अर्जुन से बोले एक रोज मोहन मदन भजन
अर्जुन से बोले एक रोज मोहन मदन ,
भक्त संकट में आये तो मैं क्या करुं।
सीधी मुक्ति की राहें चलाई मैंने ,
वो टेढ़ी राहों पे जाए तो मैं क्या करुं।
सारी सृष्टि रची संग में माया रची ,
कर्म करने को बुद्धि और शक्ति रची,
मोह ममता में फंसकर तड़पता रहा ,
फिर मुझे भूल जाए तो मैं तो मैं क्या करुं।।
कर्म करना मनुष्यों का कर्तव्य है ,
उसमें तेरी सफलता मेरे हाथ है,
कामयाबी मिले होवे कृपा मेरी ,
वो दिल में अभिमान लाये तो मैं क्या करुं।।
राम का नाम दुनिया में अनमोल है ,
न जपे तो मनुष्य की बड़ी भूल है,
पाप करते सारी जिंदगी ढल गयी ,
सीधे आंसू बहाय तो मैं क्या करुं।।
अर्जुन वेदों पुराणों में लिखा यही ,
हरना दुखियों के दुखड़े ये भक्ति मेरी,
रात दिन वेद गीता को पढ़ता रहा ,
फिर अमल में न लाये तो मैं क्या करुं।।
कर्म अच्छे करोगे मुझे पाओगे ,
कुकर्मी बनोगे तो पछताओगे,
ज्ञान मोक्ष का अर्जुन सुनाया मैंने ,
कोई माने न माने तो मैं क्या करुं।।
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