भीलनी से मिलने राम चले गोविंद हरे गोपाल

भीलनी से मिलने राम चले गोविंद हरे गोपाल

भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।

किसने तो रास्ता साफ किया है,
किसने राहों में फूल बिखेरे,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।

शबरी ने रास्ता साफ किया,
और खुद ही फूल बिछाए दिए,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।

काहे की आंकी बनी रे झोपड़िया,
काहे के इनमें थाम गड़े,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।

घास फूस की बनी रे झोपड़िया,
बांस के इनमें थांब गड़े,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।

काहे की इनकी बनी रे छाबड़िया,
काहे के इन में बैर भरे,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।

हरे बांस की बनी रे छाबड़िया,
अरे मीठे इनमे बैर भरे,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।

राम ने बैर प्रेम से खाये,
लक्ष्मण ने बाहर फेंक दिये,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।

शक्ति बाण लगी लक्ष्मण के,
यही बैर फिर खाने पड़े,
गोविंद हरे गोपाल हरे,
भीलनी से मिलने राम चले,
गोविंद हरे गोपाल हरे।
 



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