बेटा तो गया परदेश सेवा मेरी कौन करेगा

काया कमल का फूल सेवा मेरी कौन करेगा भजन

इंसान अपनी सुंदर काया का और धन माया का घमंड करता है। उसको ये भी घमंड होता है की तेरे कितने बेटे और कितनी बेटियां हैं, जो की बुढ़ापे में तेरी सेवा करेगें। लेकिन जब बुढ़ापा आता है तो कोई किसी का सहारा नहीं बनाता है। सब मतलब का संसार है। और ऐसा ही कुछ इस भजन में बताया गया है।
 
बेटा तो गया परदेश सेवा मेरी कौन करेगा

काया कमल का फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल का फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा।

मैं जानी सेवा बेटा करेगा,
मैं जानी सेवा बेटा करेगा,
बेटा तो गया परदेश,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल का फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा,
बेटा तो गया परदेश,
सेवा मेरी कौन करेगा।

मैं जानी सेवा बहू करेगी,
मैं जानी सेवा बहू करेगी,
वा बहु हिला गई हाथ,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल का फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा,
बेटा तो गया परदेश,
सेवा मेरी कौन करेगा।

मैं जानी सेवा बेटी करेगी,
ले गया जंवाई घणी दूर,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा,
बेटा तो गया परदेश,
सेवा मेरी कौन करेगा।

मैं जानी सेवा पोता करेगा,
पोता गया स्कूल,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा।

मैं जानी सेवा पति करेगा,
मतलब का भरतार,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा।

मैं जानी सेवा गुरु की करलूं,
गुरु जी ने ला दी पार,
सेवा इब रोज करूंगी,
काया कमल फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा,
काया कमल फूल,
सेवा मेरी कौन करेगा।

भजन श्रेणी : आध्यात्मिक भजन (Read More : Devotional Bhajan)

भजन श्रेणी : विविध भजन/ सोंग लिरिक्स हिंदी Bhajan/ Song Lyrics

बेटा तो गया परदेश सेवा मेरी कौन करेगा | Beta To Gaya Pardes Seva Meri Kon Karega | Satsangi Bhajan

◉ Title ▸ Beta To Gaya Pardesh Seva Meri Kon Karega
◉ Artist ▸Hemlata
◉ Singer ▸Simran Rathore
◉ Music ▸Kuldeep Mali Aala
◉ Lyrics & Composer ▸Traditional
◉ Editing ▸ KV Sain 

गहरे जीवन-सत्य और वैराग्य का चित्रण है जीवन को यहाँ “काया कमल का फूल” कहा गया है — सुंदर, नाज़ुक और क्षणभंगुर। जैसे कमल जल पर खिला होता है, वैसे ही मानव शरीर संसार के अस्थिर जल पर टिका है। उसकी सुंदरता क्षणिक है, और अंत निश्चित है। इस भाव में एक वृद्ध आत्मा जैसी आकुलता है, जो अपने जीवन के उत्तरार्ध में यह सोचती है कि “अब मेरी सेवा कौन करेगा?” — न बेटा, न बहू, न बेटी, न पोता; हर कोई अपनी दुनिया में व्यस्त हो गया है। यह प्रश्न केवल शारीरिक सेवा का नहीं, बल्कि आत्मिक एकांत का है। जब मनुष्य धीरे-धीरे सब मोह-माया के बंधनों से दूर होता है, तब यही अनुभूति जागती है — “अब कोई नहीं, केवल प्रभु या गुरु शरण।” 

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