आठ पहर चौसंठ घड़ी , लगी रहे अनुराग ।
हिरदै पलक न बीसरें, तब सांचा बैराग ।।
हिरदै पलक न बीसरें, तब सांचा बैराग ।।
Aath Pahar Chousath Ghadi Lagri Rahe Anuraag
Hirade Palak Na Bisare Tab Sancha Bairaag
दोहे का हिंदी मीनिंग: आठों पहर और चोसठ घड़ी, हर समय सद्गुरु से अनुराग करनी चाहिए, उसी के नाम का सुमिरण करना चाहिए, एक पल के लिए भी हृदय से ईश्वर सुमिरण विस्मृत नहीं होना चाहिए, यही सच्चा वैराग्य है। यदि इश्वर के सुमिरण हृदय से ना कर, मात्र दिखावे के लिए ही किया जाय तो ऐसी भक्ति किसी काम में आने वाली नहीं है।
सुमिरण की सुधि यौ करो, जैसे कामी काम ।
एक पल बिसरै नहीं, निश दिन आठौ जाम ।।
एक पल बिसरै नहीं, निश दिन आठौ जाम ।।
Sumiran Kee Sudhi Yau Karo, Jaise Kaamee Kaam .
Ek Pal Bisarai Nahin, Nish Din Aathau Jaam
जैसे कामी पुरुष हर वक़्त काम काम और विषय वासनाओं में डूबा रहता है ओर भोग के अतिरिक्त उसे कुछ भी नहीं सूझता है यद्यपि यह उसी के लिए ही घातक है लेकिन उसकी काम के प्रति लगन का उदाहरन देकर वाणी है की साधक को भी वैसी ही लगन ईश्वर के सुमिरण में रखनी चाहिए और आठो पहर हरी सुमिरण करना चाहिए। जब हरी नाम के अतिरिक्त कुछ भी ना सूझे तो वही सच्ची भक्ति होती है।
साधु सीप समुद्र के, सतगुरु स्वाती बून्द।
तृषा गई एक बून्द से, क्या ले करो समुन्द ।।
तृषा गई एक बून्द से, क्या ले करो समुन्द ।।
Saadhu Seep Samudr Ke, Sataguru Svaatee Boond.
Trsha Gaee Ek Boond Se, Kya Le Karo Samund
साधु सन्त एवम ज्ञानी महात्मा को समुद्र की सीप के समान होते हैं और सद्गुरु को स्वाती नक्षत्र की अनमोल पानी की बूंद के समान होते हैं। जब एक बूंद स्वाति से सीप की प्यास शांत हो जाती है तो समुद्र का समस्त जल किस काम का ? भाव है की सद्गुरु के ज्ञान से व्यक्ति की प्यास बुझ जाती है और उसे अन्य सांसारिक क्रियाओं में रूचि नहीं रहती है, संसार की विविध किर्याये और व्यापार उसके लिए व्यर्थ हो जाते हैं।
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