बाबा तन्ने भी मरणा रे बाबा मन्ने भी मरणा लिरिक्स Baba Tanne Bhi Marna Lyrics-Arvind Jangid

बाबा तन्ने भी मरणा रे बाबा मन्ने भी मरणा लिरिक्स Baba Tanne Bhi Marna Lyrics-Arvind Jangid


Latest Bhajan Lyrics

रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,
संस्कृति के गाड़ झंडे, मन्ने की करणा,
रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,

एक रोज तुमको भी मरना है और मुझको भी तो फिर संस्कृति के झंडे गाड़ने का क्या औचित्य है ! इस पर व्यंग्य करता हुआ यह सुंदर सांस्कृतिक सांग है जिसे आवाज दी है अरविन्द जांगिड़ ने और लेखक हैं संजीत सहोरा जी ने।
सुण ले जीकर बाबा आज तू, संस्कृति ने बचानिया के,
भूखे मर गे टाबर देखो, सुथरी राग ने गाणीयां के,
लेहक नाम का बीज ख़तम, हडे रंग छाप सब काटे सै,
सोशल साइटा पर बाबा अड़े सब धर्मां ने बाँटे सै,
टूट गई माळा संस्कृति की, टूटगे सारे मणके रै,
सबते घणे व्यू हो रहे बाबा, खिंडगी भुण्डे बण के रै,
लिख ले तू भी भुण्डा जे पीसे टके कमा धरना,
रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,
संस्कृति के गाड़ झंडे, मन्ने की करणा,
रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,

जिन लोगों के संस्कृति को बचाने की कोशिश की है उनके बच्चे भूखे मर रहे हैं क्योंकि उनको पैसा, पैसा पैसा !! नहीं मिलता है। जो साफ़ सुथरी राग को गाते हैं वे भूखे ही मरते हैं। संस्कृति की परवाह किसे है यदि तुम भी पैसा कमाना चाहते हो तो तुम भी उल्टा सीधा भद्दा लिखो।

सुण बाबा कहानी सुनाऊँ तेईस साल के छोरे की,
देश की खातिर फाँसी टूट्या, हत्या करी थी गोरे की,
भगत सिंह रे नाम था उसका, भरी जवानी मर गया था,
आजादी ने मान के दुल्हन, जिंदगी नाम कर गया था,
आजादी ने मान के दुल्हन, जिंदगी नाम कर गया था,
के बांट्या भगत ने बाबा, शहीद का दर्जा मिल्या नहीं,
दर दर ठोकर खावे कुनबा, कुछ भी खर्चा मिल्या नहीं,
देश ने लूट के खानिये देखो, सत्ता के मां घणे पड़े,
करी अय्याशी छिप के जिनने, उनके मंत्री बने पड़े,
भरे घड़े पुण्य के अड़े, पाप का नहीं भरना,
रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,
संस्कृति के गाड़ झंडे, मन्ने की करणा,
रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,

बड़े ही आश्चर्य की बात है की भगत सिंह को क्या मिला ! जो देश की खातिर फांसी पर चढ़ गए उनका क्या, जिन्होंने देश की खातिर फांसी को भी दुल्हन समझा। उन्हें तो शहीद का दर्जा भी नहीं मिला। उनके परिवार के लोग दर दर ठोकरे खाते रहे। जो देश को लूट के खा रहे हैं, शायद नेता, वे तो शासन में भरे पड़े हैं। उन्होंने सत्ता की आड़ में देश को खूब लूटा है और मंत्री बन कर बैठे हैं। किसे फ़िक्र है क्योंकि भाई तुम भी मरोगे और हम भी।
खंडके धोती और किसान "संजीत" तन्ने जीकर करया,
बेटी ना भाजे गाँव की, उसका भी तन्ने जीकर करया,
तेरे जीकर और जीकर ने कम्पनी लेन ते नाट गई,
छोरी गैल नाचण की देखो, पीसे सारे बाँट गई,
पीसे सारे बाँट गई,
कल्चर खातर ढूंढ (घर) उजाड़ो,
ऐसा तो कोई धरम नहीं,
राम कहवे सै बालक पालो,
इसते बता कोई करम नहीं,
इसे उस्यां (ऐरा गैरा) गैल खींचे सेल्फी,
इब किस ते डरना,
रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,
संस्कृति के गाड़ झंडे, मन्ने की करणा,
रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,
संस्कृति के गाड़ झंडे, हमने की करणा,
रे बाबा तन्ने भी मरणा, रे बाबा मन्ने भी मरणा,

लेखक संजीत कह रहे हैं की तुमने सस्कृति का खूब वर्णन किया, उसे बचाने के लिए, तुमने कोशिश की ऐसे रचना करने की जिससे गाँव की लड़की भागे नहीं, यह संस्कारों की बात है लेकिन तुम्हारे लिखे हुयों को तो कंपनी, शायद बड़ी म्यूजिक कम्पनी, ने लेने से मना कर दिया, हो सकता है उन्हें कमाई की चिंता सता रही हो, दूसरी तरफ जिन्होंने अपने गानों में छोरियों को नचाया, पैसा बनाया वे बाँट रहे हैं। कल्चर के पीछे अपने घर को ही तबाह कर लेना कहाँ की समझदारी है। वैसे भी कल्चर /सस्कृति के झंडे गाड़ के क्या उखाड़ लोगे क्योंकि बाबा तुमको भी मरना है और हमको भी। सुन्दर सन्देश देता सांग !!


ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.

ऐसे ही अन्य मधुर भजन देखें 

पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।  
 

एक टिप्पणी भेजें