रानी रूपा दे जी ईश्वर की अनन्य भक्त रही हैं। जग प्रसिद्द इस भजन में रानी रूपा दे ईश्वर से विनय करती हैं की आपने मेरा अच्छा विवाह रावळमाल (रूपा दे के पति) के साथ किया है तो नुगरा (दुष्ट) है, जो मुझे भजनों में (सत्संगत में जाने ही नहीं देता है ) इस भजन का हिंदी अर्थ निचे दिया गया है।
भजनां में जाबा कोनी दे : मुझे भजनों में जाने ही नहीं देता है, सत्संगत में जाने की अनुमति नहीं देता है। रानी रूपा दे जी ईश्वर से विनय करती है की मेरा पति तो मुझे ईश्वर भक्ति से विमुख करता है। आछी परणाई, नुगरा माल ने, ओ म्हारा राज : आपने बहुत अच्छे (आछी ) से मेरा विवाह किया है (यह व्यंग्य स्वरूप है, भाव है की मेरा विवाह आपने बहुत ही बुरी जगह किया है जहाँ पर ईश्वर के लिए कोई स्थान नहीं है ). मेरा पति तो नुगरा है। आछी -अच्छी। परणाई-शादी की है। नुगरा-दुष्ट, माल-रावल मान (रूपादे के पति) ओ म्हारा राज-मेरे स्वामी। क्यों नहीं कीन्ही बन री रोजड़ी, ओ म्हारा राज : मेरे स्वामी आपने मुझे वन की रोजड़ी (मृग) क्यों नहीं बनाया ? क्यों नहीं कीन्ही : आपने ऐसा क्यों नहीं किया, बन री रोजड़ी-वन की रोजड़ी (मृग/हिरण ) : आपने मुझे वन का मृग क्यों नहीं बनाया ? चरती हरियो हरियो घास : मैं वन में रहती और हरा हरा घास खाती (चरती ) आवता साधुड़ा रा लेवती बालणा : आते जाते साधुओं की नज़र उतारती। रहतो म्हारों जग में, अमर नाम : मेरा इस जगत में अमर नाम हो जाता। क्यों नहीं कीनी कुआँ बावड़ी, ओ म्हारा राज : हे ईश्वर आपने मुझे कुवा और बावड़ी (तालाब) ही क्यों नहीं बना दिया ? रहती मारगों रे माय : मैं राह के मध्य रहती। मारगों -मार्ग/राह, माय-मध्य। आवता साधुड़ा पाणी पीवता : आते जाते साधू संत मेरा पानी पीते। क्यों नहीं कीन्ही पारस पीपली, ओ म्हारा राज : आपने मुझे पारस पीपल ही क्यों नहीं बनाया ? रहती बन रे माय : मैं वन में रहती। आवता साधुड़ा छाया बैठता : आते जाते साधु संत मेरी छाया में बैठते। हाथ जोड़ी ने रूपा बोलियां, ओ म्हारा राज : हाथ जोड़ कर रानी रूपा दे कहती है। म्हारे साधुड़ो रो अमरापुर मे वास : मेरे साधुओं का तो स्वर्ग में वास (निवास) है।
भजना मैं जावा कोणी दे - रानी रूपादे भजन | प्रकाश माली नए अंदाज में | Superhit Rajasthani Bhajan
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