चादर झीणी प्रह्लाद सिंह टिपानिया
साखी
सतगुरू बड़े सुनार है , परखें वस्तु भण्डार ।
सुरति निरति मिलाय के , मेटि डारे खुटकार।।1 ।।
सतगुरू तो सद् भाव है , जो अस भेद बताय ।
धन - भाग - धन - शिष्य जेहि , जो ऐसी सुधि पाय ।।2 ।।
भजन
म्हारी सदा राम रस बीनी चादर झीणी , रंग झीणी हो ,
अष्ट कमल दल चरखा चाले , पाँच तत्व गुण तीनी ,
कर्म की पूणी कांतन बैठी , कुकरी , सुरत महीणी ॥
इंगला पिंगला ताना कीनो , सुखमण या भर दीनी ,
नवदस मास या बीतण लागे , ठीक ठाक कर बीनी ॥
या चादर धोबी के दीनी, शब्द ताल धर दीनी ।
सुरत शिला पर पकड़ पछाटी , इन वद उजली कीनी ॥
या चादर रंगरेज के दीनी , भांति - भांति रंग बीनी ।
प्रेम पति का रंग चढ़ाया , पीली पीताम्बर कीनी ॥
या चादर सुरनर मुनि ओढ़ी , ओढ़ के मेली कीन्हीं ,
अर्जुन ओढ़ मरम नहीं जाना , मूरख मैली कीनी ॥
ध्रुव ओढी प्रहलाद ने ओढ़ी , सुखदेव निर्मल कीनी ,
साहब कबीर ने जुगत से ओढ़ी , ज्यों की त्यों धर दीनी ॥सतगुरू बड़े सुनार है , परखें वस्तु भण्डार ।
सुरति निरति मिलाय के , मेटि डारे खुटकार।।1 ।।
सतगुरू तो सद् भाव है , जो अस भेद बताय ।
धन - भाग - धन - शिष्य जेहि , जो ऐसी सुधि पाय ।।2 ।।
चादर झीणी II Chadar jhini II By Prahlad Singh Tipaniya
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