कुष्मांडा माता का महामंत्र : दिलाए आपको अष्टसिद्धि Kushmanda Mata Mantra Lyrics
पवित्र नवरात्रि के चौथे दिवस पर माता कुष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है। माता रानी की उपासना अत्यंत ही लाभकारी और शुभ परिणाम देने वाली होती है। नवरात्रि के चौथे दिवस पर साधक का मन अनाहत चक्र में होता है जो की अयंत ही तेजमय माना जाता है।
कुष्मांडा माता की आठ भुजाएं प्रदर्शित की जाती हैं और ब्रह्माण्ड के सभी प्राणी जन पर इनके आशर्वाद की ही छाया व्याप्त रहती है। आठ भुजा होने के कारण से ही माता रानी को अष्ट भुजाओं वाली कहा जाता है। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा होती हैं। माता की पूजा करने पर माता अष्ट सिद्धियाँ देती हैं। अतः निचे सिंह वाहिनी कुष्मांडा माता का महामंत्र दिया गया है जिसे आप भी अवश्य ही सुनें और जाप करें। माता रानी आपके समस्त कष्ट और संताप दूर करे।
कुष्मांडा माता की आठ भुजाएं प्रदर्शित की जाती हैं और ब्रह्माण्ड के सभी प्राणी जन पर इनके आशर्वाद की ही छाया व्याप्त रहती है। आठ भुजा होने के कारण से ही माता रानी को अष्ट भुजाओं वाली कहा जाता है। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा होती हैं। माता की पूजा करने पर माता अष्ट सिद्धियाँ देती हैं। अतः निचे सिंह वाहिनी कुष्मांडा माता का महामंत्र दिया गया है जिसे आप भी अवश्य ही सुनें और जाप करें। माता रानी आपके समस्त कष्ट और संताप दूर करे।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
भजन श्रेणी : माता रानी भजन (Read More : Mata Rani Bhajan)