संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छुटे

संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छुटे मुझसे माँ नहीं रूठे

संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे,
जब तक है जिंदगानी,
मुझसे माँ नहीं रूठे,
माँ नहीं रूठे,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे।
(अंतरे)

रहे जब तक ये जिंदगानी,
तुम्हारा साथ हो मैया,
रहूँ जब तक मैं दुनिया में,
ये सिर पर हाथ हो मैया,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे,
जब तक है जिंदगानी,
मुझसे माँ नहीं रूठे,
माँ नहीं रूठे,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे।

उजड़ जाए सारा गुलशन,
और दुनिया उजड़ जाए,
बेटा जीते-जी मर जाए,
जो उसकी माँ बिछड़ जाए,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे,
जब तक है जिंदगानी,
मुझसे माँ नहीं रूठे,
माँ नहीं रूठे,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे।

अगर बेटे के सर से माँ,
ज़रा सा आँचल हटता है,
वो रोए फूट-फूट कर माँ,
कलेजा ऐसा फटता है,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे,
जब तक है जिंदगानी,
मुझसे माँ नहीं रूठे,
माँ नहीं रूठे,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे।

यही विनती है ‘बनवारी’,
कि मैया रूठ न जाए,
तेरे हाथों से माँ मेरी,
ये उंगली छूट न जाए,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे,
जब तक है जिंदगानी,
मुझसे माँ नहीं रूठे,
माँ नहीं रूठे,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे।
(पुनरावृत्ति – समापन)

संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे,
जब तक है जिंदगानी,
मुझसे माँ नहीं रूठे,
माँ नहीं रूठे,
संसार ये छूटे चाहे प्राण ये छूटे।
 


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