गज़ब की ग्वालिन लागे रे भजन

गज़ब की ग्वालिन लागे रे चली है जब मस्तानी चाल

गज़ब की ग्वालिन लागे रे,
चली है जब मस्तानी चाल।।
मोहे जाने दे कान्हा,
मोहे घर जाना है नंदलाल।।

ग्वालिन काहे को इतराए,
क्यों कान्हा पीछे-पीछे आए?
चले जब मोरनी बन के, कमर में न लगे बिलकुल हौल।।
मोहे जाने दे कान्हा,
मोहे घर जाना है नंदलाल।।

सुन ले ग्वालिन, नखरे वाली,
छेड़ मत, वरना दूंगी गाली।।
प्रेम से बातें करने मिटा दे, दिल से सभी मलाल।।
मोहे जाने दे कान्हा,
मोहे घर जाना है नंदलाल।।

हाय ग्वालिन, नैन तेरे मतवाले,
नज़र मत लाना, कन्हैया काले।।
रूप तेरा चंदा जैसा, होंठ हैं पान से बढ़कर लाल।।
मोहे जाने दे कान्हा,
मोहे घर जाना है नंदलाल।।

मिला ले ग्वालिन, मोह से नैन,
प्यार नहीं भीमसेन कोई खेल।।
प्यार मिल जाए जिसको, वो हो जाता है मालामाल।।
मोहे जाने दे कान्हा,
मोहे घर जाना है नंदलाल।।
 
यह भजन गोकुल की चंचल ग्वालिन और कृष्ण के मधुर प्रेम-व्यवहार को दर्शाता है। ग्वालिन अपनी मस्तानी चाल से कान्हा को आकर्षित करती है, लेकिन कान्हा भी पीछे हटने वालों में से नहीं हैं। ग्वालिन कभी शिकायत करती है, कभी नखरे दिखाती है, तो कभी प्रेम भरी बातें कहती है। कान्हा और ग्वालिन के इस रसीले संवाद में प्रेम, शरारत और भक्ति का सुंदर मेल दिखता है। यह भजन राधा-कृष्ण की मधुर लीलाओं की एक झलक प्रस्तुत करता है।
 


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