अयोध्या के सम्राट जय श्री राम भजन

योध्या के सम्राट जय श्री राम भजन
 
अयोध्या के सम्राट जय श्री राम भजन

रघुकुल गौरव जय श्री राम,
निस दिन निस पल तुम्हें प्रणाम,
रघुकुल गौरव जय श्री राम,
निस दिन निस पल तुम्हें प्रणाम,
रघुकुल गौरव जय श्री राम।

दशरथ नंदन जय श्री राम,
कौशल्या धन जय जय श्री राम,
भरत लखन मन जय श्री राम,
जपत शत्रुघ्न जय जय श्री राम,
रघुकुल गौरव जय श्री राम।

वशिष्ठ शिष्य जय श्री राम,
विश्वामित्र प्रिय जय जय श्री राम,
अहिल्या के सब जय श्री राम,
जानकी वल्लभ जय जय श्री राम,
जानकी वल्लभ जय जय श्री राम,
जानकी वल्लभ जय जय श्री राम।

मोक्ष जटायु के जय श्री राम,
शबरी के हृदय में जय जय श्री राम,
सुग्रीव प्यारे जय श्री राम,
बाली सम्हारे जय जय श्री राम,
रघुकुल गौरव जय श्री राम

हनुमत के प्रिये जय श्री राम,
विभीषण के साथ जय जय श्री राम,
रावण वध किये जय श्री राम,
अयोध्या के सम्राट जय जय श्री राम।

अयोध्या के सम्राट जय जय श्री राम,
अयोध्या के सम्राट जय जय श्री राम,
अयोध्या के सम्राट जय जय श्री राम,
अयोध्या के सम्राट जय जय श्री राम।

Ayodhya Ke Samrat Jai Shree Ram - Ram Bhajan राम भजन | Bhakti Song | Bhajan Songs | Ram Songs

Singers: Abhay Jodhpurkar, Rajalakshmee Sanjay
Lyricist: Bhanu (Parwathy Akhileswaran)
Music Composer: Bhanu (Parwathy Akhileswaran)
Music Arranged & Produced by Sanjay Chandrasekhar
Guitars Arranged & Produced by Sanjoy Das
Vocals Recorded by Anand Dabre at L M Studio 

"रघुकुल गौरव जय श्री राम" की पुनरावृत्ति उस सतत स्मरण का प्रतीक है जो भक्त के जीवन का प्राण बन जाती है। यह भाव यह सिखाता है कि भक्ति का अर्थ केवल आराधना नहीं — वह तो एक निरंतर संगति है, जहाँ मन, वचन और कर्म तीनों प्रभु के चरणों में समर्पित हो जाते हैं। राम का गुणगान करते हुए यह काव्य उन सभी चरित्रों का आशीर्वाद भी बन जाता है जिन्होंने उनके जीवन की कथा को अर्थ दिया — दशरथ, कौशल्या, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सभी उस पावन परंपरा के अंग हैं जो धर्म की रक्षा और प्रेम के प्रसार में जुड़ी रही।

वशिष्ठ और विश्वामित्र से लेकर शबरी और जटायु तक, हर चरित्र वह बंधन दिखाता है जो राम से जुड़ने पर मोक्ष का मार्ग खोल देता है। बाली का संहार, रावण का वध और विभीषण का राज्याभिषेक — ये सब कर्म भगवान के न्यायशील और करुणामय दोनों रूपों का साक्षात दर्शन हैं। और जब अंत में "अयोध्या के सम्राट जय जय श्री राम" कहा गया है, वह केवल विजय का जयघोष नहीं, बल्कि उस आदर्श की स्थापना है जहाँ धर्म सत्ता पर नहीं, हृदय पर विराजता है। यह गीत सुनते हुए जैसे मन कह उठता है — “निस दिन निस पल तुम्हें प्रणाम,” क्योंकि इस नाम में ही जीवन की आस्था और मुक्ति का संगम है। 

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