में, भावज ने एक जाल बिछाया ।। 49 ।।
जीण भवानी के उदगम् का, सच्चा हाल कहूँ में सारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 50 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कोनसा संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
तृतिय अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
रजपुतो में चुनड़ी का तब, ऐसा चलन हुआ था जारी ।
तीज त्योहारो के अवसर पर, चुनड़ी लाय उढाये भाई ।। 51 ।।
हर्षनाथ की चुनड़ी देखकर, भावज बोली करके बहाना ।
जीवण को यह बड़ी पसंद है, यही चुनड़ी मुझे उढ़ाना ।। 52 ।।
भोले भाले हर्षनाथ ने, पत्नी की बातो को माना ।
निज पत्नी की चालाकी से, भाई था बिलकुल अनजाना ।। 53 ।।
जीवण के संग अगले ही दिन, भाभी पानी भरने आई ।
बातो ही बातो में उसने, जीवण को यह बात बताई ।। 54 ।।
तुमसे ज्यादा तेरा भाई, मुझसे प्रेम करे है जीवण ।
जीवण को विश्वास ना आया, शर्त लगी दोनों में उस क्षण ।। 55 ।।
भाभी बोली अमुक चुनड़ी, गर वो मुझको आज उढाये ।
तब तुम नणदल जान ही लेना, तुमसे ज्यादा मुझको चाहे ।। 56 ।।
होनी तो होकर रहती है, दोनों पानी भर कर लाई ।
घड़ा उतार के हर्षनाथ ने, पत्नी को चुनड़ी ओढ़ाई ।। 57 ।।
भारी ठेस लगी जीवण को, नैनो से बही अश्रु धारा ।
घड़ा फोड़ दौड़ी घाटी में, छुट गया पीछे जग सारा ।। 58 ।।
भाई पीछे दौड़ा आया, बहना को वो लाख मनाया ।
लेकिन उसने एक न मानी, होनी ने क्या जाल बिछाया ।। 59 ।।
अब भैया मै घर नहीं जाती, हर्ष नाथ को वो बतलाती ।
मोहमाया सब छोड़ चुकी हूँ, तज दी घर और सखा संघाती ।। 60 ।।
पर्वत के ऊपर जीवण ने, जाकर इतना नीर बहाया ।
नेंनो से जो काजल निकला, काजल शिखर वहीँ कहलाया ।। 61 ।।
शक्ति की फिर घोर तपस्या, जीवण भाई करने लागी ।
हर्षनाथ के मन में भक्तो, शंकर जी की भक्ति जागी ।। 62 ।।
उलट दिशाओ में मुँह करके, धोर तपस्या दोनों ने की ।
आदिशक्ति माँ भंवरावाली, जीवण के सन्मुख आ प्रगटी ।। 63 ।।
प्रगट होयकर मात जयन्ति, जीवण भाई से यूँ बोली ।
मेरी लौ तुझमे मिलने से, कहलाओगी जीण भवानी ।। 64 ।।
घर घर तेरी पूजा होगी, बोली माँ भँवरो की रानी ।
कलयुग में पूजी जाओगी, तुम भी बन भँवरो की रानी ।। 65 ।।
द्वापर युग में नन्द के घर में, इक कन्या ने जन्म लिया था ।
वसुदेव ने उस कन्या को, कृष्ण के बदले बदल दिया था ।। 66 ।।
कन्या रूप में मात जयन्ति, आठवीं बन सन्तान थी आई ।
कलयुग में माँ जीण भवानी, वहीँ जयन्ती बन कर आई ।। 67 ।।
हर्षनाथ ने शिव शंकर को, करके तपस्या खूब रिझाया ।
भोले जी की कृपा से फिर, भैरो रूप उन्ही से पाया ।। 68 ।।
शंकर जी का भवन निराला, हर्ष नाम के पर्वत ऊपर ।
भैरो हर्ष नाथ का मंदिर, बना हुआ है इस भूमि पर ।। 69 ।।
सच्ची घटना में बतलाऊँ, सच्चा हाल सुनाऊ सारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 70 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
तीज त्योहारो के अवसर पर, चुनड़ी लाय उढाये भाई ।। 51 ।।
हर्षनाथ की चुनड़ी देखकर, भावज बोली करके बहाना ।
जीवण को यह बड़ी पसंद है, यही चुनड़ी मुझे उढ़ाना ।। 52 ।।
भोले भाले हर्षनाथ ने, पत्नी की बातो को माना ।
निज पत्नी की चालाकी से, भाई था बिलकुल अनजाना ।। 53 ।।
जीवण के संग अगले ही दिन, भाभी पानी भरने आई ।
बातो ही बातो में उसने, जीवण को यह बात बताई ।। 54 ।।
तुमसे ज्यादा तेरा भाई, मुझसे प्रेम करे है जीवण ।
जीवण को विश्वास ना आया, शर्त लगी दोनों में उस क्षण ।। 55 ।।
भाभी बोली अमुक चुनड़ी, गर वो मुझको आज उढाये ।
तब तुम नणदल जान ही लेना, तुमसे ज्यादा मुझको चाहे ।। 56 ।।
होनी तो होकर रहती है, दोनों पानी भर कर लाई ।
घड़ा उतार के हर्षनाथ ने, पत्नी को चुनड़ी ओढ़ाई ।। 57 ।।
भारी ठेस लगी जीवण को, नैनो से बही अश्रु धारा ।
घड़ा फोड़ दौड़ी घाटी में, छुट गया पीछे जग सारा ।। 58 ।।
भाई पीछे दौड़ा आया, बहना को वो लाख मनाया ।
लेकिन उसने एक न मानी, होनी ने क्या जाल बिछाया ।। 59 ।।
अब भैया मै घर नहीं जाती, हर्ष नाथ को वो बतलाती ।
मोहमाया सब छोड़ चुकी हूँ, तज दी घर और सखा संघाती ।। 60 ।।
पर्वत के ऊपर जीवण ने, जाकर इतना नीर बहाया ।
नेंनो से जो काजल निकला, काजल शिखर वहीँ कहलाया ।। 61 ।।
शक्ति की फिर घोर तपस्या, जीवण भाई करने लागी ।
हर्षनाथ के मन में भक्तो, शंकर जी की भक्ति जागी ।। 62 ।।
उलट दिशाओ में मुँह करके, धोर तपस्या दोनों ने की ।
आदिशक्ति माँ भंवरावाली, जीवण के सन्मुख आ प्रगटी ।। 63 ।।
प्रगट होयकर मात जयन्ति, जीवण भाई से यूँ बोली ।
मेरी लौ तुझमे मिलने से, कहलाओगी जीण भवानी ।। 64 ।।
घर घर तेरी पूजा होगी, बोली माँ भँवरो की रानी ।
कलयुग में पूजी जाओगी, तुम भी बन भँवरो की रानी ।। 65 ।।
द्वापर युग में नन्द के घर में, इक कन्या ने जन्म लिया था ।
वसुदेव ने उस कन्या को, कृष्ण के बदले बदल दिया था ।। 66 ।।
कन्या रूप में मात जयन्ति, आठवीं बन सन्तान थी आई ।
कलयुग में माँ जीण भवानी, वहीँ जयन्ती बन कर आई ।। 67 ।।
हर्षनाथ ने शिव शंकर को, करके तपस्या खूब रिझाया ।
भोले जी की कृपा से फिर, भैरो रूप उन्ही से पाया ।। 68 ।।
शंकर जी का भवन निराला, हर्ष नाम के पर्वत ऊपर ।
भैरो हर्ष नाथ का मंदिर, बना हुआ है इस भूमि पर ।। 69 ।।
सच्ची घटना में बतलाऊँ, सच्चा हाल सुनाऊ सारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 70 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
चतुर्थ अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
वर्तमान में साक्षात् है, विधमान माँ आधी भवानी ।
शक्ति की कृपा से जीवण, कहलाई माँ जीण भवानी ।। 71 ।।
शिव पार्वती रूप तुम्हारा, दाहिनी और माँ।लक्ष्मी साजे ।
बाई तरफ में मात शारदा, वीणा वादिनी आप विराजे ।। 72 ।।
पाराशर के कुल वंशो को, माँ की पूजा का हक़ सारा ।
जीण भवानी की कृपा से, उन सबका चलता है गुजारा ।। 73 ।।
सारे जग में एक अकेली, तन्त्र भेद की मात भवानी ।
भक्तो का कल्याण करे है, अलबेली भँवरो की रानी ।। 74 ।।
चमत्कार है देवी तेरा, नमस्कार है मेरा तुझको ।
दास जानकर अपना माता, चरणों में रख लेना मुझको ।। 75 ।।
ऊपर काजल शिखर विराजे, नीचे भँवरो वाली साजे ।
बीच में मैया जीण भवानी, ड्योढ़ी पे नोबत है बाजे ।। 76 ।।
आठों पहर चौबीसों घन्टे, खुला रहे ये माँ का द्वारा ।
नंगे पैरो दौड़ी आई, जिसने मन से नाम पुकारा ।। 77 ।।
ऐसा है दरबार निराला, बिन बोले भक्तो की सुनती ।
बिन माँगे माँ दे देती हैं, भक्तो के कष्टों को हरती ।। 78 ।।
निर्धन दर पे दौलत पावे, लँगड़ा झटपट दौड़ा आवे ।
अंधे को आँखे मिल जाती, बाँझन पल में बेटा पावे ।। 79 ।।
दीन दयालु भंवरावाली, भक्तो की करती रखवाली ।
ये ही दुर्गा ये ही लक्ष्मी, ये ही काली खप्पर वाली ।। 80 ।।
जग में गुँजे नाम तिहारो, भक्तो को लागे अति प्यारा ।
सबसे प्यारा तेरा द्वारा, वैभव इस दुनियाँ से न्यारा ।। 81 ।।
मुखमण्डल की आभा भारी, अरज करे लाखों नर नारी ।
भक्तो का कल्याण करें माँ, नित की परचा देवे भारी ।। 82 ।।
मनसे जो भी नाम पुकारे, कट जाती है विपदा सारी ।
भक्तो के दुखड़े हर लेती, विध्न हरण माँ मंगलकारी ।। 83 ।।
सवामणी का भोग लगे है, सेवक जन गुणगान करे है ।
शरणागत की लाज रखे माँ, भक्तो का उद्धार करे है ।। 84 ।।
खीर चूरमा और नारियल, हलवा पूड़ी भोग है प्यारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 85 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
वर्तमान में साक्षात् है, विधमान माँ आधी भवानी ।
शक्ति की कृपा से जीवण, कहलाई माँ जीण भवानी ।। 71 ।।
शिव पार्वती रूप तुम्हारा, दाहिनी और माँ।लक्ष्मी साजे ।
बाई तरफ में मात शारदा, वीणा वादिनी आप विराजे ।। 72 ।।
पाराशर के कुल वंशो को, माँ की पूजा का हक़ सारा ।
जीण भवानी की कृपा से, उन सबका चलता है गुजारा ।। 73 ।।
सारे जग में एक अकेली, तन्त्र भेद की मात भवानी ।
भक्तो का कल्याण करे है, अलबेली भँवरो की रानी ।। 74 ।।
चमत्कार है देवी तेरा, नमस्कार है मेरा तुझको ।
दास जानकर अपना माता, चरणों में रख लेना मुझको ।। 75 ।।
ऊपर काजल शिखर विराजे, नीचे भँवरो वाली साजे ।
बीच में मैया जीण भवानी, ड्योढ़ी पे नोबत है बाजे ।। 76 ।।
आठों पहर चौबीसों घन्टे, खुला रहे ये माँ का द्वारा ।
नंगे पैरो दौड़ी आई, जिसने मन से नाम पुकारा ।। 77 ।।
ऐसा है दरबार निराला, बिन बोले भक्तो की सुनती ।
बिन माँगे माँ दे देती हैं, भक्तो के कष्टों को हरती ।। 78 ।।
निर्धन दर पे दौलत पावे, लँगड़ा झटपट दौड़ा आवे ।
अंधे को आँखे मिल जाती, बाँझन पल में बेटा पावे ।। 79 ।।
दीन दयालु भंवरावाली, भक्तो की करती रखवाली ।
ये ही दुर्गा ये ही लक्ष्मी, ये ही काली खप्पर वाली ।। 80 ।।
जग में गुँजे नाम तिहारो, भक्तो को लागे अति प्यारा ।
सबसे प्यारा तेरा द्वारा, वैभव इस दुनियाँ से न्यारा ।। 81 ।।
मुखमण्डल की आभा भारी, अरज करे लाखों नर नारी ।
भक्तो का कल्याण करें माँ, नित की परचा देवे भारी ।। 82 ।।
मनसे जो भी नाम पुकारे, कट जाती है विपदा सारी ।
भक्तो के दुखड़े हर लेती, विध्न हरण माँ मंगलकारी ।। 83 ।।
सवामणी का भोग लगे है, सेवक जन गुणगान करे है ।
शरणागत की लाज रखे माँ, भक्तो का उद्धार करे है ।। 84 ।।
खीर चूरमा और नारियल, हलवा पूड़ी भोग है प्यारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 85 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
पंचम अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
पाराशर सारे मिल करके, चैत के नवरात्रो के आगे ।
जीण भवानी का न्योता ले, हर्षनाथ के पास में जाते ।। 86 ।।
दाल चरमा बाटी की वो, सवामणी जाकर करवाते ।
न्यौता देकर हर्षनाथ को, सारे मिलकर रात जागते ।। 87 ।।
नवरात्रों में जीण धाम में, भारी भीड़ लगेगी भेरों ।
आकर उसको आप सम्भालो, न्यौता तुम माँ का स्वीकारो ।। 88 ।।
आशविंन चैत के नोरातो में, लगता माँ का मेला भारी ।
दर्शन माँ का करने आते, देश देशावर से नर नारी ।। 89 ।।
गठजोड़े से जात लगाये, बच्चों माँ मुण्डन करवाये ।
तरह तरह की मनोकामना, चौखट पे पूरी हो जाये ।। 90 ।।
नंगे पैरों चल कर आते, मन्दिर पे निशान चढ़ाते ।
भंवरा वाली जीण भवानी, मैया की वो किरपा पाते ।। 91 ।।
जै जैकार लगाते सारे, बच्चे बूढ़े नर और नारी ।
माता का गुणगान करे है, मिल कर के सब बारी बारी ।। 92 ।।
हरियाणा के नारनोल से, बत्तिसी का संध है आता ।
षष्ठी शुक्ला चैत में भक्तो, लिए मशाल हाथ में आता ।। 93 ।।
बारह बजे अध्ररात्रि में, इक्कीस सेवक चलकर आते ।
नंगी तलवारों को थामे, सीधे माँ के मंड में जाते ।। 94 ।।
तीन पुजारी मंड में उस पल, माँ की सेवा में है रहते ।
धोक लगा चरणों में सारे, जाकर अपना शीश झुकाते ।। 95 ।।
मंड के पीछे पुजारी मिल के, उनको बाना देकर आये ।
हारी बीमारी में वो बाना, पीछे उनकी लाज बचाए ।। 96 ।।
महासष्टमी के दिन सेवक, माता की फिर रात जागते ।
मीठे मीठे भाव भक्ति के, भजनों की बरसात कराते ।। 97 ।।
महा- अष्टमी के दिन सारे, चरणों में जा धोक लगाते ।
माता का वो कर भंडारा, खीर चूरमा भोग लगाते ।। 98 ।।
कलकत्ता से नवरात्रों में, कई समिति दर पर जाती ।
गोरिया मोड़ से पैदल चल कर, माता का निशान चढ़ाती ।। 99 ।।
विप्रजनो और कन्याओं के, सारे मिलकर चरण धुलाये ।
बड़े प्रेम और श्रद्धा से फिर, उन सबको वो भोज कराते ।। 100 ।।
टोले के टोले दर आते, मीठे मीठे भजन सुनाते ।
जय माँ जीण के जयकारों से, धरती अम्बर है गुँजाते ।। 101 ।।
कहते है माँ नवरात्रों में, सबकी इच्छा पूरण करती ।
दर पे आये हर सेवक की, जीण भवानी झोली भरती ।। 102 ।।
खोल खज़ाना माल लुटाती, भक्तो के भण्डार है भरती ।
सेवक इतना पाते उनकी, झोली भी छोटी पड़ जाती ।। 103 ।।
अपने भक्तो की रखवाली, करती है माँ भंवरा वाली ।
दुष्टो को ये मार भगाये, भक्तो का हित करने वाली ।। 104 ।।
माँ का नाम बड़ा ही प्यारा, दुःखडो से मिलता छुटकारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 105 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
पाराशर सारे मिल करके, चैत के नवरात्रो के आगे ।
जीण भवानी का न्योता ले, हर्षनाथ के पास में जाते ।। 86 ।।
दाल चरमा बाटी की वो, सवामणी जाकर करवाते ।
न्यौता देकर हर्षनाथ को, सारे मिलकर रात जागते ।। 87 ।।
नवरात्रों में जीण धाम में, भारी भीड़ लगेगी भेरों ।
आकर उसको आप सम्भालो, न्यौता तुम माँ का स्वीकारो ।। 88 ।।
आशविंन चैत के नोरातो में, लगता माँ का मेला भारी ।
दर्शन माँ का करने आते, देश देशावर से नर नारी ।। 89 ।।
गठजोड़े से जात लगाये, बच्चों माँ मुण्डन करवाये ।
तरह तरह की मनोकामना, चौखट पे पूरी हो जाये ।। 90 ।।
नंगे पैरों चल कर आते, मन्दिर पे निशान चढ़ाते ।
भंवरा वाली जीण भवानी, मैया की वो किरपा पाते ।। 91 ।।
जै जैकार लगाते सारे, बच्चे बूढ़े नर और नारी ।
माता का गुणगान करे है, मिल कर के सब बारी बारी ।। 92 ।।
हरियाणा के नारनोल से, बत्तिसी का संध है आता ।
षष्ठी शुक्ला चैत में भक्तो, लिए मशाल हाथ में आता ।। 93 ।।
बारह बजे अध्ररात्रि में, इक्कीस सेवक चलकर आते ।
नंगी तलवारों को थामे, सीधे माँ के मंड में जाते ।। 94 ।।
तीन पुजारी मंड में उस पल, माँ की सेवा में है रहते ।
धोक लगा चरणों में सारे, जाकर अपना शीश झुकाते ।। 95 ।।
मंड के पीछे पुजारी मिल के, उनको बाना देकर आये ।
हारी बीमारी में वो बाना, पीछे उनकी लाज बचाए ।। 96 ।।
महासष्टमी के दिन सेवक, माता की फिर रात जागते ।
मीठे मीठे भाव भक्ति के, भजनों की बरसात कराते ।। 97 ।।
महा- अष्टमी के दिन सारे, चरणों में जा धोक लगाते ।
माता का वो कर भंडारा, खीर चूरमा भोग लगाते ।। 98 ।।
कलकत्ता से नवरात्रों में, कई समिति दर पर जाती ।
गोरिया मोड़ से पैदल चल कर, माता का निशान चढ़ाती ।। 99 ।।
विप्रजनो और कन्याओं के, सारे मिलकर चरण धुलाये ।
बड़े प्रेम और श्रद्धा से फिर, उन सबको वो भोज कराते ।। 100 ।।
टोले के टोले दर आते, मीठे मीठे भजन सुनाते ।
जय माँ जीण के जयकारों से, धरती अम्बर है गुँजाते ।। 101 ।।
कहते है माँ नवरात्रों में, सबकी इच्छा पूरण करती ।
दर पे आये हर सेवक की, जीण भवानी झोली भरती ।। 102 ।।
खोल खज़ाना माल लुटाती, भक्तो के भण्डार है भरती ।
सेवक इतना पाते उनकी, झोली भी छोटी पड़ जाती ।। 103 ।।
अपने भक्तो की रखवाली, करती है माँ भंवरा वाली ।
दुष्टो को ये मार भगाये, भक्तो का हित करने वाली ।। 104 ।।
माँ का नाम बड़ा ही प्यारा, दुःखडो से मिलता छुटकारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 105 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
षष्ठम् अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
सर्वसुहागण तुझे मनाती, हाथो से माँ तुझे सजाती ।
लाल चुनड़ी चूड़ा मेहँदी, रोली मोली भेंट चढ़ाती ।। 106 ।।
लाल फूल के गजरे सोहे, सोणा सा सिणगार भवानी ।
सांची है सकलाई तेरी, साँचा है दरबार भवानी ।। 107 ।।
जीण जीण जो नाम पुकारे, उसको तू संकट से उबारे ।
ह्रदय बीच बसाकर देखो, हो जायेंगे वारे न्यारे ।। 108 ।।
सभा मंड में मात विराजे, सिर सोने का छत्र साजे ।
लाल ध्वजा तेरे मंड पे फहरे, सात कलश तेरे शिखर पे साजे ।। 109 ।।
कानो में तेरे कुण्डल साजे, शीश बोरला सजे सुहाना ।
हाथो में त्रिशूल भवानी, गल मोतियन का हार सुहाना ।। 110 ।।
हाथो मेंहन्दी रची सुरंगी, माँ का मुखड़ा दम दम दमके ।
लाल चुनरियाँ चमचम चमके, नथली में माँ हिरा चमके ।। 111 ।।
सिन्दूरी माँ तिलक लगा है, छप्पन भोग का थाल सजा है ।
महक रहा दरबार तुम्हारा, इत्र का अंबार लगा है ।। 112 ।।
सिंहासन पर आप विराजो, सेवक चँवर ढुलाये माता ।
देख देख श्रंगार तुम्हारा, सेवक लेत बुलाये माता ।। 113 ।।
लाल जवा की माला सोहे, हीरा पन्ना दम-दम दमके ।
हार बासीको गले में सोहे, माथे पे तेरे बिन्दिया चमके ।। 114 ।।
ढोल नगाड़े दर पे बाजे, भक्तो की माँ भीड़ बड़ी है ।
दोनों हाथ पसारे मैया, दुनिया तेरे द्वारा खड़ी है ।। 115 ।।
मुखड़े पे है तेज निराला, सिंह पीठ पर आप विराजे ।
नैनो से तेरे ममता बरसे, दर्शन से माँ संकट भाजे ।। 116 ।।
अदभुत है सिणगार भवानी, प्यारा सा है निखार भवानी ।
पल भर भी आँखे ना हटती, सेवक रहे निहार भवानी ।। 117 ।।
सज के मैया यूँ बैठी है, मानो जेसे कोई शक्ति ।
भक्त करे अरदास आपसे, दे दो माँ हम सबको भक्ति ।। 118 ।।
तेरी ममता हम बच्चों को, यूँ ही हर दम मिलती जाये ।
जन्म जन्म तक जीण भवानी, तेरी कृपा हम सब पाये ।। 119 ।।
सुन्दर ये श्रृंगार तुम्हारा, हम सबको लगता माँ प्यारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 120 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
सर्वसुहागण तुझे मनाती, हाथो से माँ तुझे सजाती ।
लाल चुनड़ी चूड़ा मेहँदी, रोली मोली भेंट चढ़ाती ।। 106 ।।
लाल फूल के गजरे सोहे, सोणा सा सिणगार भवानी ।
सांची है सकलाई तेरी, साँचा है दरबार भवानी ।। 107 ।।
जीण जीण जो नाम पुकारे, उसको तू संकट से उबारे ।
ह्रदय बीच बसाकर देखो, हो जायेंगे वारे न्यारे ।। 108 ।।
सभा मंड में मात विराजे, सिर सोने का छत्र साजे ।
लाल ध्वजा तेरे मंड पे फहरे, सात कलश तेरे शिखर पे साजे ।। 109 ।।
कानो में तेरे कुण्डल साजे, शीश बोरला सजे सुहाना ।
हाथो में त्रिशूल भवानी, गल मोतियन का हार सुहाना ।। 110 ।।
हाथो मेंहन्दी रची सुरंगी, माँ का मुखड़ा दम दम दमके ।
लाल चुनरियाँ चमचम चमके, नथली में माँ हिरा चमके ।। 111 ।।
सिन्दूरी माँ तिलक लगा है, छप्पन भोग का थाल सजा है ।
महक रहा दरबार तुम्हारा, इत्र का अंबार लगा है ।। 112 ।।
सिंहासन पर आप विराजो, सेवक चँवर ढुलाये माता ।
देख देख श्रंगार तुम्हारा, सेवक लेत बुलाये माता ।। 113 ।।
लाल जवा की माला सोहे, हीरा पन्ना दम-दम दमके ।
हार बासीको गले में सोहे, माथे पे तेरे बिन्दिया चमके ।। 114 ।।
ढोल नगाड़े दर पे बाजे, भक्तो की माँ भीड़ बड़ी है ।
दोनों हाथ पसारे मैया, दुनिया तेरे द्वारा खड़ी है ।। 115 ।।
मुखड़े पे है तेज निराला, सिंह पीठ पर आप विराजे ।
नैनो से तेरे ममता बरसे, दर्शन से माँ संकट भाजे ।। 116 ।।
अदभुत है सिणगार भवानी, प्यारा सा है निखार भवानी ।
पल भर भी आँखे ना हटती, सेवक रहे निहार भवानी ।। 117 ।।
सज के मैया यूँ बैठी है, मानो जेसे कोई शक्ति ।
भक्त करे अरदास आपसे, दे दो माँ हम सबको भक्ति ।। 118 ।।
तेरी ममता हम बच्चों को, यूँ ही हर दम मिलती जाये ।
जन्म जन्म तक जीण भवानी, तेरी कृपा हम सब पाये ।। 119 ।।
सुन्दर ये श्रृंगार तुम्हारा, हम सबको लगता माँ प्यारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 120 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
सप्तम् अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट हा हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।
पूजन थाल सजा कर माता, आज आरती तेरी उतारूँ ।
द्वार खड़ा माँ तेरा बालक, सोणी मूरत तेरी निहारूँ ।। 121 ।।
मैया तुझको तिलक लगा कर, हाथो में चूड़ा पहनाऊँ ।
लाल सुरंगी मेंहन्दी तेरे, हाथो में माँ आज रचाऊँ ।। 122 ।।
जवा कुसूम के फूलो से माँ, प्यारा सा इक हार बनाऊँ ।
लाल चुनरिया तारो वाली, माता तुझको आज उढ़ाऊँ ।। 123 ।।
भाव भरी ये लाल चुनरिया, अम्बर से सजकर है आई ।
सूरज चाँद सितारों की माँ, किरणें इसमें आन समाई ।। 124 ।।
ब्रम्हा जी ने बड़े चाव से, बुनकर के इक पोत बनाया ।
विष्णु जी ने बड़े प्रेम से, निज हाथो से इसे सजाया ।। 125 ।।
श्री गणेश को लिए साथ में, भोले पार्वती भी आये ।
आज जरा इसे मान से ओढ़ो, इन्दर देव गण सभी मनाये ।। 126 ।।
लम्पी लूमा लगी सुरंगी, भाव भरी ये चुनड़ ओढ़ो ।
मुझको अपना जान भवानी, माँ बेटे का रिश्ता जोड़ो ।। 127 ।।
इन्द्र धनुष के साथ रंगों से, रंगी चुनरिया लाये माता ।
बड़े प्रेम से सारे सेवक, तुझको आज उढाये माता ।। 128 ।।
सबका तूने मान बढ़ाया, मुझको ना बिसराना माता ।
सरण तुम्हारी आन पड़ा हूँ, यूँ ही ना ठुकराना माता ।। 129 ।।
तेरी कृपा जिस पर होवे, चमके है किस्मत का तारा ।
जब जब तेरा नाम पुकारा, तूने आकर दिया सहारा ।। 130 ।।
ममता की माँ शीतल छाया, आज मुझे भी दे देना तूम ।
चरणों में दे मुझे ठिकाना, सरण तुम्हारी ले लेना तुम ।। 131 ।।
ख़ाली झोली लेकर माता, द्वार तुम्हारे बेटा आया ।
पलक झपकते भर जायेगी, जान गया में तेरी माया ।। 132 ।।
भाव भरे ना भक्ति आई, मेरे पापी मन के अन्दर ।
दया करो बन जाये इसमें, तेरा प्यारा सा इक मंदिर ।। 133 ।।
पूण्य आत्माओं के घर में, रहती हो तुम सदा भवानी ।
तेरी कृपा से ही जग सारा, रहता है खुशहाल भवानी ।। 134 ।।
मंगल करणी हे दुःख हरणी, हम को है आधार तुम्हारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 135 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।
पूजन थाल सजा कर माता, आज आरती तेरी उतारूँ ।
द्वार खड़ा माँ तेरा बालक, सोणी मूरत तेरी निहारूँ ।। 121 ।।
मैया तुझको तिलक लगा कर, हाथो में चूड़ा पहनाऊँ ।
लाल सुरंगी मेंहन्दी तेरे, हाथो में माँ आज रचाऊँ ।। 122 ।।
जवा कुसूम के फूलो से माँ, प्यारा सा इक हार बनाऊँ ।
लाल चुनरिया तारो वाली, माता तुझको आज उढ़ाऊँ ।। 123 ।।
भाव भरी ये लाल चुनरिया, अम्बर से सजकर है आई ।
सूरज चाँद सितारों की माँ, किरणें इसमें आन समाई ।। 124 ।।
ब्रम्हा जी ने बड़े चाव से, बुनकर के इक पोत बनाया ।
विष्णु जी ने बड़े प्रेम से, निज हाथो से इसे सजाया ।। 125 ।।
श्री गणेश को लिए साथ में, भोले पार्वती भी आये ।
आज जरा इसे मान से ओढ़ो, इन्दर देव गण सभी मनाये ।। 126 ।।
लम्पी लूमा लगी सुरंगी, भाव भरी ये चुनड़ ओढ़ो ।
मुझको अपना जान भवानी, माँ बेटे का रिश्ता जोड़ो ।। 127 ।।
इन्द्र धनुष के साथ रंगों से, रंगी चुनरिया लाये माता ।
बड़े प्रेम से सारे सेवक, तुझको आज उढाये माता ।। 128 ।।
सबका तूने मान बढ़ाया, मुझको ना बिसराना माता ।
सरण तुम्हारी आन पड़ा हूँ, यूँ ही ना ठुकराना माता ।। 129 ।।
तेरी कृपा जिस पर होवे, चमके है किस्मत का तारा ।
जब जब तेरा नाम पुकारा, तूने आकर दिया सहारा ।। 130 ।।
ममता की माँ शीतल छाया, आज मुझे भी दे देना तूम ।
चरणों में दे मुझे ठिकाना, सरण तुम्हारी ले लेना तुम ।। 131 ।।
ख़ाली झोली लेकर माता, द्वार तुम्हारे बेटा आया ।
पलक झपकते भर जायेगी, जान गया में तेरी माया ।। 132 ।।
भाव भरे ना भक्ति आई, मेरे पापी मन के अन्दर ।
दया करो बन जाये इसमें, तेरा प्यारा सा इक मंदिर ।। 133 ।।
पूण्य आत्माओं के घर में, रहती हो तुम सदा भवानी ।
तेरी कृपा से ही जग सारा, रहता है खुशहाल भवानी ।। 134 ।।
मंगल करणी हे दुःख हरणी, हम को है आधार तुम्हारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 135 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
अष्टम् अघ्याय
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
नमो नमो हे जीण भवानी, नमो नमो हे अंबे रानी ।
तीनो लोकों में ना दूजा, मैया तेरा कोई सानी ।। 136 ।।
मन मोहक है रूप तुम्हारा, साँचा है माँ नाम तुम्हारा ।
जीण धाम की हे महारानी, सिद्धपीठ है धाम तुम्हारा ।। 137 ।।
अन्नपूर्णा अन्न की दाता, धन वैभव की लक्ष्मी माता ।
ज्ञान बुद्दि का रूप शारदे, चण्डी रूप में दुर्गा माता ।। 138 ।।
हिंगलाज में आप भवानी, महिमा तेरी किसने जानी ।
सिंह सवारी करती माता, तुमसा दूजा कोई ना दानी ।। 139 ।।
नमन् है तुमको माँ बाह्यणी, नमन है तुमको है रुद्राणी ।
शत् शत् नमन हमारा तुमको, नमन है तुमको जग कल्याणी ।। 140 ।।
सुख सम्पति की तुम हो दाता, नमस्कार हे भाग्य विधाता ।
बल बुद्दी विधा की देवी, मातृ रूप में तुझे मनाता ।। 141 ।।
कृपा करो हे मात भवानी, खोल मेरी तकदीर का ताला ।
शरणागत् को तूने माता, सारी विपदाओं से टाला ।। 142 ।।
ऐसा दो वरदान भवानी, जन्म जन्म में तुझको पाऊँ ।
जब तक सांस चले ये मेरी, मैया तेरी महिमा गाऊँ ।। 143 ।।
जग की माया मुझे सताये, रह रह करके मुझे डराये ।
तेरा ध्यान धरूँ जब माता, आकर ये बाधा पहुँचाये ।। 144 ।।
मुझको माँ दुःखडो ने घेरा, तुम बिन कौन यहाँ पर मेरा ।
तुम ही आकर राह दिखाओ, छाया है घनघोर अँधेरा ।। 145 ।।
मैया मैया आज पुकारूँ, सुनले करुण पुकार भवानी ।
आजा मुझको गले लगाले, थोडा सा दे प्यार भवानी ।। 146 ।।
माना बिल्कुल नालायक हूँ, फिर भी में हूँ लाल तुम्हारा ।
बिन तेरे अब कौन सुने माँ, आजा सुनले हाल हमारा ।। 147 ।।
सेवा पूजा कुछ ना जाने, छोटा सा ये दास भवानी ।
भूल चूक की माफ़ी देना, तुमसे है अरदास भवानी ।। 148 ।।
धन दौलत ना पास में मेरे, दो आँसू में भेंट में लाया ।
मन मंदिर में मूरत तेरी, आज बसा कर दौड़ा आया ।। 149 ।।
चरणों में बस बेठा रहूँ में,मन में मेरे आस यही है ।
निर्मोही दुनिया की मुझको, अब कुछ परवाह नहीं है ।। 150 ।।
अपनों ने ही मुझे सताया, गैरो ने माँ खूब रुलाया ।
आखिर थक कर जीण भवानी, शरण तिहारी लेने आया ।। 151 ।।
पाप की गठरी सिर पर लादे, भटक रहा हूँ जग जगंल में ।
जूझ रहा पतवार लिये माँ, मोह माया के इस दंगल में ।। 152 ।।
जितने तारे नील गगन में, चाहे उतने शत्रु होवे ।
तेरी दया हो जिस पर माता, उसका बाल ने बाँका होवे ।। 153 ।।
बावन भेरों चौसठ योगिनी, आगे भैरू नृत्य करत है ।
बह्मा, विष्णु, शिव शंकर माँ, हर पल तेरा ध्यान धरत है ।। 154 ।।
तू ही काली तू जगदम्बा, ये सृष्टि है खेल तुम्हारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 155 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
नमो नमो हे जीण भवानी, नमो नमो हे अंबे रानी ।
तीनो लोकों में ना दूजा, मैया तेरा कोई सानी ।। 136 ।।
मन मोहक है रूप तुम्हारा, साँचा है माँ नाम तुम्हारा ।
जीण धाम की हे महारानी, सिद्धपीठ है धाम तुम्हारा ।। 137 ।।
अन्नपूर्णा अन्न की दाता, धन वैभव की लक्ष्मी माता ।
ज्ञान बुद्दि का रूप शारदे, चण्डी रूप में दुर्गा माता ।। 138 ।।
हिंगलाज में आप भवानी, महिमा तेरी किसने जानी ।
सिंह सवारी करती माता, तुमसा दूजा कोई ना दानी ।। 139 ।।
नमन् है तुमको माँ बाह्यणी, नमन है तुमको है रुद्राणी ।
शत् शत् नमन हमारा तुमको, नमन है तुमको जग कल्याणी ।। 140 ।।
सुख सम्पति की तुम हो दाता, नमस्कार हे भाग्य विधाता ।
बल बुद्दी विधा की देवी, मातृ रूप में तुझे मनाता ।। 141 ।।
कृपा करो हे मात भवानी, खोल मेरी तकदीर का ताला ।
शरणागत् को तूने माता, सारी विपदाओं से टाला ।। 142 ।।
ऐसा दो वरदान भवानी, जन्म जन्म में तुझको पाऊँ ।
जब तक सांस चले ये मेरी, मैया तेरी महिमा गाऊँ ।। 143 ।।
जग की माया मुझे सताये, रह रह करके मुझे डराये ।
तेरा ध्यान धरूँ जब माता, आकर ये बाधा पहुँचाये ।। 144 ।।
मुझको माँ दुःखडो ने घेरा, तुम बिन कौन यहाँ पर मेरा ।
तुम ही आकर राह दिखाओ, छाया है घनघोर अँधेरा ।। 145 ।।
मैया मैया आज पुकारूँ, सुनले करुण पुकार भवानी ।
आजा मुझको गले लगाले, थोडा सा दे प्यार भवानी ।। 146 ।।
माना बिल्कुल नालायक हूँ, फिर भी में हूँ लाल तुम्हारा ।
बिन तेरे अब कौन सुने माँ, आजा सुनले हाल हमारा ।। 147 ।।
सेवा पूजा कुछ ना जाने, छोटा सा ये दास भवानी ।
भूल चूक की माफ़ी देना, तुमसे है अरदास भवानी ।। 148 ।।
धन दौलत ना पास में मेरे, दो आँसू में भेंट में लाया ।
मन मंदिर में मूरत तेरी, आज बसा कर दौड़ा आया ।। 149 ।।
चरणों में बस बेठा रहूँ में,मन में मेरे आस यही है ।
निर्मोही दुनिया की मुझको, अब कुछ परवाह नहीं है ।। 150 ।।
अपनों ने ही मुझे सताया, गैरो ने माँ खूब रुलाया ।
आखिर थक कर जीण भवानी, शरण तिहारी लेने आया ।। 151 ।।
पाप की गठरी सिर पर लादे, भटक रहा हूँ जग जगंल में ।
जूझ रहा पतवार लिये माँ, मोह माया के इस दंगल में ।। 152 ।।
जितने तारे नील गगन में, चाहे उतने शत्रु होवे ।
तेरी दया हो जिस पर माता, उसका बाल ने बाँका होवे ।। 153 ।।
बावन भेरों चौसठ योगिनी, आगे भैरू नृत्य करत है ।
बह्मा, विष्णु, शिव शंकर माँ, हर पल तेरा ध्यान धरत है ।। 154 ।।
तू ही काली तू जगदम्बा, ये सृष्टि है खेल तुम्हारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 155 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नवम् अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
कुल की देवी जीण भवानी, मन इच्छा माँ पूरी करना ।
दास खड़ा अरदास गुजारे, मान हमारा तुम रख लेना ।। 156 ।।
ऊँचे आसन आप विराजो, गंगा जल से चरण धुलाऊँ ।
रुखा सुखा पास जो मेरे, भोग लगा कर भोग में पाऊ ।। 157 ।।
धन दौलत ना पास में मेरे, सर्दा चाहे जितनी लेना ।
मन में मेरे भाव भरे है, आकर माता तुम पढ़ लेना ।। 158 ।।
डूब न जाये नैया मेरी, आकर तुम पतवार सम्भालो ।
बीच भँवर में नाव हमारी, आकर के माँ इसे निकालो ।। 159 ।।
माना मैया में पापी हूँ, फिर भी मेरी विनती सुनना ।
भूल चूक जो होवे मुझसे, उसकी लाज सदा तुम रखना ।। 160 ।।
अपनी शरण में लेना मैया, मुझको ना बिसराना मैया ।
तेरे बिना है जीण भवानी, नहीं ठिकाना दूजा मैया ।। 161 ।।
आदिशक्ति हे जीण भवानी, सारा जग माँ तुझको ध्याये ।
शिव शंकर भी आदि देव की, तुझसे ही माँ पदवी पाये ।। 162 ।।
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शिव शंकर तेरा ध्यान धरे है ।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती,चँवर कुबेर ढुलाय रहे है ।। 163 ।।
तुम ही हो सर्वस्व हे जननी, सारी दुनिया तेरी माया ।
चारों धाम तेरे चरणों में, तुझमे ह बह्ममंड समाया ।। 164 ।।
माना मै नालायक हूँ माँ, त्याग ना देना मुझको माता ।
पूत कपूत तो हो सकता है, माता हुई ना कभी कुमाता ।। 165 ।।
तेरे जैसी मैया पाकर, बालक तेरी शरण में आया ।
आँचल में माँ आज छिपाले, सारी दौलत आज मै पाया ।। 166 ।।
जिस घर में हो कृपा तुम्हारी, उस घर कोई कमी ना आवे ।
युगों युगों तक जीण भवानी, वो प्राणी जग से तर जावे ।। 167 ।।
जीण नाम का जाप करू तो, जीवन में मधुपाक बनाऊँ ।
ऐसा दो वरदान भवानी, हर पल तेरा ही गुण गाऊँ ।। 168 ।।
सुदी अष्टमी - नवमी को माँ, जो कोई लेता ज्योत तुम्हारी ।
प्रगट होय कर मात भवानी, मन इच्छा फल तू दे जाती है ।। 169 ।।
रोज नियम से पाठ करे जो, उसका पल में कष्ट टलेगा ।
ग्यारह पाठ करे जो कोई, मन इच्छा फल उसे मिलेगा ।। 170 ।।
यह शत पाठ करे जो प्राणी, भव सागर से तर जायेगा ।
जीण भवानी महर करेगी, दामन उसका भर जायेगा ।। 171 ।।
स्नान ध्यान कर धुप दीप धर, जो ये मंगल पाठ करेगा ।
हर्ष कहे माँ तेरी दया से, उस नर का भण्डार भरेगा ।। 172 ।।
दुःख दारिद्र पास नहीं आते, शक्ति पाठ जहाँ हो तेरा ।
जिस घर में माँ आप विराजो, करती लक्ष्मी वहाँ बसेरा ।। 173 ।।
कलम विराजी मात शारदा, मन बुद्धि को चिन्तन दीन्हा ।
मंगल पाठ भवानी तेरे, हर्ष भक्त ने पूरा कीन्हा ।। 174 ।।
मंगल पाठ करे जो कोई, निषचय हो जावे भव पारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 175 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
दोहा
मैया जीण की ज्योत ले, करेगा जो ये पाठ ।
भंवरा वाली की कृपा से, सदा रहेंगे ठाठ ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।
नाम जपे माँ खुश हो जावे, संकट हर लेती है सारा ।।
कुल की देवी जीण भवानी, मन इच्छा माँ पूरी करना ।
दास खड़ा अरदास गुजारे, मान हमारा तुम रख लेना ।। 156 ।।
ऊँचे आसन आप विराजो, गंगा जल से चरण धुलाऊँ ।
रुखा सुखा पास जो मेरे, भोग लगा कर भोग में पाऊ ।। 157 ।।
धन दौलत ना पास में मेरे, सर्दा चाहे जितनी लेना ।
मन में मेरे भाव भरे है, आकर माता तुम पढ़ लेना ।। 158 ।।
डूब न जाये नैया मेरी, आकर तुम पतवार सम्भालो ।
बीच भँवर में नाव हमारी, आकर के माँ इसे निकालो ।। 159 ।।
माना मैया में पापी हूँ, फिर भी मेरी विनती सुनना ।
भूल चूक जो होवे मुझसे, उसकी लाज सदा तुम रखना ।। 160 ।।
अपनी शरण में लेना मैया, मुझको ना बिसराना मैया ।
तेरे बिना है जीण भवानी, नहीं ठिकाना दूजा मैया ।। 161 ।।
आदिशक्ति हे जीण भवानी, सारा जग माँ तुझको ध्याये ।
शिव शंकर भी आदि देव की, तुझसे ही माँ पदवी पाये ।। 162 ।।
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शिव शंकर तेरा ध्यान धरे है ।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती,चँवर कुबेर ढुलाय रहे है ।। 163 ।।
तुम ही हो सर्वस्व हे जननी, सारी दुनिया तेरी माया ।
चारों धाम तेरे चरणों में, तुझमे ह बह्ममंड समाया ।। 164 ।।
माना मै नालायक हूँ माँ, त्याग ना देना मुझको माता ।
पूत कपूत तो हो सकता है, माता हुई ना कभी कुमाता ।। 165 ।।
तेरे जैसी मैया पाकर, बालक तेरी शरण में आया ।
आँचल में माँ आज छिपाले, सारी दौलत आज मै पाया ।। 166 ।।
जिस घर में हो कृपा तुम्हारी, उस घर कोई कमी ना आवे ।
युगों युगों तक जीण भवानी, वो प्राणी जग से तर जावे ।। 167 ।।
जीण नाम का जाप करू तो, जीवन में मधुपाक बनाऊँ ।
ऐसा दो वरदान भवानी, हर पल तेरा ही गुण गाऊँ ।। 168 ।।
सुदी अष्टमी - नवमी को माँ, जो कोई लेता ज्योत तुम्हारी ।
प्रगट होय कर मात भवानी, मन इच्छा फल तू दे जाती है ।। 169 ।।
रोज नियम से पाठ करे जो, उसका पल में कष्ट टलेगा ।
ग्यारह पाठ करे जो कोई, मन इच्छा फल उसे मिलेगा ।। 170 ।।
यह शत पाठ करे जो प्राणी, भव सागर से तर जायेगा ।
जीण भवानी महर करेगी, दामन उसका भर जायेगा ।। 171 ।।
स्नान ध्यान कर धुप दीप धर, जो ये मंगल पाठ करेगा ।
हर्ष कहे माँ तेरी दया से, उस नर का भण्डार भरेगा ।। 172 ।।
दुःख दारिद्र पास नहीं आते, शक्ति पाठ जहाँ हो तेरा ।
जिस घर में माँ आप विराजो, करती लक्ष्मी वहाँ बसेरा ।। 173 ।।
कलम विराजी मात शारदा, मन बुद्धि को चिन्तन दीन्हा ।
मंगल पाठ भवानी तेरे, हर्ष भक्त ने पूरा कीन्हा ।। 174 ।।
मंगल पाठ करे जो कोई, निषचय हो जावे भव पारा ।
जीण जीण भज बारम्बारा, हर संकट का हो निस्तारा ।। 175 ।।
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर, बना जीण का धाम ।
नित की परचा देत है, पूरण करती काम ।।
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी, जीण नाम होता हितकारी ।
कौन सो संकट है जग माँहि, जो मेरी मैया मेट न पाई ।।
दोहा
मैया जीण की ज्योत ले, करेगा जो ये पाठ ।
भंवरा वाली की कृपा से, सदा रहेंगे ठाठ ।।
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ