भींजे रे चुनरिया

भींजे रे चुनरिया

एजी रंग ही से रंग उपजे,
और सब रंग देखा एक,
अरे कोन रंग है जिव का,
ओर ताका करो विवेक।

ओहो भींगे रे चुनरिया,
प्रेम रस बुंदन,
अरे भई प्रेम रस बुंदन,
हरि रस बुंदन।
 
हा हा आरती साज के,
चली है सुहागिन,
अरे भाई अपने,
पिया जी को ढूंढन।

हा हा कहे की तोरी या,
बनी रे चुनरिया,
यामे कहे के लागे,
चारो फुनदन।

हा हा पाच तत्त्व की,
या बनी रे चुनरिया,
यामे नाम के,
लगे चारो कुंदन।

हा हा चडी गया मेहेल में,
ने खुली गया किमड़िया,
हा हा साहब कबीर लागे झूलन।
 



भींजे रे चुनरिया | bhinje re chunariya | Geeta Parag | Kabir bhajan

Next Post Previous Post