चालीसा लिरिक्स Chalisa Lyrics Chalisa Collection Sangrah

चालीसा संग्रह Chalisa Sangrah All Chalisa Lyrics in Hindi

चालीसा लिरिक्स Chalisa Lyrics Chalisa Collection Sangrah

श्री गणेश चालीसा
॥दोहा॥
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥
॥चौपाई॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥1॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥2॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥3॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥4॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥5॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥6॥
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥7॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥8॥
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥9॥

॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥
 

Ganesh Chalisa - with Hindi lyrics

जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
jaya ganapati sadguna sadana kavivara badana kripaala
vighna harana mangala karana jaya jaya girijaalaala ||
जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
jaya jaya jaya ganapati ganaraajoo mangala bharana karana shubha kaajoo ||
jaya gajabadana sadana sukhadaataa vishva vinaayaka buddhi vidhaata ||
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
vakratunda shuchi shunda suhaavana tilaka tripunda bhaala mana bhaavan ||
raajit mani muktana ura maalaa svarna mukuta shira nayana vishaalaa ||
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
pustaka paani kuthaara trishoolama modaka bhoga sugandhita phoolama ||
sundara peetaambara tana saajita charana paadukaa muni mana raajita ||
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चँवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
dhani shivasuvana shadaanana bhraata gauri lalana vishva vikhyaataa ||
riddhi-siddhi tava chanvara sudhaare mooshaka vaahana sohata dvaare ||

श्री राम चालीसा
श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥1॥

ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥2॥

तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥3॥

ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥4॥

गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥5॥

राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥6॥

शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥
फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥7॥

भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥8॥

लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥9॥

महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥10॥

घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥11॥

सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥12॥

इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥13॥

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। निर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥14॥

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥15॥

सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥16॥

जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥17॥

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥18॥

सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन॥19॥

याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा॥20॥

और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥21॥

साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्घता पावै॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥22॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥23॥

॥ दोहा॥
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥

राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥
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श्री हनुमान चालीसा
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन -कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
। । चौपाई। ।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर ।
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा । । 2। ।
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी ।
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा । । 4। ।
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे ।
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन । । 6।
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर ।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया । । 8। ।
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा ।
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे । । 10। ।
लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई । । 12। ।
सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें ।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा । । 14। ।
जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा । । 16। ।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना ।
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु । । 18।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं ।
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते । । 20। ।
राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना । । 22। ।
आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे ।
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें । । 24। ।
नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा ।
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें । । 26। ।
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा ।
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे । । 28। ।
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा ।
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे । । 30। ।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा । । 32। ।
तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें ।
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई । । 34। ।
और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई ।
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा । । 36। ।
जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं ।
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई । । 38। ।
जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा ।
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा । । 40। ।

। । दोहा। ।
पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप । ।
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श्री विष्णु चालीसा
। । दोहा। ।
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
। । चौपाई। ।
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥1॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥2॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥3॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥4॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥5॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥6॥
आप वाराह रूप बनाया, हरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥7॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥8॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥9॥
वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥10॥
असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लडाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥11॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥12॥
देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥13॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥14॥
हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥15॥
चहत आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥16॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥17॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाईहर्षित रहत परम गति पाई ॥18॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥19॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥20॥

श्री शिव चालीसा
। । दोहा। ।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥7॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥8॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥10॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥


॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

श्री कृष्ण चालीसा
॥दोहा॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नटनागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुँघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥ कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्यो। कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥
मातपिता की बन्दि छुड़ाई । उग्रसेन कहँ राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहँ मारा॥
असुर बकासुर आदिक मार्यो। भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा के दुःख टार्यो। तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के साग विदुर घर माँगे। दर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी। ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हाँके। लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए। भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली। विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा साँप पिटारी। शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो। उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला। जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥
सुन्दरदास आ उर धारी। दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो। क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै। बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥

॥दोहा॥

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥
श्री शनि चालीसा
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥1॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥2॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥3॥
रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥6॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥7॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥8॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥9॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥10॥


॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
Shani Chalisa (शनि चालीसा) - with Hindi lyrics

श्री सूर्य चालीसा
॥दोहा॥

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

॥चौपाई॥
जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!, सविता हंस! सुनूर विभाकर॥ 1॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 2॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥3॥
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते॥4
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥5॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं, मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥6॥
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥7॥
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥8॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥9॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित, भास्कर करत सदा मुखको हित॥10॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥11॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥12॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥13॥
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे॥14॥
अस जोजन अपने मन माहीं, भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै॥15॥
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके॥16॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥17॥
परम धन्य सों नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥18॥
भानु उदय बैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता॥19॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥20॥

॥दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
Surya Chalisa with Hindi English Lyrics I ANURADHA PAUDWAL I Lyrical Video I SURYA UPASANA
श्री भैरव चालीसा
।। दोहा ।।
श्री गणपति, गुरु गौरिपद, प्रेम सहित धरी माथ।
चालीसा वंदन करौं, श्री शिव भैरवनाथ।।
श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल।
श्याम वरन विकराल वपु, लोचन लाल विशाल।।
॥चौपाई॥
जय जय श्री काली के लाला।
जयति जयति कशी कुतवाला।।

जयति ‘बटुक भैरव’ भयहारी।
जयति ‘काल भैरव’ बलकारी।।

जयति ‘नाथ भैरव’ विख्याता।
जयति ‘सर्व भैरव’ सुखदाता।।
भैरव रूप कियो शिव धारण।
भव के भार उतरन कारण।।

भैरव राव सुनी ह्वाई भय दूरी।
सब विधि होय कामना पूरी।।
शेष महेश आदि गुन गायो।
काशी कोतवाल कहलायो।।

जटा-जुट शिर चंद्र विराजत।
बाला, मुकुट, बिजयाथ साजत।।

कटी करधनी घुंघरू बाजत।
धर्षण करत सकल भय भजत।।

जीवन दान दास को दीन्हो।
कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो।।

बसी रसना बनी सारद काली।
दीन्हो वर राख्यो मम लाली।।

धन्य धन्य भैरव भय भंजन।
जय मनरंजन खल दल भंजन।।

कर त्रिशूल डमरू शुची कोड़ा।
कृपा कटाक्ष सुयश नहीं थोड़ा।।

जो भैरव निर्भय गुन गावत।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल वावत।।
रूप विशाल कठिन दुःख मोचन।
क्रोध कराल लाल दुहूँ लोचन।।

अगणित भुत प्रेत संग दोलत।
बं बं बं शिव बं बं बोलत।।

रुद्रकाय काली के लाला।
महा कलाहुं के हो लाला।।

बटुक नाथ हो काल गंभीर।
श्वेत रक्त अरु श्याम शरीर।।

करत तिन्हुम रूप प्रकाशा।
भारत सुभक्तन कहं शुभ आशा।।

रत्न जडित कंचन सिंहासन।
व्यग्र चर्म शुची नर्म सुआनन।।

तुम्ही जाई काशिही जन ध्यावही।
विश्वनाथ कहं दर्शन पावही।।

जाया प्रभु संहारक सुनंद जाया।
जाया उन्नत हर उमानंद जय।।

भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय।
बैजनाथ श्री जगतनाथ जय।।

महाभीम भीषण शरीर जय।
रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय।।

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय।
स्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय।।

निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय।
गहत नाथन नाथ हाथ जय।।

त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय।
क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय।।

श्री वामन नकुलेश चंड जय।
क्रत्याऊ कीरति प्रचंड जय।।

रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर।
चक्र तुंड दश पानिव्याल धर।।

करी मद पान शम्भू गुणगावत।
चौंसठ योगिनी संग नचावत।।

करत ड्रिप जन पर बहु ढंगा।
काशी कोतवाल अड़बंगा।।

देय काल भैरव जब सोता।
नसै पाप मोटा से मोटा।।

जानकर निर्मल होय शरीरा।
मिटे सकल संकट भव पीरा।।

श्री भैरव भूतों के राजा।
बाधा हरत करत शुभ काजा।।

ऐलादी के दुःख निवारयो।
सदा कृपा करी काज सम्भारयो।।

सुंदर दास सहित अनुरागा।
श्री दुर्वासा निकट प्रयागा।।

श्री भैरव जी की जय लेख्यो।
सकल कामना पूरण देख्यो।।

।। दोहा ।।

जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार।।
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार।
उस पर सर्वानंद हो,वैभवबड़ेअपार।।
SHRI BHAIRAV CHALISA by ANURADHA PAUDWAL I FULL AUDIO SONG I ART TRACK I SHRI KAAL BHAIRAV VANDANA
श्री लक्ष्मी चालीसा
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥1॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥


॥ दोहा॥


त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
Lakshmi Chalisa By Anuradha Paudwal I Sampoorna Mahalakshmi Poojan



श्री दुर्गा चालीसा


नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥1॥
तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥2॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥3॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥4॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥5॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन र जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥6॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥7॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥8॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥9॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥10॥
देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
Durga Chalisa with Lyrics By Anuradha Paudwal [Full Song] I DURGA CHALISA DURGA KAWACH



श्री पार्वती चालीसा


॥ दोहा ॥


जय गिरि तनये दुर्गे शम्भू प्रिये गुणखानी।
गणपति जननी पार्वती अम्बे ! शक्ति ! भवानी । ।


। । चौपाई। ।


ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे ।
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो । ।


तेरो पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हित सजाता।
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे । ।


ललित लालट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत शोभा मनोहर।
कनक बसन कञ्चुकि सजाये, कटी मेखला दिव्य लहराए । ।


कंठ मदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभ।
बालारुण अनंत छवि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी । ।


नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजित हरी चतुरानन।
इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग नाग यक्ष रव कूजित । ।


गिर कैलाश निवासिनी जय जय, कोटिकप्रभा विकासिनी जय जय ।
त्रिभुवन सकल, कुटुंब तिहारी, अणु -अणु महं तुम्हारी उजियारी। ।


हैं महेश प्राणेश ! तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे ।
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब। ।


बुढा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी।
सदा श्मशान विहरी शंकर, आभूषण हैं भुजंग भयंकर। ।


कंठ हलाहल को छवि छायी, नीलकंठ की पदवी पायी ।
देव मगन के हित अस किन्हों, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो। ।


ताकी तुम पत्नी छवि धारिणी, दुरित विदारिणी मंगल कारिणी ।
देखि परम सौंदर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो। ।


भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा ।
सौत सामान शम्भू पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी । ।


तेहिकों कमल बदन मुर्झायो, लखी सत्वर शिव शीश चढायो ।
नित्यानंद करी वरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनी। ।


अखिल पाप त्रय्ताप निकन्दनी, माहेश्वरी,हिमालय नन्दिनी।
काशी पूरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायीं। ।


भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री ।
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करी अवलम्बे। ।


गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली ।
सब जन की ईश्वरी भगवती, पतिप्राणा परमेश्वरी सती। ।


तुमने कठिन तपस्या किनी, नारद सो जब शिक्षा लीनी।
अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा। ।


पत्र घास को खाद्या न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ ।
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे। ।


तव तव जय जय जय उच्चारेउ, सप्तऋषि, निज गेह सिधारेउ ।
सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए। ।


मांगे उमा वर पति तुम तिनसो, चाहत जग त्रिभुवन निधि, जिन सों ।
एवमस्तु कही ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए। ।


करि विवाह शिव सों हे भामा, पुनः कहाई हर की बामा।
जो पढ़िहै जन यह चालीसा, धन जनसुख देइहै तेहि ईसा। ।


। । दोहा। ।


कूट चन्द्रिका सुभग शिर जयति शुचि खानी
पार्वती निज भक्त हित रहउ सदा वरदानी।
Superfast parvati maa chalisa



श्री काली चालीसा


॥॥दोहा ॥॥


जय काली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ॥


। । चौपाई। ।


अरि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता ॥1॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । हाथ तीसरे सोहत भाला ॥2॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥3॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता । जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥4॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता । तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । कल्याणी पापी कुल घालक ॥5॥
शेष सुरेश न पावत पारा । गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥6॥
रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । भक्तजनों के संकट टारे ॥7॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी । भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । नारद शारद पार न पावैं ॥8॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी । तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । विश्वविदित भव संकट त्राता ॥9॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥10॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥11॥
त्रेता में रघुवर हित आई । दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥12॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे । कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥13॥
ये बालक लखि शंकर आए । राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥14।
बाढ्यो महिषासुर मद भारी । पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता । नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥16॥
मान मथनहारी खल दल के । सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं । उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥18॥
काली चालीसा जो पढ़हीं । स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥19॥
करहु मातु भक्तन रखवाली । जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥20॥


॥॥दोहा॥॥


प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥
Kali chalisa

चामुण्डा देवी की चालीसा


॥दोहा॥


नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड ।
दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़ । ।


मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत ।
मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत । ।


॥चौपाई॥


नमस्कार चामुंडा माता । तीनो लोक मई मई विख्याता । ।
हिमाल्या मई पवितरा धाम है । महाशक्ति तुमको प्रडम है । । 1। ।
मार्कंडिए ऋषि ने धीयया । कैसे प्रगती भेद बताया । ।
सूभ निसुभ दो डेतिए बलसाली । तीनो लोक जो कर दिए खाली । । 2। ।
वायु अग्नि याँ कुबेर संग । सूर्या चंद्रा वरुण हुए तंग । ।
अपमानित चर्नो मई आए । गिरिराज हिमआलये को लाए । । 3। ।
भद्रा-रॉंद्र्रा निट्टया धीयया । चेतन शक्ति करके बुलाया । ।
क्रोधित होकर काली आई । जिसने अपनी लीला दिखाई । । 4। ।
चंदड़ मूंदड़ ओर सुंभ पतए । कामुक वेरी लड़ने आए । ।
पहले सुग्गृीव दूत को मारा । भगा चंदड़ भी मारा मारा । । 5। ।
अरबो सैनिक लेकर आया । द्रहूँ लॉकंगन क्रोध दिखाया । ।
जैसे ही दुस्त ललकारा । हा उ सबद्ड गुंजा के मारा । । 6। ।
सेना ने मचाई भगदड़ । फादा सिंग ने आया जो बाद । ।
हत्टिया करने चंदड़-मूंदड़ आए । मदिरा पीकेर के घुर्रई । । 7। ।
चतुरंगी सेना संग लाए । उचे उचे सीविएर गिराई । ।
तुमने क्रोधित रूप निकाला । प्रगती डाल गले मूंद माला । । 8। ।
चर्म की सॅडी चीते वाली । हड्डी ढ़ाचा था बलसाली । ।
विकराल मुखी आँखे दिखलाई । जिसे देख सृष्टि घबराई । । 9। ।
चंदड़ मूंदड़ ने चकरा चलाया । ले तलवार हू साबद गूंजाया । ।
पपियो का कर दिया निस्तरा । चंदड़ मूंदड़ दोनो को मारा । । 10। ।
हाथ मई मस्तक ले मुस्काई । पापी सेना फिर घबराई । ।
सरस्वती मा तुम्हे पुकारा । पड़ा चामुंडा नाम तिहरा । । 11। ।
चंदड़ मूंदड़ की मिरतट्यु सुनकर । कालक मौर्या आए रात पर । ।
अरब खराब युध के पाठ पर । झोक दिए सब चामुंडा पर । । 12। ।
उगर्र चंडिका प्रगती आकर । गीडदीयो की वाडी भरकर । ।
काली ख़टवांग घुसो से मारा । ब्रह्माड्ड ने फेकि जल धारा । । 13। ।
माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया । मा वेश्दवी कक्करा घुमाया । ।
कार्तिके के शक्ति आई । नार्सिंघई दित्तियो पे छाई । । 14। ।
चुन चुन सिंग सभी को खाया । हर दानव घायल घबराया । ।
रक्टतबीज माया फेलाई । शक्ति उसने नई दिखाई । । 15। ।
रक्त्त गिरा जब धरती उपर । नया डेतिए प्रगता था वही पर । ।
चाँदी मा अब शूल घुमाया । मारा उसको लहू चूसाया । । 16। ।
सूभ निसुभ अब डोडे आए । सततर सेना भरकर लाए । ।
वाज्ररपात संग सूल चलाया । सभी देवता कुछ घबराई । । 17। ।
ललकारा फिर घुसा मारा । ले त्रिसूल किया निस्तरा । ।
सूभ निसुभ धरती पर सोए । डेतिए सभी देखकर रोए । । 18। ।
कहमुंडा मा ध्ृम बचाया । अपना सूभ मंदिर बनवाया । ।
सभी देवता आके मानते । हनुमत भेराव चवर दुलते । । 19। ।
आसवीं चेट नवराततरे अओ । धवजा नारियल भेट चाड़ौ । ।
वांडर नदी सनन करऔ । चामुंडा मा तुमको पियौ । । 20। ।


॥दोहा॥


सरणागत को शक्ति दो हे जाग की आधार ।
‘ओम’ ये नेया दोलती कर दो भाव से पार । ।
Chamund Chalisa By Hemant Chauhan | Chamunda Maa Chalisa | Hemant Chauhan Bhajan



श्री सरस्वती चालीसा


॥दोहा॥


जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥


॥चालीसा॥


जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥1
रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥2
तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥3
रामचरित जो रचे बनाई। आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥4
तुलसी सूर आदि विद्वाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा। केव कृपा आपकी अम्बा॥5
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता। तेहि न धरई चित माता॥6
राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥7
मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥8
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥9
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी। सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥10
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा। क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥11
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा। सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥12
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥13
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥14
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे। कानन में घेरे मृग नाहे॥15
सागर मध्य पोत के भंजे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥16
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥17
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥18
भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥19
रामसागर बाँधि हेतु भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी। 20


॥दोहा॥


मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥
Saraswati Chalisa with Lyrics | Saraswati Mantra | Bhakti Songs



श्री राधा चालीसा


। । दोहा। ।


श्री राधे वुषभानुजा, भक्तनि प्राणाधार ।
वृन्दाविपिन विहारिणी, प्रानावौ बारम्बार । ।
जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिय सुखधाम ।
चरण शरण निज दीजिये सुन्दर सुखद ललाम । ।


। । चौपाई। ।


जय वृषभानु कुँवरी श्री श्यामा, कीरति नंदिनी शोभा धामा । ।
नित्य बिहारिनी रस विस्तारिणी, अमित मोद मंगल दातारा । । 1। ।
राम विलासिनी रस विस्तारिणी, सहचरी सुभग यूथ मन भावनी । ।
करुणा सागर हिय उमंगिनी, ललितादिक सखियन की संगिनी । । 2। ।
दिनकर कन्या कुल विहारिनी, कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनी । ।
नित्य श्याम तुमररौ गुण गावै, राधा राधा कही हरशावै । । 3। ।
मुरली में नित नाम उचारें, तुम कारण लीला वपु धारें । ।
प्रेम स्वरूपिणी अति सुकुमारी, श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी । । 4। ।
नवल किशोरी अति छवि धामा, द्दुति लधु लगै कोटि रति कामा । ।
गोरांगी शशि निंदक वंदना, सुभग चपल अनियारे नयना । । 5। ।
जावक युत युग पंकज चरना, नुपुर धुनी प्रीतम मन हरना । ।
संतत सहचरी सेवा करहिं, महा मोद मंगल मन भरहीं । । 6। ।
रसिकन जीवन प्राण अधारा, राधा नाम सकल सुख सारा । ।
अगम अगोचर नित्य स्वरूपा, ध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा । । 7। ।
उपजेउ जासु अंश गुण खानी, कोटिन उमा राम ब्रह्मिनी । ।
नित्य धाम गोलोक विहारिन, जन रक्षक दुःख दोष नसावनि । । 8। ।
शिव अज मुनि सनकादिक नारद, पार न पाँई शेष शारद । ।
राधा शुभ गुण रूप उजारी, निरखि प्रसन होत बनवारी । । 9। ।
ब्रज जीवन धन राधा रानी, महिमा अमित न जाय बखानी । ।
प्रीतम संग दे ई गलबाँही, बिहरत नित वृन्दावन माँहि । । 10। ।
राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा, एक रूप दोउ प्रीति अगाधा । ।
श्री राधा मोहन मन हरनी, जन सुख दायक प्रफुलित बदनी । । 11। ।
कोटिक रूप धरे नंद नंदा, दर्श करन हित गोकुल चंदा । ।
रास केलि करी तुहे रिझावें, मन करो जब अति दुःख पावें । । 12। ।
प्रफुलित होत दर्श जब पावें, विविध भांति नित विनय सुनावे । ।
वृन्दारण्य विहारिनी श्यामा, नाम लेत पूरण सब कामा । । 13। ।
कोटिन यज्ञ तपस्या करहु, विविध नेम व्रतहिय में धरहु । ।
तऊ न श्याम भक्तहिं अहनावें, जब लगी राधा नाम न गावें । । 14। ।
व्रिन्दाविपिन स्वामिनी राधा, लीला वपु तब अमित अगाधा । ।
स्वयं कृष्ण पावै नहीं पारा, और तुम्हैं को जानन हारा । । 15। ।
श्री राधा रस प्रीति अभेदा, सादर गान करत नित वेदा । ।
राधा त्यागी कृष्ण को भाजिहैं, ते सपनेहूं जग जलधि न तरिहैं । । 16। ।
कीरति हूँवारी लडिकी राधा, सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा । ।
नाम अमंगल मूल नसावन, त्रिविध ताप हर हरी मनभावना । । 17। ।
राधा नाम परम सुखदाई, भजतहीं कृपा करहिं यदुराई । ।
यशुमति नंदन पीछे फिरेहै, जी कोऊ राधा नाम सुमिरिहै । । 18। ।
रास विहारिनी श्यामा प्यारी, करहु कृपा बरसाने वारी । ।
वृन्दावन है शरण तिहारी, जय जय जय वृषभानु दुलारी । । 19। ।


। । दोहा। ।
श्री राधा सर्वेश्वरी, रसिकेश्वर धनश्याम ।
करहूँ निरंतर बास मै, श्री वृन्दावन धाम । ।
RADHA CHALISA



श्री संतोषी माता चालीसा


दोहा


बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥
भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम।
कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम॥


। । चौपाई। ।


जय सन्तोषी मात अनूपम। शान्ति दायिनी रूप मनोरम॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। वेश मनोहर ललित अनुपा॥1॥
श्‍वेताम्बर रूप मनहारी। माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन। दर्शन से हो संकट मोचन॥2॥
जय गणेश की सुता भवानी। रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया। सब पर करो कृपा की छाया॥3॥
नाम अनेक तुम्हारे माता। अखिल विश्‍व है तुमको ध्याता॥
तुमने रूप अनेकों धारे। को कहि सके चरित्र तुम्हारे॥4॥
धाम अनेक कहाँ तक कहिये। सुमिरन तब करके सुख लहिये॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी। कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी॥
कलकत्ते में तू ही काली। दुष्‍ट नाशिनी महाकराली॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती। भक्तजनों का दुःख मिटाती॥5॥
ज्वाला जी में ज्वाला देवी। पूजत नित्य भक्त जन सेवी॥
नगर बम्बई की महारानी। महा लक्ष्मी तुम कल्याणी॥6॥
मदुरा में मीनाक्षी तुम हो। सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो॥
राजनगर में तुम जगदम्बे। बनी भद्रकाली तुम अम्बे॥7॥
पावागढ़ में दुर्गा माता। अखिल विश्‍व तेरा यश गाता॥
काशी पुराधीश्‍वरी माता। अन्नपूर्णा नाम सुहाता॥8॥
सर्वानन्द करो कल्याणी। तुम्हीं शारदा अमृत वाणी॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में। दुःख दारिद्र सब मेटो पल में॥9॥
जेते ऋषि और मुनीशा। नारद देव और देवेशा।
इस जगती के नर और नारी। ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी॥10॥
जापर कृपा तुम्हारी होती। वह पाता भक्ति का मोती॥
दुःख दारिद्र संकट मिट जाता। ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता॥11॥
जो जन तुम्हरी महिमा गावै। ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै॥
जो मन राखे शुद्ध भावना। ताकी पूरण करो कामना॥12॥
कुमति निवारि सुमति की दात्री। जयति जयति माता जगधात्री॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन। जो व्रत करे तुम्हारा पावन॥13॥
गुड़ छोले का भोग लगावै। कथा तुम्हारी सुने सुनावै॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी। फिर प्रसाद पावे शुभकारी॥14॥
शक्ति- सामरथ हो जो धनको। दान- दक्षिणा दे विप्रन को॥
वे जगती के नर औ नारी। मनवांछित फल पावें भारी॥15॥
जो जन शरण तुम्हारी जावे। सो निश्‍चय भव से तर जावे॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे। निश्‍चय मनवांछित वर पावै॥16॥
सधवा पूजा करे तुम्हारी। अमर सुहागिन हो वह नारी॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा। भवसागर से उतरे पारा॥17॥
जयति जयति जय संकट हरणी। विघ्न विनाशन मंगल करनी॥
हम पर संकट है अति भारी। वेगि खबर लो मात हमारी॥18॥

निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता। देह भक्ति वर हम को माता॥
यह चालीसा जो नित गावे। सो भवसागर से तर जावे॥19॥

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