हम परदेसी पंछी बाबा आणि देसरा नाही लिरिक्स हिंदी मीनिंग Hum Pardesi Panchi Baba Ani Desh Ra Nahi Lyrics Hindi Meaning कबीर भजन हिंदी में
हम परदेसी पंछी बाबा, आणि देसरा नाही,
आणि देसरा लोग अचेता, पल-पल पल परलय् जाई
मुख बिन गान, पग बिन चलना, बिना पंख उड जाई,
बिना मोह की सूरत हमारी, अनहद में रम जाई
छाया बैठूं अगनि व्यापै, धूप अधिक शितळाई,
छाया धूप से सतगुरू न्यारा, हम सतगुरू के माहीं
आठौं पहर अडा राहे आसन, कदै ना उतरिल सांई,
मन पवना दोनो नाही पहूंचे, उनी देखरा माहीं
निर्गुन रूपी है मेरा दाता, सगुन नाम धराई,
कहे कबीरा, सुनो भाई साधो, साहेब है घटमांही
आणि देसरा लोग अचेता, पल-पल पल परलय् जाई
मुख बिन गान, पग बिन चलना, बिना पंख उड जाई,
बिना मोह की सूरत हमारी, अनहद में रम जाई
छाया बैठूं अगनि व्यापै, धूप अधिक शितळाई,
छाया धूप से सतगुरू न्यारा, हम सतगुरू के माहीं
आठौं पहर अडा राहे आसन, कदै ना उतरिल सांई,
मन पवना दोनो नाही पहूंचे, उनी देखरा माहीं
निर्गुन रूपी है मेरा दाता, सगुन नाम धराई,
कहे कबीरा, सुनो भाई साधो, साहेब है घटमांही
इस भजन का हिंदी में भावार्थ : Hindi Meaning of "Hum Pardesi Panchi Baba"
हम परदेसी पंछी बाबा, अणी देसरा नाही
Hum pardesi panchhi baba, ani desara nahi.
अणी देसरा लोग अचेता पल पल पर पछ्ताई भाई संतो
Ani desara log acheta pal pal par pachhtaai bhai santo
(And listen dear saints, the people from This Shrashti (land) repent every moment)
मुख बिन गाना, पग बिन चलना, बिन पंख उड जाई हो
Mukh bin gaana, pag bin chalana, bin pankh ud jaai ho
(one would sing without mouth, would walk without feet, and would fly without wings)
बिना मोह की सुरत हमारी, अनहद मे रम जाई हो
Bina moh ki surat humari, anahad mein ram jaai ho
(My identity is one that is unattached, who is constantly engaged in divine pursuit)
छाया बैठू अगनी व्यापे धूप अधिक सितलाई हो
Chhaya baithu agani vyape, dhoop adhik sitlaai ho
(when one sits in shadow, he can feel heat of fire and in the sun, he experiences coolness)
छाया धूप से सतगुरु न्यारा, मै सतगुरु के भाई
Chhaya Dhoop se satguru nyaara, main satguru ke bhai
(Guru is unique force than the experience of duality of shadow and sun. I am with the Guru who guides to Truth!)
आठो पहर अडक रहे आसन, कदे न उतरे शाही
Aathau pahar adak rahe asan kade na utare shahi
(All the time I ll be meditating and would experience the bliss of Extreme)
मन पवन दोनो नही पहुंचे, उन्ही देस के माही
Man pavan dono nahi pahunche unhi des ke maahi
(The waves of mind or wind power can not destabilize if you establish a one-pointedness to God)
Nirgun roop hain mere daata, sargun naam dharai
(Supreme consciousness has no form, it only takes form for a while)
कहे कबीर सुनो भाई साधो, साहब है घट माही
Kahe Kabir suno bhai sadho, sahab hain ghat maahi.
(And says Kabir, listen O' Sadhu, the Supreme Lord resides in you!)
Hum pardesi panchhi baba, ani desara nahi.
हम परदेशी (पंछी ) हैं, हम तुम्हारे देस के नहीं हैं। (इस देस के नहीं हैं). इस जगत में जीव को मेहमान कहा गया है। जो आया है उसे एक रोज जाना ही है इसलिए कहा गया हम इस देस के नहीं हैं।
We are foreigners (birds), we do not belong to your country. (Do not belong to this country). Jiva has been called a guest in this world. Whoever has come has to go one day, so it is said that we do not belong to this country.
We are foreigners (birds), we do not belong to your country. (Do not belong to this country). Jiva has been called a guest in this world. Whoever has come has to go one day, so it is said that we do not belong to this country.
Ani desara log acheta pal pal par pachhtaai bhai santo
(And listen dear saints, the people from This Shrashti (land) repent every moment)
There is suffering because his existence is identified with the body-the gross one. And gross, as measurable, is bound by suffering. Obviously, those who suffer repent for the experience. You are going to apologize that you haven't gone past physical recognition.
यहां के लोग अचेत हैं, क्योंकि वे अपने मूल देस को भूल गए हैं और इस देस में पल पल पछता रहे हैं। इस देस के लोगों ने अपने को इस शरीर के साथ जोड़ कर इस देस के अनुसार ही व्यवहार करने लगे हैं।
मुख बिन गाना, पग बिन चलना, बिन पंख उड जाई हो
Mukh bin gaana, pag bin chalana, bin pankh ud jaai ho
(one would sing without mouth, would walk without feet, and would fly without wings)
आत्मा उच्चतम शक्तियों से युक्त होती है, जब आत्मा की शक्तियों को पहचान लिया जाता है तो व्यक्ति असाधारण कार्य भी कर जाता है जैसे बिना मुख के गाना/बोलना, बिना पैरों के चलना, और वह बगैर पंखों के उड़ जाता है। आत्मा के जाग्रत हो जाने के उपरान्त बहुत मुश्किल/नामुमकिन काम भी बड़े आसान जान पड़ते हैं।
Bina moh ki surat humari, anahad mein ram jaai ho
(My identity is one that is unattached, who is constantly engaged in divine pursuit)
जब मोह समाप्त हो जाता है तो आत्मा विषय और विकारों से मुक्त हो जाती है, उसे किसी से कोई लेना देना नहीं होता और इसके साथ ही 'अहम्' के समाप्त हो जाने पर आत्मा बहुत ही हलकी हो जाती है और अनहद (सर्वोच्च शक्ति में समां जाती है। ) मोह के समाप्त हो जाने पर ऐसी अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है।
Chhaya baithu agani vyape, dhoop adhik sitlaai ho
(when one sits in shadow, he can feel heat of fire and in the sun, he experiences coolness)
सामन्य जन की अनुभूतियों के विपरीत ध्यान और वैराग्य की अवस्था में पहुँच चुके व्यक्ति के लिए ऐसी अवस्था आ जाती है जिसमे व्यक्ति को विपरीत अनुभव होने लगते हैं जैसे छांया में उसे धुप का अनुभव होता है और धुप उसे अधिक शीतल लगाती है। भाव है की ऐसा व्यक्ति शारीरिक अनुभूतियों से परे उठ जाता है और उसे अलौकिक अनुभव प्राप्त होने लगते हैं।
Chhaya Dhoop se satguru nyaara, main satguru ke bhai
(Guru is unique force than the experience of duality of shadow and sun. I am with the Guru who guides to Truth!)
मैं ऐसे सतगुरु की शरण में है जो द्वैत भाव से उपर उठ चुका है, उसके लिए धुप और छांया एक जैसे ही प्रतीत होते हैं। वह महान पुरुष शारीरिक और सांसारिक सीमाओं से परे उठ चुका है और उसके लिए सभी परिस्थितियों में सम भाव है। किसी भी परिस्थिति में वह विचलित नहीं होता है, ऐसे महान गुरु की शरण में मैं उनके दिशानिर्देशानुसार चलता हूँ, मैं ऐसे गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण करता हूँ।
Aathau pahar adak rahe asan kade na utare shahi
(All the time I ll be meditating and would experience the bliss of Extreme)
शाही से तात्पर्य है की वह अपने मस्तिस्क और मन पर नियंत्रण प्राप्त कर चुका है, उसे दैहिक और मायाजनित विचार विचलित नहीं करते हैं। ऐसा व्यक्ति आठों पहर एक ही धुन में समर्पित रहता है वो है योगी की अवस्था जिसमे उसे हरदम इश्वर का ही विचार रहता है।
Man pavan dono nahi pahunche unhi des ke maahi
(The waves of mind or wind power can not destabilize if you establish a one-pointedness to God)
ऐसी अवस्था में उस योगी को मन के विचार विचलित नहीं कर पाते हैं और सांसारिक अनुभूतियाँ क्षीण हो जाती हैं।
निरगुण रूप है मेरे दाता, सरगुण नाम धराई Nirgun roop hain mere daata, sargun naam dharai
(Supreme consciousness has no form, it only takes form for a while)
परमशक्ति निर्गुण ही है उसका कोई आकार नहीं है, लेकिन उसने सगुण का नाम धर लिया है।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, साहब है घट माही
Kahe Kabir suno bhai sadho, sahab hain ghat maahi.
(And says Kabir, listen O' Sadhu, the Supreme Lord resides in you!)
वह परम सत्ता हमारे ही में निवास करती है, उसे कहीं और प्राप्त करने की जुगत करने की कोई आवश्यकता नहीं है। "तेरे घट में बसे रे भगवान्, मंदिर में काई ढूंढती फिरे"
हरि कौ नाउँ तत त्रिलोक सार, लौलीन भये जे उतरे पार॥
इक जंगम इक जटाधार, इक अंगि बिभूति करै अपार।
इक मुनियर इक मनहूँ लीन, ऐसै होत होत जग जात खीन॥
इक आराधै सकति सीव, इक पड़वा दे दे बधै जीव॥
इक कुलदेव्यां कौ जपहि जाप, त्रिभवनपति भूले त्रिविध ताप॥
अंतहि छाड़ि इक पीवहि दूध, हरि न मिलै बिन हिरदै सूध।
कहै कबीर ऐसै बिचारि, राम बिना को उतरे पार॥380॥
इक जंगम इक जटाधार, इक अंगि बिभूति करै अपार।
इक मुनियर इक मनहूँ लीन, ऐसै होत होत जग जात खीन॥
इक आराधै सकति सीव, इक पड़वा दे दे बधै जीव॥
इक कुलदेव्यां कौ जपहि जाप, त्रिभवनपति भूले त्रिविध ताप॥
अंतहि छाड़ि इक पीवहि दूध, हरि न मिलै बिन हिरदै सूध।
कहै कबीर ऐसै बिचारि, राम बिना को उतरे पार॥380॥