छैल चतुर रंग रसिया रै भँवरा, छैल चतुर रंग रसिया रै भँवरा, पर घर प्रीत मत कीजै, पराई नार आ नैण कटारी, रूप देख मत रीझै, रे भाई म्हांरा पर घर प्रीत मत कीजै,
(भँवरा (आत्मा/नर पर घर-भौतिक संसार : यह संसार पर घर है जिसमे तुम प्रीत मत करो, मन को इससे मत जोड़ो क्योकी हरी सुमिरन ही जीवन का आधार है। पराई स्त्री के रूप पर मंत्रमुग्ध मत हो जाना )
घर के मंदरियाँ में निपट अँधेरों, पर घर दीवालां मत जोईजे, घर को गुड़ काळो ही खाईजे, पर चोरी की खांड मत खाजे, पर घर प्रीत मत कीजै, रे भाई म्हांरा पर घर प्रीत मत कीजै, ( तुम्हारे घट में तो अँधेरा भरा है अज्ञान का, मोह माया का तो तुम सत्य के प्रकाश से इसे दूर करो, व्यर्थ में परउपदेशक बनकर स्वंय की हानि मत करो। ज्ञानी जन की वाणी है की स्वंय और स्वंय से जुड़ी वस्तुओं पर ही यकीन रखो जैसे यदि घर का गुड़ काला है तो उसे ही ग्रहण करो, पराई खांड (शक़्कर ) जो दिखने में गौरी होती है, का सेवन मत करो, स्वंय पर यकीन करो, दूसरों की वस्तुओं की आशा त्याग दो।)
पराया खेत में बीज मत बोईजे, बीज अकारथ जावें, कुळ ने दाग जगत बदनामी, बुरा करम मत कीजे, पर घर प्रीत मत कीजै, रे भाई म्हांरा पर घर प्रीत मत कीजै, (शाब्दिक रूप से तो अपने खेत में ही जुताई और फसल का ध्यान रखो, पराये खेत से कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है। भाव है की अपने वंश का ध्यान रखो, कुल में संतान की प्राप्ति पर ध्यान दो, पराये कुल में महज बदनामी ही प्राप्त होने वाली है और कुछ नहीं )
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भाइला री नार जामण जाई लागै, बहिनड के बतलाजै, कहत कबीर सुणो जी भाई साधु, बैकुंठा पद पाइजै, रे भाई म्हांरा पर घर प्रीत मत कीजै, (अपने दोस्त (भाईला) की स्त्री ऐसे समझो जैसे की स्वंय की जाइ पुत्री हो और उसको बहन समझ कर व्यवहार करो, कबीर साहेब ऐसा कहते हैं की यदि तुम उक्त बातों का अनुसरण करते हो तो समझो की तुम्हे इस भव सागर से मुक्ति मिलेगी और परम पद (श्रेष्ठ पुरुष) की प्राप्ति होगी -सत श्री साहेब। ) छैल चतुर रंग रसिया रे भवरा, तू पर घर प्रीत मत कीजै, पर घर प्रीत मत कीजै, पराई नारी रा रूप कटारी, रूप देख मत रीझे, रे भाई म्हांरा पर घर प्रीत मत कीजै,
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