शीश गंगा की धार गले सर्पों का हार

शीश गंगा की धार गले सर्पों का हार

शीश गंगा की धार गले सर्पों का हार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा

जो जल में तुमको चढ़ाऊं अपने,
मन मे अपने डर जाओ मछली,
दे गई जूठा मैं तो हो गई लाचार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा
शीश गंगा की धार गले सर्पों का हार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा।

जो फूल मैं तुमको चढ़ाऊं मन में अपने,
डर जाऊं भंवरा दे गया  जुठार,
मैं तो हो गई लाचार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा
शीश गंगा की धार गले सर्पों का हार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा।

जो भोग में तुमको चढ़ाऊं मन में,
अपने डर जाऊं चींटी दे गई जुठार,
मैं तो हो गई लाचार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा
शीश गंगा की धार गले सर्पों का हार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा।

जो दूध में तुमको चढ़ाऊं,
मन में अपने डर जाऊं,
बछड़ा दे गया जुठार,
मैं तो हो गई लाचार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा
शीश गंगा की धार गले सर्पों का हार,
महादेवा नाथ कैसे करूं तेरी सेवा।
द्वितीय लिरिक्स / शिव भजन
शीश गंगे की धार,
गले सर्पो के हार महादेवा,
भोले कैसे करूँ तेरी सेवा।

तेरी सेवा में जल ले आई,
तूने उसमे भी कमी बतलाई,
मछली कर गई बेकार,
मैं तो हो गई लाचार ,महादेवा,
भोले कैसे करूँ तेरी सेवा।

तेरी सेवा में दूध ले आई,
तूने उसमे भी कमी बतलाई,
बछड़ा कर गया बेकार,
भोले कैसे करूँ तेरी सेवा।

तेरी सेवा में फल के आई,
तूने उसमे भी कमी बतलाई,
तोता कर गया बेकार,
भोले कैसे करूँ तेरी सेवा।
शीश गंगे की धार,
गले सर्पो के हार महादेवा,


 
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शीश गंगा की धार गले सर्पों का हार महादेवा

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