मन मुर्ख कब तक जग में जीवन व्यर्थ बितायेगा लिरिक्स Man Murkh Kab Tak Lyrics, Devotional Bhajan by Hari Om Tiwari
रे मन मुर्ख कब तक जग में,जीवन व्यर्थ बितायेगा,
राम नहीं गायेगा तो फिर,
अंत समय पछतायेगा,
रे मन मुर्ख कब तक जग में,
जीवन व्यर्थ गंवायेगा,
राम नहीं गायेगा तो फिर,
अंत समय पछतायेगा।
जिस जग में तू आया है,
यहा एक मुसाफिर खाना है,
सिर्फ रात में रुक कर इसमें,
सुबह सफर कर जाना है,
लेकिन यह भी याद रहे,
सांसो का पास खजाना है,
जिसे लूटने को कामों ने,
चोरों ने प्रण ठाना है,
माल लूटा बैठा जो घर का,
घर क्या मुंह दिखलाएगा,
राम नहीं गायेगा तो फिर,
अंत समय पछतायेगा।
शुद्ध ना की वासना हृदय की,
बुद्धि नही निर्मल की है,
झूठी दुनियादारी से क्या,
आशा मोक्ष के फल की है,
अब भी कर जो करना हो,
क्यों देर आज या कल की है,
तुझको है क्या ख़बर जिंदगी,
देर ये कितने पल की है,
जम के दूत घेर जब लेंगे,
तो क्या धर्म कमायेगा,
राम नहीं गायेगा तो फिर,
अंत समय पछतायेगा।
रे मन मुर्ख कब तक जग में,
जीवन व्यर्थ गंवायेगा,
राम नहीं गायेगा तो फिर,
अंत समय पछतायेगा।
पहुंच गुरु के पास ज्ञान के,
दीपक का उजियाला ले,
कंठी पहन कंठ में जप की,
कर सुमिरन की माला ले,
खाने को दिन चार रूप का,
रसमय मधुर निवाला ले,
पीने को प्रियतम प्यारे के,
प्रेम तत्व का प्याला ले,
ये न किया तो आंखों से,
आसूं बिंदु बहायेगा,
राम नहीं गायेगा तो फिर,
अंत समय पछतायेगा।
रे मन मुर्ख कब तक जग में,
जीवन व्यर्थ बितायेगा,
राम नहीं गायेगा तो फिर,
अंत समय पछतायेगा,
रे मन मुर्ख कब तक जग में,
जीवन व्यर्थ गंवायेगा,
राम नहीं गायेगा तो फिर,
अंत समय पछतायेगा।
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