भक्ति कठिन अति दुर्लभ भेश सुगम मीनिंग

भक्ति कठिन अति दुर्लभ भेश सुगम नित सोय हिंदी मीनिंग

 
भक्ति कठिन अति दुर्लभ भेश सुगम नित सोय हिंदी मीनिंग

भक्ति कठिन अति दुर्लभ, भेश सुगम नित सोय ।
भक्ति जु न्यारी भेष से, यह जानै सब कोय ।।
 
Bhakti Kathin Ati Durlabh, Bhesh Sugam Nit Soy.
Bhakti Ju Nyaaree Bhesh Se, Yah Jaanai Sab Koy

दोहे का हिंदी मीनिंग : हृदय से भक्ति और दिखावे की भक्ति में अंतर है, हृदय से भक्ति ही सच्ची भक्ति है और वह बहुत कठिन भी है। भेष धारण करने से की भक्त नहीं बन जाता है, इसकी लिए उसे माया का त्याग करना पड़ता है और सच्चे मन से भक्ति करनी होती है। विषय वासना और शारीरिक सुखों का त्याग करना बहुत ही मुश्किल कार्य है।

शीलवन्त सुर ज्ञान मत, अति उदार चित होय ।
लज्जावान अति निछलता, कोमल हिरदा सोय ।।
 
भक्ति रस में डूबे हुए लोग शीलवंत और उदार हृदय के होते हैं उनके हृदय में मानवीय गुण होते हैं और किसी के प्रति दुर्भावना टिक नहीं पाती है, ऐसे साधक ही सच्चे भक्त बन पाते हैं।

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।
राजा परजा जो रुचै , शीश देय ले जाय ।।
 
भक्ति बाह्य वस्तु नहीं है, यह हृदय से पैदा होती है। भक्ति ना तो बाजार में कहीं बिकती है और नाही इसे पैदा ही किया जा सकता है । यह स्वाभाविक है, और भक्ति को प्राप्त करने के लिए पहले स्वंय का अहम् शांत करने के उपरान्त ही साधक भक्ति (प्रेम) को प्राप्त कर सकता है, भाव है की राजा, रंक और अमीर व्यक्ति जिसे भी प्रेम (भक्ति) चाहिए वह स्वंय के शीश (अहम्) को नष्ट करने के उपरान्त प्राप्त कर सकता है।

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